- होम
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- राष्ट्रीय+
- आर्थिक+
- मनोरंजन+
- खेलकूद
- स्वास्थ्य
- राजनीति
- नौकरी
- शिक्षा
- Home
- /
- हमसे जुड़ें
- /
- नर्मदा बचाओं आन्दोलन...
नर्मदा बचाओं आन्दोलन के 36 वर्ष पूरे, मेधा पाटकर जी आपको सलाम
हाल ही में जारी आईपीसीसी की रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के लिए चौंकाने वाली है, पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जागरूकता का यह पर्दाफाश करती है।
लेकिन समय-समय पर पर्यावरण कार्यकर्ता अपना दायित्व निभाते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं इस बीच आज नर्मदा बचाओ आंदोलन को 36 वर्ष पूरे हो गए हैं।
इसके मुख्य कार्यकर्ताओं में मेधा पाटकर के अलावा अनिल पटेल, बुकर सम्मान से नवाजी गयी अरुणधती रॉय, बाबा आम्टे आदि शामिल थे। नर्मदा बचाओं आन्दोलन ने, सरकारों की पोल खोली तथा न्यायालय को भी असहाय होते देखा है।
15 अगस्त को देश ने 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया, 75 वर्ष में हमारी विधायिका जो काम नहीं कर सकी, वह काम नर्मदा बचाओं आन्दोलन ने कर दिखाया। लोकसभा और विधान- सभा में जनता के हित में कानून बनते नही दिखाई दे रहे हैं। अंग्रेजों के चिन्हो पर चलती हुई सरकार भला भारत की जनता के पक्ष में कानून कैसे बनाएगी ? देश से अंग्रेज तो जरूर चले गये पर देश चलाने की प्रक्रिया विरासत में छोड़ गए और इसका ही परिणाम है कि कोई भी कानून देश की जनता से विचार विमर्श करके नही बनाये जाते, असंवैधानिक तरीके से कानून बनाकर भारत की जनता के सिर पर थोप दिये जाते है। 1894 में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों की जमीन हड़प्पने का कानून बनाया गया, क्योंकि अंग्रेज यह समझ चुके थे कि भारत का किसान समृद्ध तथा सम्पन्न है और भारत के किसान की कमर कैसे तोड़ी जाए इसलिए भू-अर्जन कानून बनाया। जरा कल्पना कीजिए अगर नर्मदा बचाओं आन्दोलन इस देश में नही होता तो क्या हम चुनी हुई सरकार से उम्मीद कर सकते थे कि वे भारत के किसानों की भूमि की लूट को बचाने के लिए भूमि अर्जन पुनर्वासन और पुर्नव्यवस्थापन में उचित प्रतिकर (मुआवजा) और पारदर्शिता का कानून 2013 बना पाते। नर्मदा बचाओं आन्दोलन के नेतृत्व में देश भर के संगठनों ने मिलकर सरकार पर दवाब बनाया, जिसके परिणाम स्वरूप इस कानून को अमली जामा पहनाया गया, वरना हमारी चुनी हुई सरकार की किसान, किसानी और गांव को बचाने की कब चिन्ता थी !
नर्मदा बचाओं आन्दोलन ने न सिर्फ किसानों के हक में भू-अर्जन का कानून बानने के लिए बाध्य किया, बल्कि सरकारों के सामने यह चुनौती भी खड़ी की। विकास के नाम पर किसानों की जमीनें सरकार अधिग्रहित तो कर लेती है किन्तु विस्थापित परिवारों का पुनर्वास कागजों तक ही सिमटकर रह जाता है। आन्दोलन ने देश के सामने यह सबूत करके दिखा दिया कि हमारी चुनी हुई सरकार किस तरीके से झूठे दस्तावेज न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर न्यायाधीश की आँखों में भी धूल झोकने का काम करती है। नर्मदा बचाओं आन्दोलन के माध्यम से पूरे देश एवं दुनिया ने विकास के नाम पर विनास होते अपनी खुली आखों से देखा है।
नर्मदा बचाओं आन्दोलन ने देश के समक्ष वह तस्वीर भी प्रस्तुत की, जिसमें आन्देलनकारियों को उसी तरह से प्रताड़ित किया जाता है जिस तरीके से अंग्रेज हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को प्रताड़ित करते थे। अगस्त 2021 में ही हमने नर्मदा बचाओं आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर जी के साथ सरकार के ईशारे पर पुलिस को दुर्व्यवहार करते देखा उनके बाल खींचते हुए पुलिस ने निर्दयता पूर्वक गिरफ्तार किया, मेधा जी के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार की लाखों तस्वीरें देश और दुनिया ने देखी। पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है दण्ड प्रक्रिया संहिता में उल्लेख किया गया है कि सूर्यास्त के पश्चात एवं सूर्योदय के पूर्व किसी महिला को गिरफ्तार नही किया जायेगा, उसी प्रकार उल्लेख है कि किसी महिला को कोई पुरूष गिरफ्तार नही करेगा, दण्ड प्रक्रिया संहिता में यह भी उल्लेख है कि गिरफ्तार करने के पश्चात आरोपी को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा, पूरा देश नर्मदा बचाओं आन्दोलन के दौरान इन कानूनों का उल्लंघन होते देखता रहा और देश को लगा कि न्यायपालिका, राष्ट्रीय मानव आयोग, राज्य मानव आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राज्य महिला आयोग ने अपनी आँख में राजनैतिक पट्टी बाँध रखी है जिसे वे खोलने को तैयार नही हैं। भू-अर्जन में किस तरीके का भ्रष्टाचार होता है। "नर्मदा बचाओं आन्दोलन" ने न्यायालय के दरवाजे खट्खटाकर न्यायधीश को खुली आँखों से सब कुछ दिखा दिया, पर न्यायपालिका के आदेश को नही मानने के कई तरीके राज्य सरकारों ने निगल लिये, यह भी पूरे देश ने देखा और समझा।
36 वर्ष तक किसी आन्दोलन से जनता को जोड़कर रखने का हुनर तो कोई मेधा जी से सीखे, किसी भी आन्दोलन की सफलता नेतृत्व पर निर्भर करती है मेधा जी के नेतृत्व को आन्दोलनकारियों नेे स्वीकारा यह देश और दुनिया ने बखूबी महसूस किया। मेधा जी आपके नेतृत्व को पूरा देश और दुनिया स्वीकारती है। देश के किसानों को आप से बहुत आशा और उम्मीद है। तीन किसान विरोधी कानून निरस्त कारने की मांग को लेकर देश का अन्नदाता आपके नेतृत्व को स्वीकारता है तथा आपके उज्जवन भविष्य की कामना करता है। आप नर्मदा बचाओं आन्दोलन की तरह ही स्वस्थ एवं प्रसन्न रहे यह शुभकामना किसान आन्दोलन आपको देता है।
- एड. आराधना भार्गव
पता:- 100 बी, वर्धमान सिटी, छिन्दवाड़ा