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लोकतंत्र में राजनैतिक दल गठन की आजादी और नये दलों के गठन पर विशेष
लोकतंत्र में हर व्यक्ति को राजनैतिक दल अथवा संगठन बनाने का हक होता है और यह अधिकार उसे संविधान से मिले हैं।राजनैतिक दलों के गठन का सिलसिला चलता रहता है और नये लोगों की अपेक्षा पुराने राजनीतिज्ञ इसमें सबसे आगे रहते हैं।कांग्रेस सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी मानी जाती है लेकिन उसमें भी अबतक कई नयी पार्टियां बन चुकी हैं जो नेताओं के सरनेम से पहचानी जाती है इसी अन्य पार्टियों में भी नयी पार्टियों का गठन समय समय पर आपसी तालमेल न बैठ पाने के कारण हो चुका है।
आजकल नयी पार्टियों का गठन वसूलों सिद्धांतों विचारों नहीं बल्कि राजनैतिक गुणाभाग के आधार पर होने लगा है क्योंकि आजकल राजनीति का आधार जाति पांत धर्म सम्प्रदाय एवं धनशक्ति हो गया है। चुनाव के दौर में कहा जाता है कि वोट काटने वालों से बचकर रहना क्योंकि वह चुनाव जीतने के लिये नहीं बल्कि मतों में विभाजन करके किसी को हराने और किसी को जिताने के लिये मैदान में आ जाते हैं। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनैतिक दलों की तैयारी भी शुरु हो गई है और हर राजनेता अपने भविष्य को लेकर गठजोड़ एवं नये दलों को खड़ा कर रहा है। समाजवादी पार्टी में पिछले तीन सालों से चचा भतीजे में चल रहे गृहयुद्ध का पटाक्षेप चचा के नये समाजवादी दल बनाने के साथ हो ही नहीं गया है बल्कि हर जिले में पार्टी दौड़ने भी लगी है। समाजवादी पार्टी के बंटवारे का किसको कितना लाभ हानि होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन एक नये दल का गठन जरूर हो गया है।
अभी हाल ही में कुण्डा प्रतापगढ़ के राजा भैया ने भी एक नये दल का गठन किया है और उसे सक्रिय करने की रणनीति तय की जा रही है।राजा भैया हमेशा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतते हैं और अपने आसपास मतदाताओं पर अच्छी पकड़ रखते हैं और उन्हें क्षत्रियों का नेता भी माना जाता है क्योंकि जब बसपा के जमाने में उनके ऊपर मुसीबत आई थी तब क्षत्रिय समाज ने उनका साथ दिया था। राजा भैया अपने क्षत्रिय समाज को एससी एसटी के सहारे कितना बटोर पाते हैं इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन एक नया दल तो बन ही गया। इतना ही नहीं एससी एसटी एक्ट से नाराज लोग अगर एकजुट हो भी जाते हैं तो भी सरकार बनाने की नौबत आना संभव नहीं है।
राजा भैया हमेशा निर्दलीय विधायक होने के बावजूद मंत्री बनते रहे हैं इस बार पार्टी बनाकर चुनाव लड़ेंगे।उनकी नयी पार्टी उनके राजनैतिक कद को कितना बढ़ा पायेगी यह कहना भविष्य के साथ मजाक करने जैसा होगा लेकिन इतना तो जरूर होगा कि क्षत्रिय मतों का विभाजन भाजपा के लिए हितकर हो सकता है क्योंकि सवर्ण मतदाता इस बार एससी एसटी एक्ट को लेकर नाराज हैं और चुनाव में विरोध करने की धमकी दे रहे हैं।