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- आनंद मोहन पर शोर ,...
देश के चर्चित सीनियर पत्रकार अजीत अंजुम ने आज फिर मीडिया से सवाल किया है कि जब आप बिलकिस बानो के केस में खामोश हुए थे तभी गलत हुआ है अब आनंद मोहन के नाम पर जनता हंगामा कैसेस्वीकार करेगी?
.#Krishnaiah हत्याकांड के सजायाफ्ता क़ैदी आनंद मोहन सिंह को जिस तरह से बिहार सरकार ने रिहा कर दिया है , उसे किसी भी सूरत में जस्टीफाई नहीं किया जा सकता है . एक डीएम के हत्यारे के प्रति हमदर्दी दिखाकर नीतीश सरकार ने न सिर्फ़ कृष्णैया के परिवार के साथ नाइंसाफ़ी की है बल्कि ये संदेश भी दिया है कि वोट की ख़ातिर सजायाफ्ता बाहुबली को भी जेल से बाहर निकालने में कोई गुरेज़ नहीं है .
मुझे पता नहीं कि बिहार के लोग सरकार के इस फ़ैसले का कितना समर्थन करेंगे . सामाजिक न्याय की बात करने वाली सरकार ने एक दलित डीएम कृष्णैया के परिवार के साथ अन्याय किया है . सिर्फ़ राजपूत वोट की ख़ातिर नियम बदलकर आनंद मोहन सिंह को जेल की सलाख़ों से मुक्ति दे दी गई .उनका स्वागत गाजे- बाजे के साथ हो रहा है .
आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर मीडिया लगातार नॉन स्टॉप कवरेज भी कर रहा है .चैनलों के रिपोर्टर और एंकर का ग़ुस्सा स्क्रीन फाड़कर बाहर आ रहा है .
चैनलों के चेहरों का ये ग़ुस्सा वाजिब लगता अगर यही तेवर बिलकिस बानो केस में भी दिखता . तब तो मामला बीजेपी से सवाल पूछने का था तो आवाज़ कुंद हो गई थी .
कई दिनों से नीतीश सरकार की घेराबंदी की जा रही है. सवाल भी तेवर के साथ पूछे जा रहे हैं लेकिन यही तेवर #BilkisBanoCase
में छूटे दरिंदों और बलात्कारियों के वक़्त क्यों नहीं दिखा ? तब किस बिल में घुसे थे ? ऐसे ही कवरेज करना चाहिए था न उन दरिंदों की रिहाई पर ?
गर्भवती महिला के साथ बलात्कार करने वाले , उसकी तीन साल की बेटी समेत ग्यारह लोगों की हत्या करने वाले 'संस्कारी ब्राह्मण' जब गाजे बाजे के साथ आज़ादी के अमृत महोत्सव के मौक़े पर रिहा कर दिए गए थे तब किसी चैनल पर ऐसे सवाल नहीं पूछे गए थे . ख़बर दिखाने की रस्मअदायगी जरुर हुई थी लेकिन मोदी और शाह की सत्ता को पूछा नहीं गया था कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कैसे उन दरिंदों को छोड़ने की अनुमति दी थी ?
किसी चैनल ने सरकार से तब नहीं पूछा था कि सजामाफी नीति की आड़ दरिंदों कैसे बाहर निकाल दिए थे ?
लेखक अजित अंजुम वरिष्ठ पत्रकार है।