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नोट बन्दी के कारण बाजार की गति को लगा विराम, तो इसकी प्रमुख वजह यह थी

Special Coverage News
11 Nov 2018 2:13 PM IST
नोट बन्दी के कारण बाजार की गति को लगा विराम, तो इसकी प्रमुख वजह यह थी
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वेनेजुएला मे जब नोटो की संख्या इतनी बढ गई के वसतुऐ तोलने के साथ साथ रुपयो को भी तोलना पडा तो वहां के राष्ट्रपति को नोटबनदी जैसे निर्णय का विचार आने लगा। जब कि सारा किया धरा राष्ट्रपति महोदय का ही था , की अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की बढ़ती कीमतो से देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए उन्हे नोट छापना ही एक मात्र विकल्प नजर आया। उन्होंने ने यह बिल्कुल नही सोचा कि इस तरह के हालात से बाहर निकलने के लिए देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की तथा उसे और बेहतर करने की आवश्यकता की ओर भी नजर सानी की जाए।

हमारा देश भारत जो की तेजी से विकास की ओर अग्रसर अर्थव्यवस्था का मालिक है, और क्रय शक्ति के लिहाज से दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। साल 2016 मे नोट बन्दी का सामना करता है । मगर इस नोट बन्दी के कारण वेनेजुएला से भिन्न थे। हमारे यहा नोट बन्दी के पीछे प्रमुख कारण काले धन पर रोक लगाना तथा आतंकवाद पर शिकंजा कसना था। लेकिन नोट बन्दी के कारण बाजार की गति को विराम लग गया वजह यह थी के बाजार को जितनी मात्रा मे पैसों की आवश्यकता थी वह बाजार मे आ नही पाया जब बाजार मे आवश्यकता अनुसार पैसा आ नही पाया तो व्यापारिक व्यवहार, व्यापारिक किरयाऐ पूरी तरह ठप हो कर रह गई, लोगो की क्रय शक्ति मे कमी आई जिस के कारण वस्तुओ की मांग कम हो गई मांग कम होने से उत्पादन क्षमता मे कमी आई, साथ ही मशीनों की उपयोगिता भी घट कर रह गई । मशीनो की उपयोगिता मे आई कमी ने रोजगार के नए अवसरो को समाप्त कर दिया।

50,00,000 का सालाना टर्न ओवर रखने वाले कारोबारी तो इस कदर प्रभावित हुए के उन्होंन अपने यहा काम करने वाले लोगो को निकालना शुरु कर दिया। कंस्ट्रक्शन साईट पर काम करने वाले मजदूरो से तो नोट बन्दी ने दो वक्त की रोटी का आसरा ही छीन लिया ।मजबूर हो कर इन्हे खाली हाथ गाव वापस लौटना पडा।

नोट बन्दी के कारण अपना ही पैसा बैंक से निकालने के लिए लोगो को परेशानियो का सामना करना पड़ा, लम्बी लम्बी कतारो मे खडा रहना पडा जिस की वजह से ना जाने कितने घरो के चिराग बुझ गए , और150 से ज्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। जब कि आर बी आई का कहना है कि जिस पैसे पर रोक लगाने के लिए नोट बन्दी जैसा एतिहासिक कदम उठाया गया उस का 99•3 प्रतिशत भाग वापस आ चुका है। अगर आतंकवाद पर शिकंजे की बात की जाए तो कश्मीर से आने वाली खबरे , हमारे जवानो की शहादते इस पर पानी फेरने के लिए काफी हैं।

2014 के बाद जानवरो को लेकर भाजपा सरकार की जिस प्रकार की नीति बना रही है उस ने चमड़े के कारोबार मे काम करने वाले लोगो को भी भारी संख्या मे बेरोजगार किया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था एक बडी अर्थव्यवस्था है और किसी भी बडी अर्थव्यवस्था मे कम समय के अंतराल पर बडे फैसले अर्थव्यवस्था को पूरी तरह हिला कर रख देते हैं। नोट बन्दी के बाद जी एस टी ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया टैक्स की चोरी रोकने तथा अप्रत्यक्ष कर चुकाने की प्रक्रिया को सरल प्रारूप देने के नजरिए से बगैर उपयुक्त तैयारी के जी एस टी के विसतारण ने वयापारियो की खास तौर पर छोटे वयापारियो की कमर तोड कर रख दी। जी एस टी के कारण वस्तुओ के मूल्य मे वृद्धि हुई और मांग मे भी कमी आई । जिस से व्यवसाय की गति धीमी पड़ गई । लाभ कमाने की क्षमता पर नगण्य प्रभाव पडा , व्यवसाय का विस्तार रुक गया। और इस से भी लेबर तबका ही अधिक प्रभावित रहा।

जी एस टी से पहले टैक्स चुकाने की प्रक्रिया त्रैमासिक थी परन्तु अब प्रत्येक माह की 10 तारीख को जी एस टी आर वन भरना पडता है । जिस के लिए मालो के आदान-प्रदान के बिल 1 से 10 तारीख के बीच प्राप्त कर लेने होते है। क्योंकि 20 तारीख को इस फार्म मे दिए गए सूचना के अनुसार जी एस टी जमा करनी पड़ती है।और वयापारियो को बचे 10 से 11 दिन ही फुर्सत हो पाती है।

जिस से व्यापारी मानसिक रूप से स्वयं को आजाद महसूस नही कर पाता वह अपने ऊपर बोझ सा महसूस करता है जिस के कारण वह खुले मन से व्यापार नही कर पाता एक उलझाव की सी स्थिति हमेशा बनी रहती है।

इस नए कानून के अनुसार हर वस्तु का एक एच एस एन नमबर होता है जिस के कारण वयापारियो को खुद बिल बनाने मे कठिनाई का सामना है।लेखांकन के कार्यो पर भी अब अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। जी एस टी की दरें भी कई प्रकार की हैं। जो किसी रूप मे आसानी पैदा करती हुई नजर नही आती। इस सिस्टम की एक खामी जिसे सब से पहले बेहतर करने की आवश्यकता है वह यह है कि इस के तहत दिए गए एप्लीकेशन मे दोबारा सुधार करने की कोई गुंजाइश नही है। और यह वयापारियो की परेशानी की बड़ी वजह बना हुआ है ।पिछले दिनो हम ने देखा सरकार ने आर बी आई से 3•6 लाख रुपए की मांग की जिसे आर बी आई ने देने से मना कर दिया। सरकार की यह मांग उसकी आथिर्क नीतियो की खामी तथा लगातार बडी मात्रा मे हुए सरकारी बैंको के एन पी ए पर उसकी चुप्पी की परतों को खोलती है।

अब सी एम आई ई ( थिंक टैंक सेन्टर फोर मानिटरिंग इण्डियन इकोनॉमी ) का कहना है वर्ष 2018 मे भारत मे बेरोजगारो की संख्या मे 6•9 प्रतिशत तक वृध्दि हो गई है जो पिछले 2 वर्षो की तुलना मे सब से अधिक है। आने वाले समय मे इस मे और बढोत्तरी होने की उम्मीद है।

नोटः इस आर्टिकल मे प्रयोग किये गये शब्द जानवर मे गाय शामिल नही है।

बुशरा इरम(जमशेदपुर )

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