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'जहां सरकार फेल, वहीं से शुरू होता है बीमा का खेल'

Arun Mishra
25 Sept 2018 3:48 PM IST
जहां सरकार फेल, वहीं से शुरू होता है बीमा का खेल
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“आपको सलाना 10 हजार करोड का आयुष्मान भारत बीमा चाहिए या हर साल 1 नया एम्स, दिल्ली वाला।”

शशि शेखर, वरिष्ठ पत्रकार

"आपको सलाना 10 हजार करोड का आयुष्मान भारत बीमा चाहिए या हर साल 1 नया एम्स, दिल्ली वाला।" मैक्स में जा कर किडनी बदलवा लेंगे 5 लाख में ? या गंगाराम में जाकर 5 लाख में लीवर ट्रांसप्लांट हो जाएगा? क्या-क्या करेंगे 5 लाख में? वो भी पूरे परिवार का? खैर, जहां आपको दो टाइम खाने के लिए नहीं है, वहां 5 लाख का इलाज मिल रहा है, मुफ्त, वो क्या कम है?

तो खबर ये है कि आयुष्मान भारत योजना पर सलाना 10 हजार करोड रुपये खर्च होंगे (सभी भारतीयों को कवर करने पर)। इतने ही पैसे में दिल्ली की तर्ज पर एक एम्स की स्थापना की जा सकती है। जहां सभी बीमारियों का कम से कम पैसे में विश्व स्तर की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है। यानि हर साल भी एक ऐसा एम्स बनता तो 10 साल में देश में दिल्ली जैसा 10 एम्स तैयार हो जाता। (कृपया पटना-ऋषिकेश आदि जैसे एम्स का हवाला न दे.)

हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी तो वैसे भी 2050 तक देश पर शासन करने वाले हैं। तो, सोचिए अगले 32 साल में वो इस तरह के 32 एम्स बना देते। यकीन मानिए, 32 नहीं तो दिल्ली एम्स की गुणवत्ता से लैस 10 एम्स भी देश में बन जाए तो ये मैक्स-फोर्टिस-अपोलो की दुकानों पर ताला लगाने की नौबत आ जाएगी।

लेकिन नहीं, हम-आप तो मतदाता है। हमारे एक वोट की कीमत हमारे नेता अच्छे से जानते है। उन्हें वोट चाहिए। वे जानते है कि जनता 32 साल झेल नहीं सकती मुझे। इसलिए, हमारे नेता ने क्वीक फिक्स सॉल्यूशन दे दिया। वैसे भी हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री को इलहाम बहुत होता है। उन्हें इलहाम हुआ कि शौचालय बना देने से देश में स्वच्छता आ जाएगी। एक मिनट के लिए भी ये नहीं सोचा कि 100 फीसदी घरों से निकलने वाला सलाना 100000 टन मल अपशिष्ट का निस्तारण कैसे होगा ? वो भी तब जब देश में मात्र 30 फीसदी मानव जनित अपशिष्ट का ट्रीटमेंट होता है, नदी में जाने से पहले।

खैर, अब 12 हजार में रद्दी बने शौचालए में शौच कीजिएगा, अपने भूजल को दूषित बनाइएगा, गन्दा पानी पी कर लीवर खराब करिएगा और 5 लाख का स्वास्थ्य बीमा ले कर गंगाराम या आईएलबीएस में लीवर ट्रांसप्लांट करवाने जाइएगा। याद रखिए, दुबारा अपने कैंपस में घुसने नहीं देंगे ये अस्पताल वाले।

यकीन न हो तो इस पोस्ट के साथ लगी इस बच्चे की तस्वीर देखिए। पृथवेश नाम है. उत्तर प्रदेश का रहने वाला 9 महीने का मासूम। बोन मैरो ट्रांसप्लांट होना था। प्राइवेट अस्पताल वालों ने 25 लाख रुपये की जरूरत बताई। अब वो बच्चा ईश्वर की गोद में है। काश दिल्ली एम्स जैसा अस्पताल होता, कानूनी पेचिदगियां न होती तो बच्चा आज इस दुनिया में खिलखिला रहा होता।

अब सोचिए, अगर उसके पास 5 लाख का बीमा भी होता तो क्या होता? बीमा तो दस लाख का था, गुडगांव के उस इंजीनियर के पास, लेकिन बेटी को डॆंगू हुआ, प्राइवेट अस्पताल वालों ने 18 लाख रुपये का बिल बनाया, तब भी बच्ची को बचाया नहीं जा सका।

तो महाराज, इलाज बीमा नहीं अस्पताल करता है. डॉक्टर करता है. अब सरकार अस्पताल नहीं खोल पा रही है तो दोष किसका......? जाहिर है, हमारा-आपका....क्योंकि हम मतदाता है और एक वोट के लिए बीमा काफी है...अस्पताल किसे चाहिए...

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