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कविता: "जिंदगी अजीब है"

सुजीत गुप्ता
25 July 2021 9:13 AM GMT
कविता: जिंदगी अजीब है
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कविता का सौंदर्य ही ऐसा है कि हम हमारी भावनाओं को सामने वाले को अहसास करा देते हैं।

कविता का सौंदर्य ही ऐसा है कि हम हमारी भावनाओं को सामने वाले को अहसास करा देते हैं। हमारी भावनाएं जैसी भी हो वो सामने वाले के हृदय में जन्म ले लेती है। कविता में भावनाएं जिंदा रहती है और शब्दों की कारीगरी होती है। एक रचनाकार अपने प्रभावपूर्ण शब्दों के चयन और लेखन से पाठकों को कविता का अहसास करा देता है, जिससे कविता की परिभाषा पाठक महसूस कर लेते हैं और इसे बताने की जरूरत नहीं पड़ती।

जिंदगी अजीब है

जिंदगी अजीब है ,करती है कभी जमकर मेहरबानियां।

थोड़ी सी पलक झपकते, ले लेती है कितनी कुर्बानियां।।

कदम कदम पर संभलना भी , सिखाती वही है।

कभी कभी इससे भी हो जाती, है बहुत नादानियां।।

ऐ जिंदगी कभी तो समझा कर, मेरे दिल का हाल।

मेरी हसरतों को तोड़ने का, क्यूं करती हो नादानियां।।

दिल कहता है कुछ , और दिखता है कुछ और।

मन कहता है अक्सर, अब तो लाओ, खुद में गहराइयां।।

हमें पता है हमसे, खफा खफा तुम रहती हो।

हमारे लिए क्यूं आ पड़ी है , इतनी सारी मजबूरियां।।

तेरी सारी बातें, सारी कसमें, वक्त की तरह बदल गए।

हम तो अब गिनते हैं बस , तेरी सारी मनमानियां।।

तसव्वुर में तुम मिलती हो अक्सर, फुर्सत में।

नज़रें मिली नहीं, फिर से कर देती हो, वही बचकानियां।।

इस दिल - ए- नादान को, कैसे संभालोगी ऐ जिंदगी।

तेरे दिल को घेर रखी है, जब गहरी खामोशियां।।

हम जो रूठ जाएंगे, कभी न फिर हम आएंगे।

हम ना रहेंगे, फिर करती रहेगी, मेरी यादें सरगोशियां।।

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"नारी"

नारी, महिला, अबला, औरत,

नारी के है नाम अनेक।

ममता, दया, प्रेम, प्यार के,

इसके दिल में भाव अनेक।।

माता बनकर प्यार लुटाती,

बहन बनकर राखी लाती।

पत्नी बनकर साथ निभाती,

बेटी का वह धर्म निभाती।।

महिला कोई हिला न सकता,

महिला के है रूप अनेक।

माता, बहन, बेटी, पत्नी,

इसको चाहे लोग अनेक।।

नारी है घर का आधार,

सदा करो तुम इसको प्यार।

अगर न होगी नारी तो,

कैसे चलेगा ये संसार।।

कवि अजय कुमार मौर्य, पी-एचडी शोधार्थी, तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी

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