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कविता: कृषक के मुखड़े पे मुस्कान छाई....'दामिनी दिखाई है'

कविता: कृषक के मुखड़े पे मुस्कान छाई....दामिनी दिखाई है
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आई बरसात ऋतु चहुँ ओर घन घोर।

मेघ बीच गर्जना में दामिनी दिखाई है।।

बदरी आकाश बीच छाई है अन्हार जस

चहुँ ओर धारा जल वृष्टि की दिखाई है

घोर जलवृष्टि अंधकार छाई चहुँ ओर

भूतल समस्त जल-जलद दिखाई है

आई बरसात ऋतु.......................।

एक ओर अकाश बीच छाई घोर बदरी

एक ओर खेत में किसान दिखलाए हैं

हाँथ में कुदाल, खाद, फावड़ा लिए हुए

घोर जलवृष्टि में भी हल को चलाए हैं

आई है तूफ़ान घनघोर जल साथ ले के

जैसे चहुँ ओर से प्रलय घोर छाई है

आई बरसात ऋतु..........................।

छत्र-छत्र छतरी समान बीच बदरी में

शीत स्वेत जल कण बूँद भी समाई है

धावे पुरवायी घन घोर अति बारिश में

जे रोम-रोम खेत की फसल मुस्काई है

डारि, द्रुम, पात हर्षात हैं सबहिं अति

खेत के हरियाली में उमंग खूब आई है

आई बरसात ऋतु...........................।

एक ओर घन-घोर एक ओर श्याम मोर

चहुँ ओर लालिमा प्रचंड सी दिखाई है

दादुर,झींगुर,पपीहा आलापते हैं राग सब

कृषक के मुखड़े पे मुस्कान छाई है

कहईं मनकामना कि चहुँ दिशि भूतल पे

घोर जल वृष्टि से प्रकृति मुस्काई है

आई बरसात ऋतु.............................।

आई बरसात ऋतु चहुँ ओर घन घोर।

मेघ बीच गर्जना में दामिनी दिखाई है।।

(शोधार्थी मनकामना शुक्ल 'पथिक' युवा कवि, आलोचक

काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से नब्बे के दशक की हिंदी कविताओं पर अनुसंधान)

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