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चुनाव का सटीक विश्लेष्ण , प्रेम कुमार मणि ,
जो जीता वही सिकंदर . गुजरात -हिमाचल के चुनाव नतीजों पर यह टिप्पणी हो रही है . कल से जाने कितनी बार यह जुमला सुन चुका हूँ . प्रेस और नेता दोनों ऐसा कह रहे हैं .
क्या सचमुच हर विजेता सिकंदर होता है ! शायद नहीं . हमारे समाज में यह धारणा नहीं है . हर विजेता को हमने सिकंदर नहीं कहा . गजनी का महमूद और गोरी भी विजेता थे और क्लाइब भी . क्या हमने उन्हें सिकंदर माना ? नहीं . पंचतंत्र की एक कथा में एक खरहे ने भी शेर को होशियारी से पराजित कर दिया था . खरहे की होशियारी जरूर चिन्हित की जाती है ,कोई उसे सिकंदर नहीं मानता .
सिकंदर होना आसान नहीं होता . उसके लिए सचमुच 'छप्पन इंच ' का सीना चाहिए . असली सिकंदर ने राजा पोरस को हराया था . हारने के बाद उसने पोरस को बुलवाया . पूछा , आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए ? कहते हैं ,पोरस का जवाब था - वैसा ही ,जैसा एक राजा दूसरे के साथ करता है . सिकंदर अपने प्रतिद्वंदी के इस जवाब पर इतना मुग्ध हुआ कि उसे गले लगा लिया और मित्र बन गया . ऐसे होते हैं सिकंदर .
कहानी अकबर की भी है . हेमू -अर्थात हेमचन्द्र विक्रमादित्य बहादुरी से लड़ा ,लेकिन हार गया . उसे पकड़ कर अकबर के पास लाया गया . तब अकबर पप्पू (केवल तेरह साल का ) था .अकबर ने हेमू को छोड़ देने के लिए कहा ,क्योंकि उस की बहादुरी से प्रभावित था . उसका मामू बैरम खान नहीं माना . उसने हेमू का सिर काट कर पूरी दिल्ली में घुमाया . कहते हैं अकबर ने बैरम खान को इसके लिए मुआफ नहीं किया .
हार -जीत की हिंदुस्तानी परिभाषा निराली है . पौराणिक राम ने पराजित रावण के पास लक्ष्मण को भेजा था ,कुछ सीखने के लिए . राम जानते थे कि रावण की हार उसकी वीरता से नहीं , विभीषण की उस मंत्रणा से हुई है ,जिसे डिवाइड एंड रूल की सनातन राज -नीति के द्वारा उन ने हासिल किया था . वह किस मुंह से रावण के पास जाते . लेकिन इतनी तमीज थी कि अपने विरोधी के प्रति सम्मान प्रदर्शित कर सकें . यह हमारी भारतीयता है ,हमारी संस्कृति है . हार हो या जीत हम नैतिकता ,वीरता और विद्वता के प्रति सम्मान दिखाते ही हैं
. 1857 में भारतीय पक्ष हार गया था . हम 1857 को ,उस हार को याद रखना चाहते हैं . क्योंकि उस हार से ही हमारी जीत का सिलसिला शुरू होता है . वह एक संघर्ष की पराजय थी . हमें संघर्षों की पराजय का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए ,यह हमारी संस्कृति नहीं है .
हम आदरपूर्वक अपने प्रधानमंत्री मोदी से भी कुछ कहना चाहते हैं . हर कोई अपने प्रधानमंत्री पर गर्व करना चाहेगा . लेकिन पीएम को उसके लायक बनना चाहिए . पीएम की बचकानी हरकतों से कई दफा निराशा होती है , क्षोभ भी .
मोदी जी आप बार -बार कांग्रेस मुक्त भारत की जो बात करते हैं , आपको नहीं लगता कि यह कितनी बचकानी बात है ? जनतंत्र में प्रतिपक्ष का बहुत महत्व होता है .जैसे साहित्य और कला में आलोचना का होता है . प्रतिपक्ष कमजोर होने का अर्थ है मुल्क में फासिज़्म और तानाशाही आने जा रही है .पूजा और प्रशस्ति केवल पाखंड का सृजन करते हैं . नेहरू जी प्रतिपक्ष पर ध्यान देते थे . अटल जी उनके जमाने में ही संसद में आये . कहते हैं नेहरू ने उनके भाषण की तारीफ़ सार्वजनिक रूप से की . आपको इन सब से सीखना चाहिए . आपको नहीं लगता कि गुजरात में चार ' बच्चों '- जिग्नेश, हार्दिक , अल्पेश और राहुल (JHAR ) ने आपको पानी पिला दिया . रावण रथी ,विरथ रघुवीरा वाली लड़ाई थी . आपको अपना पुष्पक विमान -सी प्लेन - संभालना पड़ा .हिमाचल में आपकी नैय्या भ्रष्टाचार के प्रतीक सुखराम के भरोसे पार लगी . कहाँ चली गई भ्रष्टाचार के खिलाफ आपकी मुहीम ,जिसका हवाला हमारे बिहार में आप देते रहे हैं . ये सब अनैतिक था ,जो आपने किया . और इन सब के सहारे आज आप जीत गए हैं . यह खरहे -लोमड़ी की जीत है . चालाकी और अनैतिकता की जीत . इस जीत पर मैं आपको बधाई नहीं ,आत्ममंथन की सलाह दूंगा ,क्योंकि जानकारी मिली है कि आप गहरे आध्यात्मिक अभिरुचि के हैं.
प्रेम कुमार मणि
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