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Sarvapriya Sangwan: पत्रकार सर्वप्रिय सांगवान ने लिखी भावुक पोस्ट, ख़ुशक़िस्मत थी कि एनडीटीवी में काम करने का मौक़ा मिला

Shiv Kumar Mishra
30 Nov 2022 5:25 AM GMT
Sarvapriya Sangwan: पत्रकार सर्वप्रिय सांगवान ने लिखी भावुक पोस्ट, ख़ुशक़िस्मत थी कि एनडीटीवी में काम करने का मौक़ा मिला
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जब टीवी पर आयी तो लोगों को लगा कि मैं राधिका रॉय या रवीश कुमार की रिश्तेदार हूँ।

ख़ुशक़िस्मत थी कि एनडीटीवी में काम करने का मौक़ा मिला। मैं जो भी हूँ, उसमें इस संस्थान से मिली शिक्षा, समझ और आत्मविश्वास का बहुत बड़ा योगदान है। डिप्लोमा, internship, guest coordination से लेकर रिपोर्टर और एंकर बनने तक का सफ़र तय किया। वो भी ऐसी जगह जहां मेरी जाति, क्षेत्र, संस्थान, जान-पहचान तक का कोई नहीं था।

जब टीवी पर आयी तो लोगों को लगा कि मैं राधिका रॉय या रवीश कुमार की रिश्तेदार हूँ। इनकी नहीं तो किसी और की रिश्तेदार हूँ। जबकि सच यही है कि इस जगह ने बिना ये सब देखे, सिर्फ़ मुझ पर भरोसा किया। अभी गुजरात चुनाव चल रहे हैं, उसी से याद आता है कि औनिंदयो सर ने पहली बार 2012 गुजरात इलेक्शन के दौरान मेरी तारीफ़ की थी। एक बहुत ही छोटे से काम के लिए जिसे ज़्यादातर लोग फ़ालतू काम समझते होंगे। लेकिन उस दिन मुझे भरोसा हुआ कि आपने कोई छोटा काम अनुशासन और लगन से किया है तो यहाँ वो भी नज़रंदाज़ नहीं होता।

2013 में NEET पर प्रोग्राम हो रहा था तो मेरे points सुन कर कादम्बिनी मैम ने अपने प्राइम टाइम पर इतने बड़े-बड़े एक्स्पर्ट्स के साथ पैनल में बैठा दिया। टीवी पर ये मेरा पहली बार था। कौन करता है ऐसे ही किसी के लिए भी। क्या पता मेरी वजह से उनका प्रोग्राम ख़राब हो जाता पर उन्होंने भरोसा किया। डेंटल कॉलेज में मुझे इस बात के लिए डाँट पड़ी है कि मैंने HOD को भूल से नमस्ते नहीं की थी। यहाँ प्रनॉय रॉय सर खुद सामने से आपको सर झुका कर मुस्कान के साथ हेलो करते थे। इसलिए ये संस्थान मेरा स्कूल था। सिर्फ़ पत्रकारिता का नहीं, ज़िंदगी का भी।

पाँच साल पहले इस जगह से विदा लेना मेरे लिए इतना कठिन था कि मैंने कई दिन तक ज़ाहिर ही नहीं किया कि मैं एनडीटीवी छोड़ चुकी हूँ। मैंने वहाँ इस संस्थान का बहुत अच्छा वक़्त देखा है। आगे क्या होगा पता नहीं। लेकिन इस तरह का संस्थान और वर्क कल्चर एक दिन में नहीं बनता और ना किसी एक व्यक्ति से। बहुत कुछ है लिखने को लेकिन भावुकता में ज़्यादा लिखना नहीं चाहती। बाक़ी फिर कभी।

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