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सिमरिया, दिनकर, साहित्य महाकुंभ और मोरारी बापू...
पिछले गुरूवार की देऱ रात सिमरिया साहित्य महाकुंभ आयोजन समिति के सदस्य संजय जी जिन्हें हम लोग नेता जी बोलते है का फोन आया अशोक बाबू एक आदमी आपसे बात करना चाहते हैं अगर आप उनकी आवाज पहचान जायेगें तो हम पचास लाख रूपया देगे . यह कहकर उन्होने मोबाइल सामने वाले को थमा दी तो उधर से फोन आया भैया प्रणाम. यह पुखराज जी की आवाज थी . मैने पुखराज जी को कहा कि संजय जी को बोल दीजिये वह पचास लाख रूपया आयोजन समिति में देदें . पुखराज जी और हम करीब 10 वर्षो तक ई टी वी में साथ रहे . वह अभी न्यूज 18 में हैदराबाद में है. स्वभाव के संत और विचार से बड़े ब्रह्रषि. खैर बातचीत शुरू होते ही उन्होनें साहित्य कुंभ में आने का निमंत्रण दिया .
इसके पूर्व संजय जी समेत अनके सदस्यो ने भी आग्रह की औपचारिकता को निभाया था.आस्तिक होने के बावजूद मैं साधु संतो के करीब जाने से परहेज करता हूं. इसकी वजह मेरा पी एच डी का थिसिस रहा है. आदरणीय गुरूदेव डा0 सुनील चंद्र मिश्रा जी की कृपा से जब मुझे पी एच डी की डिग्री प्रदान करने की औपचारिकता निभायी जा रही थी तो मेरे एक्सटर्नल ने पूछा था कि गांधी और मार्क्स के सिद्दांत में मूल अंतर क्या है.जैसा कि मुझे जानकारी थी कि गांधी का विचार था कि लक्ष्य ( साध्य ) की प्राप्ति के लिये साधन का भी पवित्र होना जरूरी है. जबकि मार्क्स लक्ष्य की प्राप्ति के लिये किसी भी साधन के उपयोग को सही मानते थे. आज के बाबाओ को जब मै देखता हूं तो मुझे उनके अगल - बगल रहने बाले लोगो को चेहरे निर्मल नही दिखते . इस लिये मै बार - बार कहता हूं कि पानी पीजै छान के और गुरू कीजै जान के. हां लेकिन में सभी संतो का आदर करता हूं और उनके विचारो को सुनता भी हूं. खैर इस पर फिर बहस बाद में. अब मै मूल विषय पर आता हूं. सिमरिया में दिनकर जी के नाम पर साहित्य का कुंभ लगा हो और मुझे भी आमंत्रण यह मेरे लिये खुशी की बात थी. वजह राष्ट्रकवि दिनकर जी को नजदीक से देखने का सौभाग्य हमे मिला है. आर के सी हाईस्कूल के छात्र होने के कारण हमारे हिंदी के शिक्षक स्व लक्ष्मीनारायण शर्मा मुकुर जी की कृपा से आदरणीय दिनकर जी , आर सी प्रसाद सिंह , केदार नाथ मिश्र प्रभात समेत अनेक कवियो का सस्वर पाठ हमने बचपन में सुना है. दिनकर जी को नजदीक से देखा और सुना नही जिया भी है.
मुझे पूरी तरह से याद है कि बिहार में क्षेत्रीय चैनल के रूप में जब ई टी वी आया तो दिनकर जी की जयंति और पुण्य तिथि पर मैने हर बार अच्छी स्टोरी की थी जो काफी चर्चित रही. दिनकर के रश्मि रथी की वह पंक्ति दो न्याय अगर तो आधा दो , उसमें भी कोई बाधा हो हमने सैकड़ो बार इसे विभिन्न प्रसंगो में उद्धृत किया. खैर जब सिमरिया में दिनकर जी के नाम पर साहित्य कुंभ के आयोजन की जानकारी मिली तो मेरे जेहन में बार - बार यह सवाल कौध रहा था कि आखिर देश और दुनिया की बात तो छोड़े दिनकर के परिवार के लोग या फिर सिमरिया के वह बुद्दिजीवि जिन्होनें दिनकर जी के नाम पर कई दुकाने खोल रखी है उन्होनें अब तक सिमरिया घाट में यह आयोजन क्यो नही किया. आदरणीय संत मोरारी बापू के हृदय में दिनकर कैसे प्रवेश कर गये. खैर कारण जो भी हो दिनकर जी कृपा कहे मुझे अवकाश मिला और घर पहुंचा तो अपने मित्र अमरनाथ मुरारका उर्फ टीपू जी जो अच्छे मार्गदर्शक भी है से मैने सलाह ली और उन्होनें सिमरिया जाने के लिये हामी ही नही पूरी तरह निर्देशित भी किया. बाद में मैडम ने भी साथ चलने की सलाह दी. जब मै साहित्य कुंभ स्थल पहुंचा तो मेरे मन में कई तरह के सवाल थे कि अभी तो मोरारी बापू जी का राम कथा होगा इसका साहित्य से क्या लेना देना. लेकिन सच कहूं डा0 राजेन्द्र प्रसाद जी के जन्म दिन के बहाने आदरणीय बापू ने दिनकर जी के बारे में जो कुछ कहा शायद बड़े - बड़े साहित्यकार भी ऐसा नही कह सकते जैसा मैं समझता हूं. बापू ने मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नौ खोज का विस्तृत वर्णन किया. जिसमें अहिल्या और शबरी समाज की उस पंक्ति की महिला है जो समाज से वहिष्कृत और श्रापित है जिन्हें राम ने उद्दार किया तो महर्षि बाल्मिकी जिन्हें आदि कवि कहा जाता है की भी खोज की.
दूसरी तरफ आधुनिक युग में दिनकर ऐसे आजादी कवि हुए जिन्होनें उस कर्ण की खोज की जिसके माता - पिता और जाति की कौन कहे पूरे समाज ने जिसे तिरस्कृत कर रखा था लेकिन अपने पौरूष के बल पर वह दिनकर का नायक बनता है. यानि राम समाज के मर्यादा पुरूषोत्तम है तो दिनकर साहित्य के. मोरारीबापू ने संत के चरित्र का भी बेहतर तरीके से वर्णन किया. चूंकि लिखने को काफी है. लेकिन मेरी समझ है कि दिनकर को एक संत ने जिस तरह से समझा है कई नामचीन साहित्यकारो ने भी उस तरह वर्णन नही किया है. दिनकर जयंति और पुण्यतिथि के बहाने दर्जनो विद्वानो को सुनने का अवसर मुझे भी मिला है मै कह सकता हूं कि दिनकर जी के बारे मेंमोरारी बापू जी का संबोधन किसी बड़े साहित्यकार से कम नही. शायद में मन में कौध रहे सवाल का जबाव बापू ने व्यास पीठ से दिया था.आज के जमाने में किसी भी छोटे या बडे़ आयोजन की आलोचना होती है होनी भी चाहिये . कार्यक्रम की भव्यता. साहित्यकारो की उपस्थिति पर भी मै कुछ कहना मुनासिब नही समझता . लेकिन मै इतना जरूर कहना चाहता हूं कि हमें अपने दिनकर पर इतना गर्व तो जरूर होना चाहिये कि बापू की ( गांधी )की मिट्टी से आये दूसरे बापू ने हमारे दिनकर को नजदीक से जाना की नही साहित्य का कुंभ लगाने में कोई कसर नही छोड़ी.साहित्य कुंभ में आयोजन समिति के मुख्य कर्ता धर्ता विपिन ईश्वर जी , संजय जी . पुखराज जी पूर्व विधायक ललन कुंवर जी के अलावे राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश बाबू , जहानाबाद सासद अरूण कुमार समेत अनेक समाज सेवियो के भी दर्शन हुए. एक आग्रह आप सबसे दुराग्रह छोड़िये और साहित्य महाकुंभ में संत मोरारी बापू का एक बार सिमरिया जाकर नजदीक से दर्शन कीजिये ताकि दिनकर जी की आत्मा को भी शांति मिले कि मेरी धरती के लोगों ने एक बार फिर मुझे याद किया.
लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार है