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Big disclosure of Sonu Sood's Income Tax Raid,: सोनू सूद के खिलाफ कार्रवाई पर स्पेशल रिपोर्ट

Shiv Kumar Mishra
16 Sep 2021 7:17 AM GMT
Big disclosure of Sonu Soods Income Tax Raid,: सोनू सूद के खिलाफ कार्रवाई पर स्पेशल रिपोर्ट
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Big disclosure of Sonu Sood's Income Tax Raid,

संजय कुमार सिंह

इस देश में परोपकार के अपने संकट हैं। इस सरकार ने तो तमाम एनजीओ और ट्रस्टों को बंद करवाकर तथा विदेशी चंदे पर प्रतिबंध लगाकर इसे साबित कर दिया है। मेरा मानना है कि विदेशी चंदा तो मुफ्त में मिलता है और अगर लोग बेईमानी भी करें तो देश हित में कुछ न कुछ काम होता ही है पर सरकार नहीं चाहती कि ऐसा काम करने वाले उसके खिलाफ बोल भी सकें। इसलिए बंद करवाया गया है। ऐसे में सोनू सूद जैसों के बारे में माथा पच्ची करने का कोई मतलब नहीं है। अगर आपको याद हो, वर्षों पहले एक पंजाबी गायक को कबूतर बाजी में फंसा दिया गया था। बाद में कुछ नहीं मिला (या सौदा हो गया)।

मोटे तौर पर मामला यही था कि जनसेवा के लिए पैसे हैं तो हमारा हिस्सा (सिस्टम का) भी दो। और नहीं दिया तो फंसा दिया गया। बाद में सौदा हुआ या समझौता जब सबूत नहीं मिला तो सिस्टम के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई? सिस्टम संजीव भट्ट जैसों के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों करता है यह बताने की जरूरत नहीं है। जाहिर है सिस्टम शामिल था। बदले में क्या हुआ, लोकोपकार बंद हो गया। नुकसान जनहित का हुआ। वह कांग्रेस का जमाना था। इसलिए मान लीजिए कि सरकारें नहीं चाहती कि कोई अपने पैसे से या (चंदे के पैसे से) जन सेवा करे। जो कर पाता है वह सिस्टम के सहयोग (या इच्छा) से ही कर पाता है वरना विनीत नारायण का उदाहरण भी है। विनीत नारायण रोज लिख रहे हैं। उन्हें मीडिया तो छोड़िए, सोशल मीडिया पर कितना समर्थन है?

इसका कारण आप चाहे जो मानिए मैं यही मानता हूं कि सिस्टम से अलग कोई नहीं है। हम आप सब उसकी राजनीति, उसके प्रचार और उसके प्रभाव या रोने से प्रभावित हैं। इसमें राजनीति चाहे जितनी हो राजनीतिक दल अलग नहीं हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए हम चाहे जितना लिखे बोलें, एक मित्र (गिरीश मालवीय) की राय का विरोध करने वाले एक मित्र (समर अनार्य) ने मुझे अनफ्रेंड कर दिया। मतलब गिरीश मालवीय से आपको असहमति है, उसे रोकने के लिए आप वही कर रहे हैं जो कर सकते हैं या सरकारें वही करती हैं। फिर आप और सरकार (किसी भी पार्टी की) में क्या अंतर हुआ। आप गिरीश मालवीय (के गलत विचारों को भी) से असहमत होइए पर उसके विचार को फैलाने से अपने तरीके से रोक ही तो रहे हैं। वह भी तब जब धर्मनिरपेक्ष देश में हिन्दुत्व का प्रचार नहीं रुक रहा है बल्कि बढ़ ही गया है। हम सोनू सूद में या आपस में उलझे हुए हैं।

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