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अवधेश कुमार
फिल्म पद्मावत को लेकर देश में जिस तरह का वातावरण बना है वो निश्चय ही चिंताजनक है। आज अहमदाबाद में एक मल्टीप्लेक्स द्वारा यह साफ करने के बावजूद कि वह फिल्म पद्मावत का प्रदर्शन नहीं करने जा रहा है, करणी सेना के नाम से आए लोगों ने जिस तरह का आतंक फैलाया उसका कतई समर्थन नहीं किया जा सकता। बाहर खड़े करीब दर्जन भर मोटरबाइक जला डाले गए, अगल-बगल के दूकानों को भी नुकसान हुआ। लोग भय से भाग रहे थे और ये आगजनी कर रहे थे।
इस तरह की धमकी करणी सेना और कुछ दूसरे संगठनों के नाम पर पहले से दिए जा रहे हैं। कोई गर्दन उतारने पर इनाम की घोषणा कर रहा है तो कोई नाक कान काटने पर। अजीब स्थिति है। देश के अनेक शहरों में पहले से छोटे स्तरों पर तोड़फोड़ और आगजनी हो चुकी है। यह कौन सा विरोध का तरीका है? आतंक पैदा करना किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती।
मैं पद्मावत फिल्म पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। हालांकि जिन लोगों ने फिल्म देखी है उनका मानना है कि उसमें रानी पद्मावती की गरिमा को कहीं भी कम नहीं किया गया है। अलाउद्दीन खिलजी के साथ कल्पना में भी उनके प्यार के दृश्य नहीं है। शायद पहले रहा हो और विरोध के बाद हटा दिया गया हो। अलाउद्दीन खिलजी यदि रानी पद्मावती के सौंदर्य पर आसक्त था तो उसने अनेक बार कल्पनाएं की होंगी, जगे में सपने देखे होंगे। उन्हें फिल्म में दिखाया भी जाए तो इसका अर्थ यह नहीं हो गया कि वाकई रानी पद्मावती उनसे प्रेम कर रहीं हैं। लेकिन जब ऐसा दृश्य है ही नहीं तो फिर इस पर चर्चा क्यों।
बावजूद इसके कुछ लोगों को लगता है कि फिल्म उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है तो उनको विरोध करने का अधिकार है। लोकतंत्र अनौचित्य विरोध का भी अधिकार देता है। किंतु विरोध विरोध के तरीके से होना चाहिए। यदि आपको फिल्म के विरोध करने का अधिकार है तो किसी को फिल्म का समर्थन करने का। यदि आप मानते हैं कि इस फिल्म को नहीं देखना चाहिए तो कोई उसे देखना चाहेगा। आप उसे जबरन विरोध करने या न देखने के लिए मजबूर करेंगे तो यह अपराध है, आतंक है। आप शांतिपूर्वक अहिंसक तरीके से विरोध करिए। आपको कोई नहीं रोक रहा। हालांकि यह जरुर विचार करना चाहिए कि क्या विरोध का वाकई औचित्य है।
यह न भूलना चाहिए कि रानी पद्मावती का जौहर एक-एक भारतीय की रुह कंपा देती है और अपनी पूर्वज महिलाओं के प्रति गहरे सम्मान का भाव पैदा करती है। रानी पद्मावती का जौहर हमारे इतिहास का ऐसा अध्याय है जो बहुत कुछ सीख देता है। वो आत्मचिंतन और प्रेरणा दोनों का अध्याय है। जो लोग आज अपने का रानी पद्मावती का वंशज जाति के आधार पर स्वयं को करार दे रहे हैं वो उनके बलिदान को काफी छोटा कर रहे हैं। रानी पद्मावती किसी एक जाति में पैदा हुईं थीं लेकिन वो पूरे भारत की मां हैं। पूरे भारत में स्त्री की सतीत्व का प्रतीक हैं। किसी एक जाति में उसको बांधना उनके बलिदान के साथ अन्याय करना है।
पूर्वजों के जातीयकरण का एक खतरनाक अध्याय हमारे देश में हो रहा है जो काफी चिंताजनक है। इससे समाज बंटता है, टूटता है। यह प्रवृत्ति रुकनी चाहिए। अंत में मैं यही कहूंगा इस तरह के आतंककारी विरोध का मैं विरोध करता हूं।
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