हमसे जुड़ें

' घिर रहा अवसाद में ' : नवगीत

Desk Editor
2 Aug 2021 6:23 AM GMT
 घिर रहा अवसाद में  : नवगीत
x

' घिर रहा अवसाद में '

छल भरी आश्वस्तियों से दग्ध होकर

घिर रहा अवसाद में

असमय युवामन

लक्ष्य के ऊँचे

कंगूरों पर टिकी जो

कामना गतिहीन होकर

हाँफती है

फँस गये प्रतियोगिता के

किस समर में

हर युवक की रूह डर कर

काँपती है

हौसलों के भी तरुण व्यायाम करता

देखता है नीतियों का

शीलभंजन

जब नहीं विस्तार

मिल पाया कथा को

तब प्रतीकों का

किसे आँचल मिलेगा

जब चरित्रों के

पतन की हो नुमायश

शब्द-चित्रों को

कहाँ तब बल मिलेगा

ऊर्जा की हरित-पट्टी अतिक्रमित है

कहाँ जाकर साँस ले

उद्विग्न उपवन

आग की चिंगारियां

बिखरी पड़ीं हों

तब घृणा या द्वेष का

क्या आकलन है

तर्जनी अपनी उठाकर

किसे कह दें

हाँ यही है, बस यही

दोषी सघन है

रोज संचित हो रहा आक्रोश मन में

कब युवा कर जाय

सीमा का उल्लंघन

जगदीश पंकज

*********

Next Story