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महिला अस्मिता पर राजनीति का ग्रहण

News Desk Editor
20 Aug 2022 6:06 PM GMT
महिला अस्मिता पर राजनीति का ग्रहण
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नारी सम्मान को शर्मसार करती ऐसी ही कुछ घटनाएं हुई हैं जो सरकार के नारी सशक्तीकरण के दावों को धता बता रही हैं।


आदित्य पासवान

जनतंत्र में कानून और अदालत सर्वोपरि है लेकिन अफ़सोस भारत में अब ये बात गुजरे जमाने की लगती हैं। यहां कानून को उन लोगों के आगे झुकना पड़ता है जो दोषी ठहराए जाने के बाद भी माननीय बने रहते हैं। नारी सम्मान को शर्मसार करती ऐसी ही कुछ घटनाएं हुई हैं जो सरकार के नारी सशक्तीकरण के दावों को धता बता रही हैं।

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान 5 माह की गर्भवती बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के 7 सदस्यों के हत्या मामले के सभी 11 दोषी 15 अगस्त को जेल से बाहर आ गए । राज्य सरकार की रेमिशन पॉलिसी (माफी नीति के तहत स्वतंत्रता दिवस पर सभी को रिहा कर दिया गया।

किसी भी क्षमा नीति के तहत ऐसे बलात्कारियों की रिहाई के पीछे की भावना का मकसद कितना गंदा हो सकता है इसे दिल से समझने की जरूरत है और वाकई यह रिहाई नारी सम्मान को शर्मसार करती है , जिसकी चर्चा पीएम मोदी ने स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ पर अपने भाषण में की थी । और फिर इसी दौरान एक तरफ़ लाल क़िले से महिलाओं के उत्थान पे ज्ञान बाँटा जा रहा था और वहीं दूसरी तरफ़ भाजपा के चमकते सितारे शाहनवाज़ हुसैन पे बलात्कार जैसा घिनौना इल्ज़ाम लगाया गया ।हमेशा की तरह अपनी पद का दुरुपयोग होगा, क़ानून को कठपुतली की तरह नचाया जाएगा और अदालतों की मंडी सजेगी और आइटी सेल सोशल मीडिया पे जम के मुजरा करेगा पर नतीजा क्या होगा सबको पता है ।

अब तक ऐसा ही तो होता आया है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस तस्वीर को बदलने की ताकत भी जनता के पास ही है..! जिस दिन लोग अपने वोट की ताकत को पहचान जाएंगे उस दिन किसी भी दल का कोई दागी नेता चुनाव जीतना तो दूर चुनाव लड़ने की भी नहीं सोचेगा लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या कभी ऐसा होगा..?

( लेखक कांग्रेस पार्टी के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के बिहार प्रदेश के प्रवक्ता हैं)

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