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साहित्य में व्यंग्य का जादूगर

Desk Editor
26 Sep 2021 10:36 AM GMT
साहित्य में व्यंग्य का जादूगर
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पागलखाना' बाज़ारवाद के प्रतिरोध की एक सशक्त कृति है। श्रीलाल शुक्ल कृत 'राग दरबारी' में वर्णित गांव का यथार्थ आज किस कदर भयावह होता चला गया है इस पर ज्ञान जी का हालिया प्रकाशित व्यंग्य उपन्यास 'स्वांग' एक बड़ी रचनात्मक टिप्पणी करता है

राहुल देव

वर्तमान समय के सर्वाधिक समर्थ व्यंग्यकार डॉ ज्ञान चतुर्वेदी इस साल 26 सितंबर को 70 वर्ष के हो गए। सन 1971 में 'धर्मयुग' से अपने व्यंग्य लेखन की शुरुआत करने वाले पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी देश के एक जाने-माने हृदय रोग चिकित्सक भी हैं। उनकी रचनाशीलता का यह स्वर्ण जयंती वर्ष भी है।

समकालीन व्यंग्य में लोकप्रियता और साहित्यिकता को एक साथ साधने वाले विरल लेखक हैं ज्ञान चतुर्वेदी। वे अब तक लगभग हज़ार से अधिक व्यंग्य रचनाएं लिख चुके हैं और अभी भी पूरी ऊर्जा के साथ समर्पित होकर लिख रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने 6 उपन्यास भी लिखे हैं। जोकि पर्याप्त रूप से चर्चा में रहे हैं। फिर चाहे वह 'नरकयात्रा' हो या 'बारामासी'। वह हमारे समय के एक अत्यंत प्रतिभाशाली कथाकार के रूप में समादृत हैं। अपने लोकजीवन को देखने का उनका नजरिया एकदम अलग है। उनकी व्यंग्य भाषा और विषय को बरतने का तरीका एकदम जुदा है। उनकी यही मौलिकता उनकी पहचान है।

ज्ञान जी का जन्म बुंदेलखंड की मिट्टी में हुआ जिसकी गंध हमें उनकी रचनाओं में मिलती है। बुंदेलखंड और बुंदेलखंड के लोग उनकी कृतियों में मानो सजीव होकर बोलते हैं। उनके आंचलिक पात्र जहां अपने रंग-रूप और भाषा में अपने अक्खड़ संस्कार नहीं भूलते वहीं तमाम जद्दोजहद के बावजूद आत्मीयता के क्षणों में वे अपनी करुणा से आपको अपना भी बना लेते हैं। इस अनायास प्रयास में ऐसा गद्य संभव होता है जो पढ़ते ही आपको बांध लेता है। इसकी पकड़ में चरित्रों और पाठकों के बीच आनंद और पीड़ा का सहानुभूतिपूर्ण अनुभव साझा होता है।

एक व्यंग्य लेखक के रूप में ज्ञान चतुर्वेदी की विशेषता है उनकी सरल-सहज भाषा से उपजी पठनीयता व सहज ग्राह्यता। उन्होंने लेखन में दोहराव से अपने आप को भरसक बचाया है और प्रयोग करने से पीछे नहीं हटे हैं। उनका उपन्यास 'पागलखाना' बाज़ारवाद के प्रतिरोध की एक सशक्त कृति है। श्रीलाल शुक्ल कृत 'राग दरबारी' में वर्णित गांव का यथार्थ आज किस कदर भयावह होता चला गया है इस पर ज्ञान जी का हालिया प्रकाशित व्यंग्य उपन्यास 'स्वांग' एक बड़ी रचनात्मक टिप्पणी करता है। ज्ञान चतुर्वेदी अपने व्यंग्यों में संवाद शैली के तो जैसे एक्सपर्ट हैं तो वही कथात्मक व्यंग्यों में मनोवैज्ञानिक चरित्र विश्लेषण और फेंटेसी के विविध प्रयोग उनके यहां उपस्थित मिलते हैं। अपने अभिव्यक्ति कौशल में-अपनी कहन में करुणा और हास्य का उतार-चढ़ाव जहां भाव और शिल्प को गढ़ता है तो वही बिटवीन द लाइंस विचार संप्रेषण प्रवृत्तियों को लेकर उनकी जनपक्षधर समझ को उद्घाटित करते हैं। ज्ञान चतुर्वेदी का विसंगति बोध और व्यंग्यदृष्टि में मौजूद गहरी लोकसंपृक्तता और विट उन्हें हमारे समय का महत्वपूर्ण व्यंग्य लेखक बनाता है।

अपनी रचनाओं में जीवन का कोई भी क्षेत्र उनकी नजरों से बच नहीं सका है लगभग हर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, साहित्यिक विसंगति पर उन्होंने करारा कटाक्ष किया है और परसाई और शरद जोशी द्वारा सौंपी गई व्यंग्य विधा की परंपरा को ऊपर की ओर ले जाने का काम पूरी गंभीरता से किया है। उनके लेखन में अपने समय का यथार्थ पूरी निर्ममता के साथ व्यक्त हुआ है। उन्होंने लिखकर अपने आप को हिंदी व्यंग्य का सच्चा उत्तराधिकारी सिद्ध किया है।

व्यंग्य विधा को जीवन भर जीते रहने वाले ज्ञान चतुर्वेदी न सिर्फ अपने कृतित्व बल्कि व्यक्तित्व में भी बेहद जिंदादिल आदमी हैं। जैसी मोहब्बत उनके पाठक उनसे करते हैं वह भी अपने पाठकों से उतना ही प्यार करते हैं। जीवन के 70 बसंत पार कर लेने के बाद भी वे ऐसे हैं कि किसी युवा को मात कर दें। निरंतर बेहतरी की यह भूख आपमे हमेशा बनी रहे इस कामना और विश्वास के साथ प्रिय लेखक को जन्मदिन की खूब बधाई और शुभकामनाएं!


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