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मंदिर मस्जिद तो बनते रहेंगे साहब आओ मिलकर बनाएं इंसानियत का पुल, जानिए भाईचारे की ये बातें

Shiv Kumar Mishra
17 Sep 2020 10:09 AM GMT
मंदिर मस्जिद तो बनते रहेंगे साहब आओ मिलकर बनाएं इंसानियत का पुल, जानिए भाईचारे की ये बातें
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आईये मैं आपका परिचय कराता हूं इन नायकों से ।

मानवता ही धर्म हमारा ।

ना करना अब

हिंदू और मुसलमान ।

आओ अब हम इंसान

बन जाए,

मैं गीता पढूँ, तुम कुरान ।

ना बांटो हमको

रहने दो, हमको इंसान ।।

मंदिर मस्जिद तो बनते रहेंगे साहब आओ मिलकर बनाएं इंसानियत का पुल,जिस पर आने वाली पीढ़ी चले दिलों में नफरत की आग बुझे और हर इंसान के दिल में इंसानियत और करुणा की लो जले। भारत माता का मान सम्मान पूरे विश्व में फैले।

कवि प्रदीप ने क्या खूब लिखा था, इस दौर में यह पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती है। इस दौर में सच्चे और अच्छे देश भक्त मौजूद है। जिनकी वजह से हम अब भी कह सकते हैं, मेरा भारत महान । कुछ नायक जो नज़रों से दूर रहकर, ऐसा काम कर रहे हैं जिसकी वजह से हमारे देश का मान सम्मान बढ़ा है। हम लोगों ने इतने पाप किए हैं, पर इन सच्चे नायकों की वजह से भारत की आन ,बानऔर शान कायम है।

कवि प्रदीप ने लिखा था,

राम के भक्त,रहीम के बन्दे,रचते आज फरेब के फंदे, कितने ये मक्कार ये अंधे,देख लिए इनके भी धंधे,इन्हीं की काली करतूतों से हुआ ये मुल्क मशान,कितना बदल गया इंसान।

जो हम आपस में ना झगड़ते,बने हुए क्यूँ खेल बिगड़ते,काहे लाखो घर ये उजड़ते,क्यूँ ये बच्चे माँ से बिछड़ते,फूट-फूट कर क्यों रोते , कितना बदल गया इंसान ।

वैसे तो हमारे देश में बहुत सारे कर्मठ एवं सच्चे नायक मौजूद है, पर कुछ नामों का मैं जरूर ज़िकर करूंगा । इन सच्चे नायको ने

धर्म रुपी दीवार को ढहा दिया जहां एक और हिंदू मुसलमानों की बहस होती रहती है और एक दूसरे को नफरत की नजरों से देखा जाता है, पर इन नायकों ने जो प्रेम की गंगा बहाई है,आज यह पूरे विश्व में मिसाल बन कर सामने आई है।

वही हमारे नेता नफरतों का कटोरा हाथ में लिए वोट रूपी भीख मांगते फिर रहे हैं, कोई हिंदू वोट की भीख मांग रहा है, तो कोई मुस्लिम वोटों की भीख ।

आईये मैं आपका परिचय कराता हूं इन नायकों से ।

गौतम महतो,अजय पासवान बिहार के नालंदा जिला के बेन प्रखंड के माड़ी गांव के रहने वाले इन्होंने जो मिसाल पेश की है। जिसको पढ़ कर आप भी यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे, यह इंसान है या फरिश्ते। गौतम महतो एवं अजय पासवान का परिवार उनके गांव की एक मस्जिद की देखभाल करते हैं,हिन्दू-मुसलमान के बीच भेद पैदा करने वालों के खिलाफ बिहार का नालंदा जिला मिसाल बनकर सामने आया है। नालंदा जिले के बेन प्रखंड के माड़ी गांव के लोगों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की ऐसी मिसाल पेश की है,जो दुनिया के लिए एक मिसाल बन गई है।

दरअसल मारी गांव के हिन्दू अपने गांव में स्थित एक मस्जिद की न सिर्फ देख-रेख करते हैं बल्कि इस मस्जिद में पांचों वक्त अज़ान से लेकर मस्जिद का रख-रखाव और रंगाई-पुताई का जिम्मा भी हिन्दू परिवार वालों ने उठा रखा है ।

इस गांव में एक भी घर मुस्लिम का नहीं है,क्योंकि काम और बेरोजगारी के आलम ने इस गांव से उन्हें पलायन करने को मजबूर कर दिया,अब चूकि गांव में मुसलमान नहीं हैं, तो ऐसे में इस गांव के हिन्दू अनूठी गंगा-जमुनी तहज़ीब की संस्कृति की मिसाल पेश कर रहे हैं ।

इस मस्जिद में हर दिन पांचों वक्त की अज़ान होती है, हिन्दूओं को अज़ान देनी नहीं आती तो वे लोग पेन ड्राइव की मदद लेते हैं। पूरे गांव के लोग इसमे बढ़ चढक़र सहयोग करते हैं,मस्जिद की सफाई का जिम्मा गौतम महतो, अजय पासवान के जिम्मे है ।

हमारे दूसरे नायक हैं, मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश के रामवीर कश्यप मिस्त्री का काम करते हैं। जेब है छोटी पर ऊपर वाले ने दिल बहुत बड़ा बनाया है।

उत्तर-प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के नन्हेड़ा गाँव में पिछले 25 सालों से एक मिस्त्री लगभग 120 साल पुरानी मस्जिद का रख-रखाव कर रहा है। 59 वर्षीय रामवीर कश्यप के लिए यह उनका 'धार्मिक' कर्तव्य है।

आश्चर्य की बात यह है,कि इस गाँव में एक भी मुसलमान व्यक्ति नहीं है। नन्हेड़ा गाँव में ज्यादातर हिन्दू धर्म के लोग रहते हैं, जिनमें जाट समुदाय बहुसंख्यक है। गाँव के प्रधान दारा सिंह ने बताया कि गाँव में से आखिरी मुस्लिम परिवार ने लगभग 50 साल पहले ही गाँव छोड़ दिया था। उसके बाद से यहां कोई मुस्लिम परिवार नहीं आया। लेकिन रामवीर ने मस्जिद की रखवाली में कोई कमी नहीं आने दी। रामवीर हर रोज़ मस्जिद में झाड़ू लगाते हैं, और शाम को यहां मोमबत्ती भी जलाते हैं। साल में एक बार रमज़ान से पहले वे मस्जिद में रंग-रोगन का कार्य भी करवाते हैं।

हमारे तीसरे नायक है,कश्मीर के पहलगाम में बटकोट के रहने वाले गुलाम हसन मलिक ।

गुलाम हसन मलिक गांव के नंबरदार है ,उनकी उम्र 60 वर्ष हो गई है,मलिक उस परिवार की सातवीं पीढ़ी से हैं, जिन्होंने अमरनाथ गुफा को खोजा था. अमरनाथ गुफा की खोज करीब पांच सौ बरस पहले बुटे मलिक ने की थी। वह साल 1970 से अमरनाथ यात्रा के साथ जुड़े हैं,

और आज भी अमरनाथ यात्रियों की सेवा कर रहे हैं, चेहरे पर दाढ़ी सर पर टोपी माथे पर केसरी चुनरी बंधी हुई । रोज़ के किलोमीटर पैदल चलते हैं, भक्तों के साथ ।

हमारे अगले नायक हैं,असम के मतिबार रहमान ।

रहमान का परिवार 5 शताब्दियों से कर रहा है, प्राचीन शिव मंदिर की देखभाल 73 वर्षीय रहमान सुबह 5 बजे उठकर नमाज अदा करते हैं, तथा इसके बाद वह मंदिर की सफाई करने के लिए पहुंच जाते हैं। 1977 में रहमान के पिता ने इसकी देखभाल की जिम्मेदारी उनको सौंपी थी । रहमान को उम्मीद है,कि उनके बाद उनके बेटे इस प्राचीन शिव मंदिर की देखभाल करेंगे।

हमारे आखिरी नायक मध्य प्रदेश सागर से पंडित रामनरेश दुबे । जिन्होंने कायम की नई मिसाल उनके 62 साल पुराने दोस्त सैयद वाहिद अली वकील साहब‌। जिनकी मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो गई थी,पितृपक्ष में उन्होंने अपने मित्र का तर्पण किया । मध्य प्रदेश के सागर जिले के सुरखी विधानसभा के एक छोटे से गांव चतुरभटा में पंडित रामनरेश दुबे ने पितृपक्ष में अपने पूर्वजों तर्पण किया और उसके साथ-साथ अपने स्वर्गवासी मित्र सैयद वाहिद अली का भी तर्पण करते है।

दोनों बचपन के मित्र रहे हैं, पेशे से वकील सैयद वाहिद अली जो सागर के निवासी थे, उनकी एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। पितृपक्ष में पंडित रामनरेश दुबे ने सात दिवसीय श्रीमदभागवत कथा का मूलपाठ कराया और चौथे दिन मित्र का तर्पण किया ।

पंडित रामनरेश दुबे का कहना है कि हिंदू परिवार में तो तर्पण होता ही है लेकिन वो हमारे बाल्यकाल से मित्र थे, इसलिए हमने अपने भगवान से विनय की हैं, कि हमारी पूजा से उनका उद्धार हो जाए, वाहिद अली के बेटे वाजिद अली का कहना है कि रामनरेश चाचा और अब्बा में चोली-दामन का साथ था ,वह उनके पिता के लिए तर्पण कर रहे हैं ।

हमने अपना सारा विवेक हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई बनने में झोंक दिया लेकिन इंसान बनने की कोशिश नहीं की। लेकिन हम धार्मिक भी तो पूरे न हो पाए। जो हो जाते तो इतने झगड़े ही क्यूं होते। हर धर्म की किताब में लिखा है कि अच्छे इंसान बनो, यानी धर्म ने कहा कि धार्मिक होने से पहले इंसान बनो।

नफरत जो सिखाये वो

धर्म तेरा नहीं है ।

इंसा को जो रौंदे वो

कदम तेरा नहीं है ।

कुरआन न हो जिसमे

वो मंदिर नहीं तेरा ।

गीता न हो जिसमे वो

हरम तेरा नहीं है ।

तू अमन का और सुलह

का अरमान बनेगा ।

मोहम्मद जावेद खान

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