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तृणमूल कांग्रेस को बदनाम करने के अभियान में इंडियन एक्सप्रेस की यह खबर परम बेशर्मी है

तृणमूल कांग्रेस को बदनाम करने के अभियान में इंडियन एक्सप्रेस की यह खबर परम बेशर्मी है
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ईडी पर हमले के बाद पश्चिम बंगाल सरकार को घेरने की कोशिशें जारी

पश्चिम बंगाल पुलिस ने ईडी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। छापा मारने गये ईडी अफसरों की पिटाई की खबर के बाद पश्चिम बंगाल सरकार और उस बहाने तृणमूल नेता ममता बनर्जी को घेरने की कोशिशों के बीच कल मैंने लिखा था कि ईडी ने अगर छापे में स्थानीय पुलिस की मदद नहीं ली, उसे शामिल नहीं किया तो पिटाई के लिए पश्चिम बंगाल सरकार कैसे जिम्मेदार है? उसे तो छापे की सूचना ही नहीं थी। दूसरी ओर, दरवाजा नहीं खोले जाने के बावजूद ईडी अफसर आधे घंटे वहां रहे। ईडी को जिस तृणमूल नेता के घर छापा मारना था उसके लोग वहां खड़े रहे और नेता के समर्थक इकट्ठा होते रहे। ईडी के लोग खतरे को भांप नहीं पाये या अत्यधिक आत्मविश्वास में डटे रहे तो गलती उनकी भी है।

बाकी राजनीति कोई भी समझता है। केंद्र सरकार ईडी का उपयोग विपक्षी नेताओं को बदनाम और परेशान करने के लिए कर रही है ये आरोप लगते रहे हैं। यह खबर भी आई है कि जिन दलित किसान भाइयों के खाते में 450 रुपये थे उनके खिलाफ भी ईडी ने मनी लांडरिंग का केस दर्ज कर उसकी 'जांच' की। ऐसे में पश्चिम बंगाल के तृणमूल नेता के घर छापा मारने की सरकारी कार्रवाई में स्थानीय पुलिस को शामिल नहीं किये जाने का कारण समझा जा सकता है पर यह सरकारी तरीका नहीं है। मकसद तो शक के घेरे में है ही। ऐसे में जनता या संबंधित नेता के समर्थकों ने ईडी टीम को पीट दिया तो यह भले गलत हो, स्वाभाविक तो है ही। असल में आप उनके नेता के घर जबरन घुसने की कोशिश कर रहे थे। और जनता को यकीन नहीं हुआ कि आप उचित सरकारी कार्रवाई कर रहे हैं।

पश्चिम बंगाल पुलिस ने इस मामले में तीन एफआईआऱ दर्ज किये हैं और इनमें एक ईडी के खिलाफ भी है तो साफ है कि मामला उतना सीधा नहीं है जितना केंद्र में सत्तारूढ़ दल और उसके समर्थक बता रहे हैं। बाकी सहानुभूति बटोरना और बदनाम करना इन दिनों चल रहे एंटायर पॉलिटिकल साइंस का भाग भी है। ऐसे में आज इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक भी गौरतलब है। सिंगल इनवर्टेड कॉमा में होने का मतलब है, किसी ने ऐसा कहा है और जिसने कहा है उसका नाम यहां नहीं है। खबर का फ्लैग शीर्षक है, टीएमसी समर्थकों के हमले के एक दिन बाद। मुख्य शीर्षक है, "ईडी के अफसरों को पीटते, सीआरपीएफ वालों को हाथ जोड़कर शांत रखने की अपील करते देखा"। उपशीर्षक है, राज्यपाल ने पुलिस से टीएमसी नेता को गिरफ्तार करने के लिए कहा।

कुल मिलाकर पांच लाइन का यह शीर्षक अखबार के पहले पन्ने पर 13 लाइन की खबरों से ज्यादा जगह घेर रहा है। इस खबर की बाईलाइन और डेटलाइन, चार लाइनों में है। एक लाइन में बताया गया है कि खबर चौथे पन्ने पर जारी है और दो लाइनों में संबंधित रिपोर्ट पेज 9 पर बताया गया है। हालांकि, यह अखबार का अपना डिजाइन या खबरें परोसने की उसकी शैली है और इसमें शीर्षक प्रमुखता से पढ़ा जाता है। शीर्षक जो है सो मैं बता चुका। मेरा मानना है कि एक दिन पहले जब खून से लथपथ ईडी अफसर की फोटो छप चुकी है तो यह शीर्षक दोहराव है। मुख्य या नई बात उपशीर्षक है जो राज्यपाल ने कहा है तो कल के अखबारों से ही स्पष्ट था राज्यपाल ऐसा या इससे भी गंभीर कुछ करेंगे। इसलिए भले इसका इंतजार हो, यह भी नई बात नहीं है।

खबर में कहा गया है, शनिवार को टीएमसी नेता शेख शाहजहां और उनके तीन भाइयों का चार कमरे का महलनुमा घर (गौर कीजिये, संदेशखली गांव में तीन भाइयों का चार कमरे का घर महलनुमा है) बंद और उपेक्षित पड़ा था। शुक्रवार को जो हुआ उसकी याद दिलाने के लिए ईडी की गाड़ियों के टूटे शीशे ही थे। खबर का दूसरा वाक्य या पैराग्राफ पूरा नहीं हुआ है इसलिए उसे छोड़ देता हूं पर उल्लेख यह बताने के लिए किया है कि खबर में भी कुछ नया नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह खबर टीएमसी या उसके नेता शेख शाहजहां के खिलाफ है जबकि आज खबर होनी थी कि शाहजहां को गिरफ्तार किया गया या नहीं, स्थानीय पुलिस ने क्या कार्रवाई की, ईडी ने आगे क्या कहा, क्या किया। पर यहां राज्यपाल ने जो किया उसे महत्व दिया गया है। जैसा मैं कहता रहा हूं यह संपादकीय विवेक का मामला है और इसमें कुछ गलत नहीं है। मैं जो है उसे ही रेखांकित करता हूं क्योंकि उसका एक उद्देश्य दिखता है।

संभव है, संपादकीय उद्देशय वही हो या बिल्कुल अलग जो मैं नहीं समझ पा रहा होऊं, पाठक समझ लें। इसलिए यह बताना जरूरी है कि द टेलीग्राफ ने आज पहले पन्ने की खबर से बताया है कि इस मामले में स्थानीय पुलिस ने तीन एफआईआर लिखी है। एक की चर्चा ऊपर कर चुका। पुलिस ने कहा है कि छापेमारी टीम में शामिल ईडी अधिकारियों के खिलाफ घर में बिना अनुमति जबरन घुसने, शरारत और आपराधिक धमकी से संबंधित धाराओं के तहत मामला शुरू किया गया है। अन्य मामलों में से एक "अज्ञात भीड़" के खिलाफ है जिसने "सरकारी अधिकारियों" और पत्रकारों पर हमला किया था। तीसरा केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों पर हमले के संबंध में "शाहजहां शेख और सहयोगियों" के खिलाफ है। शनिवार शाम तक शाहजहाँ का ''अता-पता नहीं'' था। तीनों मामले शुक्रवार को दर्ज किये गये। मुझे लगता है कि पहले पन्ने की खबर यही है।

नवोदय टाइम्स ने एक नई खबर छापी है और इसमें कहा गया है, शुक्रवार को हुए हमले के बाद एजेंसी पर यह दूसरा हमला था। शीर्षक है, राशन घोटाले में टीएमसी नेता (शंकर आद्या) गिरफ्तार, समर्थकों ने किया ईडी टीम पर हमला। कहने की जरूरत नहीं है कि ईडी टीम पर अगली ही दिन दोबारा हमला ज्यादा बड़ी खबर है लेकिन खबरों से जब राजनीतिक हित साधने हों तो महत्वपूर्ण खबर की परिभाषा भी बदलेगी। यहां भी यही हुआ लगता है पर मुद्दा अलग है। नवोदय टाइम्स में आज पहले पन्ने पर दूसरी खबर है, टीएमसी नेता शाहजहां के खिलाफलुक आउट नोटिस। यह द हिन्दू में भी पहले पन्ने कदम पर है। इस खबर में जो बुलेट प्वाइंट हैं, 1. ईडी को उनके विदेश भागं जाने की आशंका और 2. शाहजहां के परिजनों, ईडी ने की पुलिस में शिकायत।

आज ही अमर उजाला के दूसरे पहले पन्ने की लीड का शीर्षक है, महादेव ऐप - ईडी की चार्जशीट में पूर्व सीएम बघेल समेत पांच नाम। इंडियन एक्सप्रेस और अमर उजाला जैसे अखबारों में में मोदी सरकार की गारंटी का विज्ञापन है। आप इसका जो अर्थ लगाइये, टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर छोटी सी खबर है, दिल्ली में रिश्वतखोरी के लिए हफ्तेभर में चौथा पुलिस वाला पकड़ा गया। कहने की जरूरत नहीं है कि ना खाउंगा ना खाने दूंगा का असर दिल्ली में सबसे ज्यादा होना था क्योंकि दिल्ली पुलिस सीधे मोदी सरकार के नियंत्रण में है लेकिन यहां बिना किसी अभियान के हफ्तेभर में चार पुलिस वाले को पकड़ा जा रहा है (दस साल की ईमानदारी के बाद) और मोदी की गारंटी का विज्ञापन छप रहा है। ईडी की कार्रवाई मार खाकर भी विपक्षी नेताओं के खिलाफ हो रही है। आप कह सकते हैं कि यह नामुमकिन दस साल में मुमकिन हुआ है पर चर्चा इसकी नहीं, मंदिर की है।

एक मित्र ने सोशल मीडिया पर लिखा है, अयोध्या में पूजित अक्षत एवं निमंत्रण पत्र कुछ सज्जन देने आए। उनका बहुत धन्यवाद। मैं समझता हूँ कि इसी जन्म में अयोध्या में प्रभु राम की भव्य प्रतिष्ठा देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जीवन धन्य हो गया। यह हालत तब है जब 80 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर जी रहे हैं। इस योजना को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाया जा चुका है, नौकरी रोजगार की संभावना बढ़ाने के लिए कुछ ठोस तो नहीं ही है उसकी चर्चा भी नहीं है और संसद से विपक्ष के डेढ़ सौ नेताओं के निलंबन के बाद राहुल गांधी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए यात्रा निकाल रहे हैं। कल उसका लोगो जारी हुआ उसमें भारत जोड़ो न्याय यात्रा, न्याय का हक मिलने तक लिखा है। और इसके अपने मायने हैं। और भी घोषणाएं हैं। मंदिर की राजनीति के मुकाबले चाहे जैसा हो 67 दिन में 6700 किलोमीटर की यात्रा है, लोगों से मिलना है - पर यह पहले पन्ने की खबर नहीं है। ना ही किसी का जीवन धन्य होने की उम्मीद।

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