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- गाँवों, कोरोना एवं...
{कमलेश कमल}
गाँव में लोग समझ ही नहीं रहे कोरोना सिम्पटम्स को या समझ कर भी ग़रीबी आदि कारणों से यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि वे संक्रमित हो चुके हैं। मेडिकल स्टोर वाला बुखार के लिये PCM की गोली और खाँसी के लिए कोई कफ सिरप पकड़ा देता है। गाँव-के-गाँव लोग बीमार हैं।
एक बड़ी जनसंख्या केवल बीमार नहीं है, भविष्य में कमज़ोर फेफड़े लेकर अशक्त होने जा रही है। अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढाँचे पर कितना बड़ा आघात है, इसका अध्ययन अभी होना है। शोधकर्ताओं को इसे विषय के रूप में लेना चाहिए न कि 30 साल पुराने गाईड महोदय से कुछ लेकर उस पर शोध कर लिया।
सच्चाई यह है कि गाँवों में लोग मानते ही नहीं कि उन्हें कोरोना है, जब हालात बिगड़ते हैं तब भारी ब्याज पर कर्ज़ लेकर शहर की ओर भागते हैं लेकिन बहुत से मामलों में देर हो चुकी होती है।
टीकाकरण को लेकर गाँवों में भ्रांतियाँ हैं, डर भी है। कई राज्यों में शिक्षाकर्मियों को पहले वेव में फ्रंटलाइन वर्कर की तरह क्वेरण्टिन सेंटर पर लगाया गया लेकिन टीके की बारी आई तो छोड़ दिया गया। विद्यालय जब भी खुलेंगे तब जो सबसे पहली बात आएगी कि क्या हमारे शिक्षकों को टीका लगा दिया गया है?
इसके लिए हमारी expert टीम Brainstorming कर रही है। हम समाधान ढूँढ रहे हैं। आपके समक्ष आएँगे। आपके बहुमूल्य सुझावों का स्वागत है।
आपका ही, कमल
#कोर_टीम