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बात जिम्मेदारी की है: क्या सरदार मनमोहन सिंह उस बस के ड्राइवर थे, जिसमें निर्भया के साथ दुष्कर्म हुआ था?

Shiv Kumar Mishra
22 April 2021 5:04 AM GMT
बात जिम्मेदारी की है: क्या सरदार मनमोहन सिंह उस बस के ड्राइवर थे, जिसमें निर्भया के साथ दुष्कर्म हुआ था?
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क्या सरदार मनमोहन सिंह उस बस के ड्राइवर थे, जिसमें निर्भया के साथ दुष्कर्म हुआ था?

मनमोहन सिंह ने पीड़िता को इलाज के लिए सिंगापुर क्यों भिजवाया था? जब शव आया था तो एयरपोर्ट पर पीएम मनमोहन और यूपीए की प्रमुख सोनिया गाँधी दोनों मौजूद क्यों थे?

इसलिए सरकार की जवाबदेही कोई चीज़ हुआ करती थी। आज कहां दिखती है, आपको जवाबदेही?

जो सवाल सामान्य रूटीन में पूछे जाते थे, अगर वो गलती से किसी के मुँह से निकल गये तो प्रवक्ता झल्लाये कु्त्ते की तरह काटने दौड़ते हैं।

भक्त धमकाने आते हैं और कभी अर्थशास्त्री और कभी वायरोलॉजिस्ट बनकर ज्ञान पिलाते हैं। कितनी अनोखी बात है। आजकल गीता का ज्ञान चल रहा है। पूछियेगा ज़रा एक बार जब तुम्हारे घर में कोई मर जाएगा तब भी इसी तरह प्रवचन दोगे?

प्रयोजन क्या है, इन सबका? एक लाइन बात सिर्फ ये है कि हमारे नेता से सवाल ना पूछे जाये।

ठीक है, भइया नहीं पूछेंगे। मजबूत सरकार है ही संविधान संशोधन करवा लो कि बीजेपी को छोड़कर जितनी सरकारें होंगी वो जवाब देने के लिए उत्तरदायी होंगी। जब बीजेपी का शासन होगा तब सवाल विपक्ष से पूछे जाएंगे।

मैं सवाल नहीं पूछूंगा बस एक काम करो-- अपने चाय वाले को बोल दो कि देश के सामने आकर कहे कि प्रधानमंत्री का पद मैंने रियलिटी शो में जीता है। मैं सूट सिलवाने, आठ हज़ार करोड़ के बोइंग में दुनिया घूमने और दाँत चियार कर फोटों खिंचवाने के लिए हूँ, जवाब लेना है तो पप्पू के पास जाओ।

कह दो अपने चायवाले से कि साइंटिस्ट बनकर बादलों के पार रडार के सिग्नल का हिसाब करना बंद कर दे, माइक्रो बॉयो लॉजिस्ट बनकर लैब में जाकर ड्रामा ना करे कि अपनी निगरानी में वैक्सीन बनवा रहा है।

छल, कपट, फरेब की कोई सीमा तो होगी। एक गृहमंत्री के कपड़े बदलने पर मीडिया मुद्दा बनाता था और गूंगा प्रधानमंत्री उस मंत्री को हटा देता था। यहाँ एक घोषित अपराधी सिस्टम का टेंटुआ दबाये बैठा है।

राष्ट्रीय संकट के समय कोबिड प्रॉटेकल की धज्जियां उड़ा रहा है। लोग मर रहे हैं, वो चुनाव प्रचार कर रहा है और साथ-साथ आँखे दिखाकर कह रहा है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। किसी में हिम्मत है कि कोई एक सवाल पूछ ले। क्या सचमुच ये मर्दों का देश है? जो कुछ अभी चल रहा है, नामर्दी उससे कोई अलग चीज़ होती है?

लेखक राकेश कायस्थ है और यह उनकी फेसबुक से लिया गया है ये उनके निजी विचार है

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