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- मकबूल फिदा हुसैन के...
देश दीपक
साल 2010 की सर्दियां उतार पर थीं लेकिन दिल्ली का राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ था. कारण ? भगवा ब्रिगेड लगातार मशहूर पेंटर मकबूल फिदा हुसैन पर हमले कर रही थी. उनके ऊपर एक के बाद एक केस लादे जा रहे थे.
तंग आकर उन्होंने पहले देश छोड़ा फिर कतर की नागरिकता ले ली. उसी कतर देश की जिसने पिछले दिनों नूपुर शर्मा के बयान को इस्लामिक ब्रदरहुड का मसला बनाने में अगुवा की भूमिका निभाई.
भगवा ब्रिगेड की नराज़गी का कारण यह था कि मकबूल फिदा हुसैन ने सरस्वती समेत कई हिंदू-देवियों की नंगी तस्वीरें पेंट की थीं. मुझे और मुझ जैसे हज़ारों लोगों को उन पेंटिग्स में सुंदरता, कला दिखाई पड़ी थी. नग्नता का सौंदर्य मुझे मालूम है लेकिन मैं उसे कैनवस पर खींच नहीं सकता. हुसैन की कूची से नग्नता का वो सौंदर्य उन पेंटिग्स में जीवित हो उठा था.
हम सबने भगवा ब्रिगेड का जोरदार विरोध किया था. तब की यूपीए सरकार ने हुसैन साब से अपील की कि आप देश लौट आइए लेकिन वो नहीं लौटे.
नूपुर शर्मा के बयान को पकड़कर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने जिस तरह की अंतर्राष्ट्रीय लामबंदी की उससे हम जैसे लोगों का किसी मकबूल फिदा हुसैन के समर्थन में बोल पाना असंभव हो जाएगा.
मैं नूपुर शर्मा और मकबूल फिदा हुसैन के बीच का फर्क भलिभांति समझता हूं. नूपुर शर्मा जिस विचारधारा की समर्थक है उसे मेरी इच्छा है कि समेटकर समंदर में डूबो देना चाहिए लेकिन नूपुर शर्मा के कुछ भी कहने के अधिकार का मैं समर्थन करूंगा. दार्शनिक वाल्तेयर ने यही कहा था.
कोई भी आलोचना से परे नहीं. खासतौर से अगर वह कोई ईश्वर, पैगंबर, धार्मिक नेता या किसी सेक्ट का संस्थापक है तो मेरा मानना है कि उसकी बर्बर आलोचना की जानी चाहिए.
भारत के मौकापरस्त-सेक्युलर-इस्लामिक-कट्टरपंथियों ने इस मामले में जिस तरह अरब देशों के हाथ में गेंद सौंपी उससे भारत के आम मुसलमानों की समस्याएं और बढ़ने वाली हैं. नाम नहीं लिखना चाहता लेकिन सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके चंदा बटोरने वाले, मुसलमानों के रहनुमान बनने वालों ने जिस तरह अभियान चलाया उससे यति नरसिंहानंद जैसे जाहिलों का हौसला और बढ़ेगा.
अंतत: यही होगा कि किसी मकबूल को फिर देश छोड़कर भागना पडेगा. यहां बचेंगे तो सिर्फ सावरकर और जिन्ना की संतानें...नरसिंहानंद जैसे भगवा धारी अपराधी और चंदा वसूल कर मूर्ख, हत्यारे शेखों की दलाली बतियाने वाले मुल्ले-मुल्लियां.