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वैश्या--...देखिये मरीज को उठाने या ज्यादा बुलवाने का प्रयास मत करियेगा। वरना घातक होगा। डॉक्टर ने हिदायत देते हुए कहा।
वैश्या-- ...देखिये मरीज को उठाने या ज्यादा बुलवाने का प्रयास मत करियेगा। वरना घातक होगा। डॉक्टर ने हिदायत देते हुए कहा। अभी तक आपने पढ़ा,अब आगे।
भाग 6-
मधु राजू के पास पहुँची। तुम ठीक हो जाओगे राजू । उसने खुद को संयत करते हुऐ कहा।
राजू ने हौले हाथ बढ़ाकर मधु के हथेली को पकड़ लिया। इतनी किस्मत अच्छी नही है माही।
उसने फुसफुसाते आवाज में कहा।
अरे नहीं राजू तू चिंता न कर हम सब तेरे साथ हैं। डॉक्टर साब ने बोला है तेरा बढ़िया ईलाज कर रहा है वो। दीदी राजू को निराश होते देख बोली।
अच्छा यह बता जब तू लड़ा तो तू पिया हुआ था न। मेरे को मालूम था । कितनी बार मना किया था कि राजू कम पिया कर। मगर तू मानता ही कहाँ था । दीदी ने शिकायती लहजे में कहा।
राजू कुछ न बोला...
जाने दो दीदी अब राजू ठीक हो जाये तो मैं खुद ही नहीं पीने दूंगी तुम्हें हमारे आने वाले बच्चे की कसम है राजू...मधु राजू की आंखों में याचना भाव से देखते हुये बोली।
राजू ने कुछ सेकेंड मधु की आंखों में देखा फिर । सहमति में गर्दन हिला दिया। मुझे पता है माही। दारू कभी दवा भी बन जाती है और कभी दुख का कारण भी मगर उस दिन मेरी गलती नहीं थी मैं पटरी पर चल रहा था मुझे गाड़ी वाला पीछे से धक्का मारते निकल गया । जब किस्मत खराब हो तो तैराक भी डूब जाता है।राजू ने बुझे मन से कहा।
मेरा झोला किधर है,राजू ने अचानक से कुछ सोचते हुये पूछा।
हां है न...मधु ने झोला उठाते हुए कहा।
उसमें एक पालीथीन में लिपटी एक डायरी होगी उसे निकालो। राजू ने मधु से कहा।
मधु ने जब झोला खंगाला तो उसकी आंखें एकबार फिर भर गयीं। झोले में सूखे मेवे के कई पैकेट थें जिसमें सलामत थें तो कुछ फटकर बिखर गये थें। छोटे बच्चों के कपड़े खिलौने कुछ साड़ियां टॉवल । उसमें ऐसे रखें थें जैसे बिखर जाने के बाद किसीने झोले में सब ठूंसकर रख दिया हो।
डायरी में कुछ लिखा है क्या...मधु ने सवाल करते हुये डायरी राजू के हाथ में थमा दिया।
राजू ने कांपते हाथों से डायरी के कुछ पन्ने पलटे और दो करारे कागजों का टुकड़ा निकालकर।
बहुत तो गंवा चुका हूं,बस यह जमापूंजी थी जिसे देने आ रहा था। ताकि बच्चे की परवरिश पर कोठे की आंच न आये। एक आपके लिये एक माही के लिये। उसने यह कहते हुये दिदी के हाथों में दो डीडी (डिमांड ड्राफ्ट) रख दियें।
यह यह क्या है राजू। अभी तू बीमार है तू ठीक हो जा फिर जो कहे सो उचित लगा तो मैं मान लेगी।
यह कहते हुये उसने डिमांड ड्राफ्ट पर भरी रकम देखा तो उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं। एक पर साढ़े सात लाख और एक पर पांच लाख की रकम भरी थी।
राजू हम देह जरूर बेचते हैं। दिल दिमाग नहीं,इसलिए किसी मर्द के दीवानगी की कीमत नहीं वसूलते।
ठीक है तू माही से मोहब्बत करता है,मैं जानती है। मगर देह की कीमत वसूलती हूँ,दीवानगी की नहीं। तू भला मानुस है इसलिए हम सब तेरे पास आई। वरना ग्राहक से कोठे चढ़ते हमारा रिश्ता बनता है उतरते ही खत्म।
यह कहते हुये दिदी ने राजू के हाथों में डीडी रख दिया।
मैं आपको और कोठा नंबर बाईस के वसूलों को जानता हूँ। मेरी बात को बुरा मत समझिये। राजू ने कराहते हुए कहा। मैं आपको या माही को रुपये का धौस देने या खरीदने के उद्देश्य से यह नहीं बनवाया है। यह मेरी दिली इच्छा है दिदी। कोठा मालकिन के लिये राजू के मुंह से दिदी सम्बोधन एकदम नया था। वरना कुछ तो ग्राहक उसको बुढ़ापे में भी नोचने के लिये आंखों में लाल डोरे लेकर आते हैं।
देख राजू तू दिदी को नहीं जानता...तू दूसरे ग्राहकों की तरह भौकाल जिद या नाटक नहीं बतियाता इसलिए दिदी तुझे पसन्द करती हैं। हमें तेरा यह पैसा नहीं चाहिये...बस तू ठीक हो जाये बस।
मधु ने राजू के माथे को सहलाते हुए कहा ।
दीदी मैं सब जानता हूँ... आपके नियत नियम और माही के जिंदगी के बारे में। मैं भी ऐसा वैसा नहीं दिदी आजतक आपके कोठे और माही के अलावा कहीं गया नहीं। आप पता कर लो। आप समझो मुझे....कल के कल यह डीडी भुना लो...मेरी आत्मा को सुकून मिलेगा।
दीदी मैं कहना तो नहीं चाहता मगर कह रहा हूँ...अब कभी से माही से धंधा नहीं करवाना। इसलिए आपको पांच लाख दिया है। और माही को साढ़े सात लाख इसलिए कि माही उस पैसे से मेरे होने वाले बच्चे को इस नर्क से छुटकारा दिला सके उसको लिखा पढ़ा सके। मैं नहीं चाहता कि मेरे खून का हिस्सा इस बदनामी के दलदल में अपनी मां की तरह धंसता जाये।
प्लीज दिदी...इतना कहते हुए राजू मायूस होकर उठने लगता है...और अचानक से धड़कन नापने वाली मशीन का सम्पर्क टूट जाता है,और राजू धम्म से बेड पर गिरकर मुर्दा जैसा हो जाता है।
डॉक्टर साब...यह कहते हुये मधु दरवाजे की तरफ भागती है।
क्रमशः....
विनय मौर्या बनारस