Archived

कश्मीर का भय दिखाकर हमेशा हिदुओं में यह खौफ क्यों पैदा किया जाता है?

कश्मीर का भय दिखाकर हमेशा हिदुओं में यह खौफ क्यों पैदा किया जाता है?
x

अश्वनी कुमार श्रीवास्तव

कश्मीर को दिखाकर हिंदुओं के मन में यह खौफ हमेशा से पैदा किया जाता रहा है कि एक दिन कश्मीर की ही तरह समूचे भारत में इस्लाम फैल जाएगा। लेकिन कभी इस बात को जानने-समझने की कोशिश नहीं की जाती कि आखिर वहां इस्लाम फैला क्यों? यह वजह जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि तभी हिन्दू समझ पाएंगे कि कश्मीर के बाद समूचे भारत का इस्लामीकरण सचमुच में होने के आसार हैं या यह महज एक खौफ ही है।


इस महत्वपूर्ण सवाल के जवाब के लिए हमें इतिहास के पन्ने खंगालने होंगे। हालांकि मेरी रुचि कश्मीर में इसलिए भी ज्यादा रही है कि संयोग से मेरी जाति यानी कि उत्तरी भारत में मजबूत आर्थिक और सामाजिक स्थिति वाली कायस्थों की श्रीवास्तव जाति का उद्गम स्थल भी कश्मीर के श्रीनगर का ही माना जाता है। पुराणों के अनुसार, कश्यप ऋषि ने कश्मीर को बसाया था। आर्य वंश के कश्यप ऋषि और दक्ष प्रजापति की पुत्री कद्रु के वैवाहिक मिलन के जरिये नाग वंश की उत्पत्ति हुई थी।
फिर कायस्थों के आदि पुरुष चित्रगुप्त ने सूर्य वंशीय क्षत्रिय और ब्राह्मण वंश में दो अलग अलग पत्नियों के जरिये कुल 12 पुत्रों को जन्म दिया। इसलिए देश में आज भी कई राज्यों के कायस्थ खुद को उच्च कुल का ब्राह्मण और कई सूर्य वंशी क्षत्रिय मानते हैं। कथा के अनुसार, क्षत्रिय वंशी चार पुत्र कश्मीर में जाकर बस गए और बाकी ब्राह्मण वंशी 8 पुत्र देश के अलग अलग क्षेत्रों में जा बसे। सभी 12 पुत्रों ने नाग वंश में नागराज वासुकी की पुत्रियों से विवाह कर लिया। इसलिए आज भी कायस्थ नाग वंश को अपनी ननिहाल मानकर नाग पंचमी में पूजा करते हैं। साथ ही, सूर्य, शिव और चित्रगुप्त को भी कायस्थ विशेष स्थान देते हैं।
बहरहाल, कश्मीर में जाकर बसे श्रीवास्तव वंश के कायस्थों का राजपाट दुर्लभवर्धन के कश्मीर का राजा बनने के बाद सातवीं शताब्दी में शुरू हुआ था।उससे कुछ ही पहले भारत के उत्तरी भूभाग पर अंतिम हिन्दू सम्राट कहे जाने वाले हर्षवर्धन का शासन था। हर्ष का साम्राज्य उनकी मृत्यु के बाद ढहने लगा था। तब समूचे उत्तरी भारत में अराजकता का माहौल बन चुका था। चारों तरफ से विदेशी आक्रमणकारी भारत पर एक के बाद एक हमले कर रहे थे। इस्लाम को भारत में फैलाने के लिए हो रहे हमले तब अफगानिस्तान की तरफ से तेज हो चुके थे।
उसी वक्त कश्मीर में दुर्लभवर्धन ने राजगद्दी संभाली। उनके वंश ने ही अगले ढाई सौ बरसों तक न सिर्फ कश्मीर में हिन्दू पताका फहराई बल्कि श्रीनगर को ही अपनी राजधानी बनाकर समूचे उत्तर भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान तक के विशालतम भूभाग पर शासन भी किया। कायस्थों में ही एक और जाति सक्सेना की उत्पत्ति भी इसी ढाई सौ बरसों में श्रीवास्तव कायस्थों के दरबार और सैन्य सहायकों के रूप में हुई थी। उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर राजाओं ने उन्हें सक्सेना उपाधि इसी दौरान दी थी।
नागों के राजा माने जाने वाले कर्कोटक नाग से अपनी वंशावली जोड़ने वाले इन श्रीवास्तव राजाओं के इस ढाई सौ बरसों के शासन को कश्मीर का स्वर्ण युग कहा जाता है। इसी दौरान भारत के कई प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों और नगरों का निर्माण हुआ था। इसी वंश में हुए सम्राट ललितादित्य को दुनियाभर के इतिहासकार भारत का सिकंदर कहकर याद करते हैं क्योंकि उन्होंने 30 बरस तक दूसरे देशों पर हमला करके लगातार युद्ध लड़े और इस्लामीकरण के लिए जीजान से जुटे अरब आक्रमणकारियों को ईरान तक खदेड़ कर अपना राज कायम किया। इस दौरान एक युद्ध भी न हारते हुए उन्होंने एक साथ अरब, तुर्क, मंगोल, तिब्बती और चीनी मोर्चों पर लड़े सभी युद्धों में विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त कर दिया था।
लेकिन ढाई सौ बरसों तक इस्लाम से लड़ने और इतने लंबे इस हिन्दू राज के ईरान तक फैलने के बावजूद कश्मीर में इस्लाम कैसे आया, यह वाकई बहुत आश्चर्यजनक लगता है। दरअसल, कर्कोटक नाग वंशी कायस्थों के इस ढाई सौ सालों के अंतिम शासक को उसी के दरबार के ब्राह्मणों ने षड्यंत्र करके मरवा दिया। उसके बाद इस वंश के बाकी वारिसों में सत्ता के लिए युद्ध हो गए, जिसका असर यह हुआ कि यह साम्राज्य पहले तो सिमटकर कश्मीर तक रह गया, फिर धीमे धीमे और छोटे टुकड़ों में बंट गया।
इसके बाद के कमजोर और अय्याश राजाओं का नियंत्रण कश्मीरी ब्राह्मणों ने रिमोट कंट्रोल की तरह अपने हाथों में ले लिया। नतीजा यह हुआ कि हिन्दू धर्म के नाम पर अगले सैकड़ों बरसों तक जातिवाद, सतीप्रथा, शोषण, भेदभाव, छुआछूत और पाखंड ने इस कदर वहां की गैर ब्राह्मण जनता को सताया कि लोग त्राहि त्राहि कर उठे।
इसके बाद हिन्दू धर्म से ही एक महिला योगिनी ने हिन्दू धर्म के नाम पर हो रहे इस प्रचंड अत्याचार के खिलाफ एक बड़ा अभियान छेड़ दिया। हालांकि उन योगिनी ने इस्लाम अपनाने के लिये नहीं बल्कि हिन्दू धर्म में जातिवाद, मूर्ति पूजा, पाखंड आदि बुराइयों को छोड़कर एकेश्वरवाद और योग को अपनाने की मुहिम छेड़ी थी लेकिन उनका प्रभाव आज भी कश्मीर के मुस्लिमों पर देखने को मिलता है।
वे आज भी योगिनी के उपदेशों को सम्मान से कहते सुनते हैं और उसी सम्मान से उन्हें याद भी करते हैं। चूंकि हिंदुओं ने तब उन योगिनी के लाख समझाने पर भी अपनी बुराइयां नहीं छोड़ीं इसलिए धीमे धीमे गैर ब्राह्मण वर्ग ने इस्लामी सूफियों के प्रभाव में आकर इस्लाम स्वीकारना शुरू कर दिया।
यहां यह गौर करने वाली बात है कि ढाई सौ बरस तक जिन हिंदुओं ने इस्लामी आक्रमणकारियों को ईरान तक खदेड़ रखा था, वे उस वक्त इस्लाम की शरणागत चले गए, जब इस्लामी आक्रमणकारी उनके लिए कहीं खतरा भी नहीं थे।
इतिहास हमें बताता है कि कर्कोटक नागवंशी कायस्थ राजाओं की उदार धार्मिक नीति और सभी के लिए बराबरी प्रदान करनेवाली शासकीय नीति से लोग इतने खुश थे कि कश्मीर में ढाई सौ बरस तक रहे उस स्वर्ण युग के सैकड़ों बरसों बाद तक किसी ने इस्लाम नहीं अपनाया था...न डर के, न प्रलोभन से और न ही परेशान होकर।
लेकिन बाद में लोगों ने खुद ही स्वेच्छा से इस्लाम अपनाना शुरू कर दिया था। क्योंकि जाहिर सी बात है कि उस वक्त जनता के लिए बड़ा खतरा हिंदुओं का कट्टरवाद, पाखंड, जातिवाद बन गया था और इस्लाम मददगार।
अब कोई हिन्दू कट्टरवादी अगर यह कहता है कि जैसे कश्मीर में इस्लाम फैला, वैसे ही एक दिन समूचे भारत में फैल जाएगा...तो वह कहीं से गलत नहीं है। बस वह यह गलती जरूर कर रहा है कि इस्लाम के फैलने और हिंदुओं के घटने का ठीकरा वह इस्लामी कट्टरपंथियों पर फोड़ कर खुद बच निकल रहा है। जबकि हिंदुओ के पतन का सबसे बड़ा कारण तो वही है। क्योंकि जब तक गैर ब्राह्मण जनता के लिए हिन्दू धर्म का वह ठेकेदार छुआछूत, भेदभाव, अत्याचार, पाखण्ड, शोषण नहीं छोड़ेगा और ईसाइयत या इस्लाम की तरह एक समतामूलक समाज की स्थापना नहीं करेगा तो इस्लाम और ईसाइयत का प्रचार प्रसार इसी तरह होता रहेगा।
ईसाइयों और इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों से हर युद्ध हिन्दू जीतेंगे लेकिन एक रोज उकता कर खुद ही हिन्दू धर्म छोड़ भी देंगे...बिल्कुल वैसे ही, जैसे कश्मीर में हुआ। हिन्दू कट्टरपंथी जब भी हिंदुओं की जनसंख्या घटने का रोना रोते हैं तो मुझे हर बार यही शेर याद आता है-
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पे थी और आइना साफ करता रहा...

अश्वनी कुमार श्रीवास्तव

अश्वनी कुमार श्रीवास्तव

    Next Story