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महात्मा गांधी का स्त्री-विमर्श

Desk Editor
4 Oct 2021 11:14 AM GMT
महात्मा गांधी का स्त्री-विमर्श
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महात्मा गांधी यह भी मानते थे कि महिलाओं की उपस्थिति पुरुषों को भी आचरण मे बाँधे रखती हैं। यही कारण है कि गांधी जी ने काँग्रेस में महिलाओं को नेतृत्व प्रदान किया

महात्मा गांधी, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर में हुआ था तथा जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचं गांधी था।भारत व भारतीय स्वतंत्रता आंदलन के प्रमुख एवं राजनीतिक व आध्यात्मक नेता रहे हैं। देश की आजादी में इनकी अहम व प्रभावी भूमिका रही है।

महात्मा गांधी ने स्त्री विमर्श के क्षेत्र में भी योगदान दिया है। गांधी जी का विचार था कि स्त्रियों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरषों के समक्ष सशक्त होना चाहिए। वे राजनीति में महिलाओं की सहभागिता के भी पक्षधर थे। गांधी जी ने एकबार कहा था कि, "स्त्रियांं प्रकृति से ही अहिंसावादी होती हैं।"

अतः स्त्रियों की उपस्थिति से अहिंसावादी आन्दोलन एवं सत्याग्रह अधिक कारगर हो सकते हैं। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित उनके करीब रहने वाली महिलाएं भी थी ।जिनके नाम हैं -मीरा बेन, सरलादेवी चौधरानी, सरोजनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, डा.सुशीला नायर, आभा गांधी, मनु गांधी और प्रभावती आदि ।

ये महिलाएं महात्मा गांधी के अहिंसा आन्दोलन में सहयोगी थी । महात्मा गांधी स्त्रियों को अबला कहने के विरोधी थे। वह मानते थे कि स्त्री, पुरषो की भांति सबल व शक्ति समपन्न हैं। महिलाओं को अबला कह कर पुकारना महिलाओं की आंतरिक स्थिति को दुतकारना है।

इससे भी बढकर गांधी जी ने महिलाओं से सम्बंधित एक ऐसे विचार का भी समर्थन किया जो विवादित भी रहा है। महात्मा गांधी का कहना था कि, "विवाह के बाद भी स्त्री को अपने शरीर पर पूरा अधिकार रहता है। इसलिए उसकी अनुमति के बिना उसकी देह को स्पर्श करने का किसी पुरूष को अधिकार नहीं है। वह पुरूष भले ही उसका पति हो।"

महात्मा गांधी यह भी मानते थे कि महिलाओं की उपस्थिति पुरुषों को भी आचरण मे बाँधे रखती हैं। यही कारण है कि गांधी जी ने काँग्रेस में महिलाओं को नेतृत्व प्रदान किया।

विभिन्न आन्दोलन मेें महिलाओं को भरपूर अ्वसर दिया। तथा महिलाओं के सामाजिक, शैक्षिक आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के कार्य क्रम भी चलाये।‌‌‌‌कुछ लोग गांधी जी और उनके साथ रहने वाली महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी भी करते हैं ।

परंतु महात्मा गांधी और उन महिलाओं की देश की आजादी के लिए जो प्रयास रहे वह सराहनीय हैं। और महिलाओं की स्वतंत्रता के पक्षधर गांधी जी का स्त्री विमर्श के क्षेत्र में जो योगदान रहा है उसे कभी भी भुलाया नही जा सकता हैं।

महात्मा गांधी जो एक आर्दश पुरूष थे । महात्मा गांधी के स्त्री विमर्श को आज भी गहराई से समझने की आवश्यकता है। जिनका कहना था कि यदि महिलाएं देश की गरिमा बढाने का शंकरपुर करले तो कुछ ही समय में वे अपनी आध्यात्मिक अनुभूति के बल पर देश का रूप बदल सकती हैं।

: शारिक रब्बानी , वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार

नानपारा, बहराइच ( उत्तर प्रदेश )


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