छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़: भूपेश के आगे लाचार हुआ कांग्रेस नेतृत्व

अरुण दीक्षित
28 Aug 2021 2:01 PM GMT
छत्तीसगढ़: भूपेश के आगे लाचार हुआ कांग्रेस नेतृत्व
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रायपुर।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाये रखने के कांग्रेस हाईकमान के फैसले के बाद भूपेश के समर्थकों में खासा उत्साह है।उनका यह मानना है कि भूपेश की ताकत के आगे कांग्रेस नेतृत्व ने घुटने टेक दिए हैं।उनकी नजर में भूपेश बघेल पहले ऐसे कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने दिल्ली को झुका दिया है।अगर भूपेश को बदला जाता तो कांग्रेस छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार नही बचती!लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी भूपेश के पास ही रहती।

यह तो सभी जानते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में शानदार जीत हासिल की थी।भूपेश बघेल तब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे।इसलिए उस जीत का श्रेय भी राहुल गांधी की बजाय उन्हें ही मिला।कांग्रेस ने 90 में से 70 सीटें जीत कर 18 साल के छत्तीसगढ़ में एक नया रिकॉर्ड बना दिया था। तब राहुल गांधी ताम्रध्वज साहू को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे।लेकिन कुर्सी मिली भूपेश बघेल को।मुख्यमंत्री पद के तीन अन्य दावेदार टी एस सिंह देव,चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू को पार्टी नेतृत्व की बात माननी पड़ी।महंत विधानसभा अध्यक्ष बन गए।साहू भूपेश सरकार में गृहमंत्री बन गए। सिंहदेव को यह आश्वासन दिया गया कि ढाई साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।इस आश्वासन के साथ वह सरकार में दूसरे नम्बर पर माने गए।

विवाद ढाई सरकार के ढाई साल पूरे होने पर शुरू हुआ।टी एस सिंहदेव ने नेतृत्व को अपना वादा याद दिलाया।इसके साथ ही सरकार के भीतर "गृहयुद्ध" छिड़ गया।टी एस सिंहदेव अपनों के ही निशाने पर आ गए।एक कांग्रेस विधायक ने ही उन पर गम्भीर आरोप लगा दिए।तब से उठापटक जारी थी।

भूपेश बघेल पिछले मंगलवार को ही दिल्ली गए थे।तब उनकी राहुल गांधी से मुलाकात हुई थी।उस मुलाकात के बाद छत्तीसगढ़ के प्रभारी महासचिव पी एल पूनियां ने मीडिया से कहा था कि ढाई साल का कोई फार्मूला नही था।बघेल मुख्यमंत्री बने रहेंगे।

लेकिन यह मामला यहीं पर खत्म नही हुआ।बघेल को यह पता था कि आगे कुछ भी हो सकता है।इसके लिए उन्होंने ताबड़तोड़ तैयारी की। और जब तीसरे दिन उन्हें फिर दिल्ली आने को कहा गया तो उन्होंने अपनी ताकत दिखाने का फैसला कर लिया।

सूत्रों के मुताविक बघेल ने खुद दिल्ली पहुंचने से पहले 50 से ज्यादा कांग्रेस विधायकों को चार्टर प्लेन से दिल्ली भेज दिया।12 में से 6 मंत्री भी उनके साथ गए। हालांकि टी एस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू भी कल दिल्ली में ही थे।लेकिन साहू अस्पताल में थे।और सिंहदेव दस जनपथ के फैसले का इंतजार कर रहे थे। बचे चार मंत्री छत्तीसगढ़ में ही थे।वैसे छत्तीसगढ़ के 17 जिला कांग्रेस अध्यक्ष और 7 शहरों के महापौर भी भूपेश का साथ देने के लिए दिल्ली पहुंचे थे।

हालांकि राहुल या कोई अन्य गांधी इन लोगों से नही मिला।लेकिन भूपेश अपना संदेश देने में सफल रहे।यही बजह है कि जब राहुल और प्रियंका के साथ

मैराथन बैठक के बाद जब वे बाहर निकले तो उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्होंने नेतृत्व को आइना दिखा दिया है।ढाई साल के फार्मूले पर उन्होने इतना ही कहा कि प्रभारी महासचिव मंगलवार को ही कह चुके हैं कि ढाई साल का कोई फार्मूला नही था। मैं तो राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ दौरे के लिए आमंत्रित करने आया था।

इस बैठक के बाद कई कहानियां दस जनपथ के हवाले से निकलीं।कहा गया कि भूपेश एक ताकतवर पिछड़े नेता हैं।अब चूंकि भाजपा पिछड़े वर्गों को जोड़ने के लिये विशेष अभियान चला रही है।ऐसे में उन्हें हटाकर एक पूर्व राजपरिवार के सदस्य को मुख्यमंत्री बनाने से गलत संदेश जाएगा।यह बात राहुल और प्रियंका मान गए।

यह भी कहा गया कि एक बार फिर प्रियंका राहुल पर भारी पड़ी हैं।उन्होंने ही हस्तक्षेप करके भूपेश की कुर्सी बचाई है।क्योंकि एक ओर भाजपा आक्रामक ढंग से पिछड़े वर्गों को लुभाने का काम कर रही है वहीं दूसरी ओर पिछड़े नेता से मुख्यमंत्री की कुर्सी लेना कांग्रेस को बहुत भारी पड़ जायेगा।

कांग्रेस के चरित्र के मुताविक कहानियां बहुत हैं।लेकिन भूपेश खेमा यह मान रहा है उन्होंने पार्टी हाईकमान को झुका दिया है।छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कांग्रेस नेता के मुताविक भूपेश ने अपनी ताकत दिल्ली को दिखा दी।उन्होंने इसी के साथ यह संदेश भी दे दिया कि वे कांग्रेस से अलग होकर ,कांग्रेसी विधायकों की दम पर अपनी अलग सरकार बना लेंगे।अघोषित शक्ति प्रदर्शन इसीलिए किया गया।अच्छी बात है कि नेतृत्व को समझ में आ गया।

एक धारणा यह भी है कि इस समय कांग्रेस नेतृत्व वेहद कमजोर है। मध्यप्रदेश में विधायकों के पाला बदलने और राजस्थान व पंजाब में चल रही खींचतान के बीच अब वह छत्तीसगढ़ में कुछ भी करने की स्थिति में नही है।कई नेताओं के पार्टी छोड़ने से भी हालात खराब हुए हैं।

एक पुराने कांग्रेसी नेता के मुताविक-अब हालात बदल गए हैं।वो दिन और थे जब राजीव गांधी ने मुख्यमंत्री की शपथ लेने के अगले ही दिन अर्जुन सिंह को पंजाब का राज्यपाल बना दिया था।उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को दिल्ली बुलाकर उनकी कुर्सी नारायण दत्त तिवारी को दे दी थी।या जिस तरह सोनियां गांधी ने अजीत जोगी को नए राज्य छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना दिया था।

अब वे दिन नही हैं।ऊपर से राहुल की जिद ने पार्टी को कमजोर ही किया है।समय पर फैसला न लेना ही उनकी सबसे बड़ी खूबी बन गयी है।भाजपा ने उनकी छवि को उतना नुकसान नही पहुंचाया है जितना उनकी खुद की "गतिविधियों" ने ! यह स्थिति किसी और के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए ही घातक है।

जहाँ तक टी एस सिंहदेव का सवाल है,वह एक सौम्य और शालीन राजनेता हैं।उनके पिता मध्यप्रदेश के मुख्यसचिव रहे थे।उनकी माँ कांग्रेस में अहम पदों पर रही थीं।उनकी बहन भी कांग्रेस में अहम पद पर रही हैं।

सरगुजा रियासत के प्रमुख टी एस सिंहदेव नौकरशाहों और एलीट क्लास में बहुत लोकप्रिय हैं।कॉरपोरेट क्षेत्र में भी उनकी अच्छी पकड़ है।वह अपने इलाके में लोकप्रिय हैं।यह एक संयोग ही है कि इस समय राज्य में वे सबसे अनुभवी व सुलझे हुये कांग्रेसी नेता हैं।

हाईकमान के इस फैसले से उन्हें झटका तो लगा है।हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व 2023 की तैयारी के लिए बघेल को दिल्ली बुलाकर सिंहदेव का राजतिलक कर देगी।लेकिन सरगुजा सूत्र यह भी कह रहे हैं कि अगर ऐसा नही हुआ तो सिंहदेव खुद घर बैठ जाएंगे।यह कांग्रेस के लिए बहुत घातक होगा।

यह भी महज संयोग ही है कि जिस भाजपा की बजह से कांग्रेस फैसला नही कर पा रही है उसी भाजपा ने आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में एक राजपूत नेता रमन सिंह को 15 साल मुख्यमंत्री बना कर रखा था।

जो हालात हैं उनसे तो ऐसा ही लगता है कि राहुल गांधी इतिहास में आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की तरह याद किये जायेंगे।फैसले न लेने का उनका फैसला वह काम कर देगा जिसके लिए भाजपा का वर्तमान नेतृत्व पूरी शिद्दत से लगा हुआ है।

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

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