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श्रावण माहात्म्य : जानिए- कैसे करें भगवान शिव की पूजा, और कैसे करें प्रसन्न
Arun Mishra
29 July 2018 12:44 PM IST
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सम्पूर्ण श्रावण मास धर्मरूप कहा गया है। श्रावण मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है। उसमें भी श्रावण सोमवार व्रत का महत्व अतीव महत्वपूर्ण है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा यानि गुरु पूर्णिमा के बाद श्रावण मास की शुरुआत हो जाती है। इस वर्ष श्रावण मास 28 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है, जिसका समापन रक्षाबंधन के दिन से होता है।
पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र के योग हो जाने से इस मास को श्रावण मास कहा जाता है। इस मास में सब तिथि व्रत वाली हैं। सम्पूर्ण श्रावण मास धर्मरूप कहा गया है। श्रावण मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है। उसमें भी श्रावण सोमवार व्रत का महत्व अतीव महत्वपूर्ण है।
व्रती को चाहिये कि सोमवार के दिन प्रभात: स्नान करके 'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'। यह संकल्प करके भगवान शिव का ध्यान कर 'ऊँ नम: शिवाय' से शिव जी का और 'ऊँ नम: शिवाय' पार्वती जी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इससे पुरुषों को स्त्री-पुत्रादि और स्त्रियों को पति-पुत्रादि का अखण्ड सुख मिलता है।
प्राचीन काल में विचित्रवर्मा की पुत्री सीमन्तिनी का पति (नलपुत्र) चित्रांगद नाव के उलट जाने से जल में डूबकर नागलोक में चला गया था। वह इसी व्रत के प्रभाव से वापस आकर विचित्रवर्मा का उत्तराधिकारी हुआ और बहुत वर्षों तक राज्य करके स्वर्ग में गया।
श्रावण मास में विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य --
शिव महापुराण में नारद जी के प्रश्न करने पर ब्रह्मा जी बोले-नारद! जो लक्ष्मी-प्राप्तिकी इच्छा करता हो, वह कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्पसे भगवान् शिवकी पूजा करे। यदि एक लाखकी संख्यामें इन पुष्पोंद्वारा भगवान् शिवकी पूजा सम्पन्न हो जाय तो सारे पापोंका नाश होता है और लक्ष्मीकी भी प्राप्ती हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। प्राचीन पुरूषोंने बीस कमलोंका एक प्रस्थ बताया है। एक सहस्त्र बिल्वपत्रोंको भी एक प्रस्थ कहा गया है। सोलह पलोंका एक प्रस्थ होता है और दस टंकोंका एक पल। इस मानसे पत्र, पुष्प आदिको तौलना चाहिये। जब पूर्वोक्त संख्यावाले पुष्पोंसे शिवकी पूजा हो जाती है, तब सकाम पुरूष अपने सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है। यदि उपासक के मन में कोई कामना न हो तो वह पूर्वोक्त पूजन से शिवस्वरूप हो जाता है।
महामृत्युंजय-मन्त्रका जब पाॅंच लाख जप पूरा हो जाता है, तब भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। एक लाखके जपसे शरीरको शुद्धि होती है, दूसरे लाखके जपसे पूर्वजन्मकी बातोंका स्मरण होता है, तीसरे लाख पूर्ण होने पर सम्पूर्ण काम्य वस्तुएॅं प्राप्त होती है। चैथे लाखका जप होने पर स्वप्नमें भगवान् शिवका दर्शन होती है और पाॅंचवें लाखका जप ज्यों ही पूरा होता है, भगवान् शिव उपासकके सम्मुख तत्काल प्रकट हो जाते हैं। इसी मन्त्रका दस लाख जप हो जाय तो सम्पूर्ण फलकी सिद्धि होती है। जो मोक्षकी अभिलाषा रखता है, वह (एक लाख) दर्भोद्वारा शिवका पूजन करें। मुनिश्रेष्ठ! सर्वत्र लाखकी ही संख्या समझनी चाहिये। आयुकी इच्छावाला पुरूष एक लाख दूर्वोओं द्वारा पूजन करे। जिसे पुत्रकी अभिलाषा हो, वह धतूरेके एक लाख फूलोसें पूजा करें। लाल डंठलवाला धतूरा पूजनमें शुभदायक माना गया है।
अगस्त्यके एक लाख फूलोंसे पूजा करने वाले पुरूषकेा महान् यशकी प्राप्ति होती है। यदि तुलसीदलसे शिवकी पूजा करे तो उपासकको भोग और मोक्ष दोनों सुलभ होते है। लाल और सफेद आक, अपामार्ग और श्वेत कमलके एक लाख फूलों द्वारा पूजा करने से भी उसी फल (भोग और मोक्ष) की प्राप्ति होती है। जपा (अड़हुल) के एक लाख फूलोंमें की हुई पूजा शत्रुओं केा मृत्यु देनेवाली होती है। करवीरके एक लाख फूल यदि शिवपूजनके उपयोगमें लाये जायॅ तो वे यहाॅं रोगोंका उच्चाटन करने वाले होते है। बन्धूक (दुपहरिया) के फूलों द्वारा पूजन करने से आभूषण की प्राप्ति होती है। चमेली से शिवकी पूजा करके मनुष्य वाहनों को उपलब्ध करता है, इसमें संशय नहीं है। अलसी के फूलोंसे महादेवजी का पूजन करने वाला पुरूष भगवान विष्णुको प्रिय होता है। शमीपत्रोंमें पूजा करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। बेला के फूल चढ़ाने पर शिव अत्यन्त शुभलक्षणा पत्नी प्रदान करते हैै।
जूहीके फूलोंसे की जाय तो घरमें कभी अन्नकी कमी नहीं होती है। कनेर के फूलों से पूजा करने पर मनुष्यों केा वस्त्रकी प्राप्ति होती है। सेदुआरि या शेफालिका के फूलोंसे शिवका पूजन किया जाय तो मन निर्मल होता है। एक लाख बिल्वपत्र चढ़ाने पर मनुष्य अपनी सारी काम्य वस्तुएॅं प्राप्त कर लेता है। श्रृंगारहार (हरसिंगार) के फूलोंसे पूजा करने पर सुख-सम्पतिकी वृद्धि होती है। वर्तमान ऋतुमें पैदा होने वाले फूल यदि शिवकी सेवामें समर्पित किये जायें तो वे मोक्ष देने वाले होते है, इसमें संशय नहीं है। राईके फूल शत्रुओंको मृत्यु प्रदान करने वाले होते है। इन फूलोंकेा एक-एक लाखकी संख्या में शिवके उपर चढ़ाया जाय तो भगवान् शिव प्रचर फल प्रदान करते है।
चम्पा और केवड़ेको छोड़कर शेष सभी फूल भगवान् शिवको चढ़ाये जा सकते है।
विप्रवर! महादेवजी के ऊपर चावल चढ़ाने से मनुष्योंकी लक्ष्मी बढ़ती है। ये चावल अखण्डित होने चाहिये और इन्हें भक्तिभावसे शिवके ऊपर चढ़ाना चाहिये। रूद्रप्रधान मन्त्र से पूजा करके भगवान् शिवके ऊपर बहुत सुन्दर वस्त्र चढ़ाने और उसी पर चावल रखकर समर्पित करे तो उत््त््त म है। भगवान् शिवके ऊपर गन्ध, पुष्प आदिके साथ एक श्रीफल चढ़ाकर धूप आदि निवेदन करे तो पूजाका पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है। वहाॅं शिवके समीप बारह ब्राह्मणोंको भोजन कराये। इससे मन्त्रपूर्वक सांगोपांग लक्ष पूजा सम्पन्न होती है। जहाॅं सौ मन्त्र जपने की विधि हो, वहाॅं एक सौ आठ मन्त्र जापने का विधान किया गया है।
तिलोंद्वारा शिवजीकेा एक लाख आहुतियाॅं दी जायॅं अथवा एक लाख तिलों से शिवकी पूजा की जाय तो वह बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली होती है। जौद्वारा की हुई शिवकी पूजा स्वर्गीय सुखकी वृद्धि करने वाली है, ऐसा ऋषियोंका कथन है। गेहूॅंके बने हुए पकवानसे की हुई शंकरजी की पूजा निश्चय ही बहुत उŸाम मानी गयी है। यदि उससे लाख बार पूजा हो तो उससे संतानकी वृद्धि होती है। यदि मॅंूगसे पूजा की जाय तो भगवान् शिव सुख प्रदान करते हैं। प्रियंगु (कॅंगनी)- द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा शिवका पूजन करने मात्र से उपासक के धर्म, अर्थ और काम-भोगकी वृद्धि होती है तथा वह पूजा समस्त सुखोंको देनेवाली होती शिवकी पूजा करें। यह पूजा नाना प्रकारके सुखों और सम्पूर्ण फलोंकेा देनेवाली है।
सुनिश्रेष्ठ! अब फूलोंकी लक्ष संख्याका तौल बताया जा रहा है। प्रसन्नतापूर्वक सुनो। सूक्ष्म मानका प्रदर्शन करने वाले व्यासजीने एक प्रस्थ शंखपुष्पको एक लाख बताया है। ग्यारह प्रस्थ चमेली के फूल हों तो वही एक लाख फूलोंका मान कहा गया है। जूहीके एक लाख फूलोंका भी वही मान है। राईके एक लाख फूलोंका मान कहा गया है। जूहीके एक लाख फूलोंका मान साढ़े पाॅंच प्रस्थ है। उपासकको चाहिये कि वह निष्काम होकर मोक्षके लिये भगवान् शिवकी पूजा करें।
भक्तिभावसे विधिपूर्वक शिवकी पूजा करके भक्तोंको पीछे जलधारा समर्पित करनी चाहिये। ज्वरमें जो मनुष्य प्रलाप करने लगता है, उसकी शान्तिके लिये जलधारा शुभकारक बतायी गयी है। शत रूद्रिय मन्त्रसे, रूद्रीय मन्त्रसे, रूद्रीके ग्यारह पाठोंसे, रूद्रमन्त्रोंके जपसे, पुरूषसूक्तसे, छः ऋचावाले रूद्रसूक्तसे, महामृत्युजयमन्त्रसे, गायत्री मन्त्रसे अथवा शिवके शास्त्रोक्त नामोंके आदिमें प्रणव और अन्तमें 'नमः' पद जोड़कर बने हुए मन्त्रोंद्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिये।
सुख और संतानकी वृद्धिके लिये जलधाराद्वारा पूजन उŸाम बताया गया है। उŸाम भस्म धारण करके उपासकको पे्रमपूर्वक नाना प्रकारके शुभ एवं दिव्य द्रव्योद्वारा शिवकी पूजा करनी चाहिये और शिवपर उनके सहस्त्रनाम मन्त्रोंसे घीकी धारा चढ़ानी चाहिये। ऐसा करने पर वंशका विस्तार होता है, इसमें संशय नहीें है। इसी प्रकार यदि दस हजार मंत्रों द््व््वा््व््वाा र शिि व होती है और उपासकको मनोवंाछित फलकी प्राप्ति हो जाती है। यदि कोई नपुंसकताको प्राप्त हो तो वह घीसे शिवजीकी भली भाॅंति पूजा करे तथा ब्राह्मणोंको भोजन कराये। साथ ही उसके लिये मुनीश्वरोंने प्राजापत्य व्रतका भी विधान किया है। यदि बुद्धि जड हो जाय तो उस अवस्थामें पूजकको केवल शर्करामिश्रित दुग्धकी धारा चढ़ानी चाहिये। ऐसा करने पर उसे बृहस्पतिके समान उन्तम बुद्धि प्राप्त हो जाती है। जबतक दस हजार मन्त्रोंका जप पूरा न हो जाय, तब तक पूर्वोक्त दुग्धधारा द्वारा भगवान् शिवका उत्कृष्ट पूजन चालू रखना चाहिये। जब तन-मन में अकारण ही उच्चाटन होने लगे- जी उचट जाय, कहीं भी प्रेम न रहे, दुःख बढ़ जाय और अपने घरमें सदा कलह रहने लगे, तब पूर्वोक्त रूप से दूध की धारा चढ़ाने से सारा दुःख नष्ट हो जाता है।
सुवासित तेल से पूजा करने पर भोगों की वृद्धि होती है। यदि मधु से शिव की पूजा की जाय तो राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है। यदि शिव पर ईख के रसकी धारा चढ़ायी जाय तो वह भी सम्पूर्ण आनन्द की प्राप्ति कराने वाली होती है। गंगाजल की धारा तो भोग और मोक्ष दोनों फलों को देने वाली है। ये सब जो-जो धाराएॅं बतायी गयी है, इन सब केा मृत्युंजय मन्त्र से चढ़ाना चाहिये, उसमें भी उक्त मन्त्रका विधानतः दस हजार जप करना चाहिये और ग्यारह ब्राह्मणों केा भोजन कराना चाहिये।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, लब्धस्वर्णपदक ज्योतिष विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
मो.9454953720
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