गुजरात

विजय रूपाणी के इस्तीफे के बाद बेटी ने लिखी भावुक पोस्ट, पूछा- क्या सरल होना गुनाह है?

Arun Mishra
14 Sep 2021 6:24 AM GMT
विजय रूपाणी के इस्तीफे के बाद बेटी ने लिखी भावुक पोस्ट, पूछा- क्या सरल होना गुनाह है?
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राधिका रूपाणी ने पिता को लेकर फेसबुक पर गुजराती भाषा में एक लंबा पोस्ट लिखा.

गुजरात (Gujarat) में नए चीफ मिनिस्टर की घोषणा ने सबको चौंकाया. विजय रूपाणी (Vijay Rupani) ने सीएम पद से इस्तीफा दिया, और पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) नए मुख्यमंत्री बनाए गए. भूपेंद्र पटेल ने 13 सितंबर को गुजरात सीएम पद की शपथ भी ले ली. खबरें आईं कि विजय रूपाणी और डिप्टी सीएम नितिन पटेल इससे खुश नहीं हैं. लेकिन दोनों ने खुलकर ऐसा कुछ नहीं कहा. अब पूर्व सीएम विजय रूपाणी की बेटी राधिका रूपाणी ने सोशल मीडिया के जरिए इस राजनीतिक घटनाक्रम पर अपनी बात रखी है. उन्होंने अपने पिता को लेकर सवाल किया है कि क्या सरल होना राजनीति में गुनाह है?

'पापा को जो जिम्मेदारी मिली, निभाई'

राधिका रूपाणी ने पिता को लेकर फेसबुक पर गुजराती भाषा में एक लंबा पोस्ट लिखा. इसमें उन्होंने पिता विजय रूपाणी के काम और घर के माहौल लेकर बहुत कुछ बातें लिखी हैं. उन्होंने लिखा कि

"बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके (विजय रूपाणी के) काम और भाजपा कार्यकाल की बातें करते हुए छोटी-छोटी बातें कहीं, मैं उनकी आभारी हूं. उनके मुताबिक़, पापा का कार्यकाल एक कार्यकर्ता से शुरू हुआ, जिसके बाद चेयरमैन, मेयर, राज्यसभा के सदस्य, टूरिज्म चेयरमैन, भाजपा के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री. लेकिन ये यहीं तक सीमित नहीं है. लेकिन मेरी नज़र में पापा का कार्यकाल 1979 मोरबी की होनारत (बाढ़) से शुरू होकर कच्छ के भूकंप, गोधरा कांड, बनासकांठा में बाढ़, ताऊते और कोरोना में हरपल काम करते रहने तक भी है."

राधिका आगे लिखती हैं कि,

"उन्होंने (विजय रूपाणी ने) कभी अपने पर्सनल काम को नहीं देखा. जो ज़िम्मेदारी मिली, उसे पहले निभाया. कच्छ के भूंकप में भी लोगों की मदद के लिए सबसे पहले गये थे. बचपन में कभी हमें मम्मी-पापा घुमाने नहीं ले जाते थे, वो किसी कार्यकर्ता के यहां ले जाते थे. ये उनकी परंपरा रही है. स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर में आंतकी हमले के वक्त मेरे पिता वहां पहुंचने वाले पहले शख्स थे. वह नरेंद्र मोदी से पहले मंदिर परिसर पहुंचे थे. बहुत कम लोग जानते होंगे कि जब ताऊते आया तो वो रात के 2 बजे तक सीएम डेस्क बोर्ड के ज़रिए लोगों से संपर्क कर रहे थे. सालों तक हमारे घर का एक ही प्रोटोकॉल था. किसी का रात को तीन बजे भी फ़ोन आये तो नम्रता से बात करनी है. "

'मुंह फुलाकर घूमना क्या नेता की निशानी है!'

राधिका रूपाणी ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि उनके पिता का मृदुभाषी होना उनके लिए गलत साबित हुआ. उन्होंने लिखा कि

"हमें सिखाया गया है कि कोई भी इन्सान किसी भी टाइम घर पर आए और पिताजी ना हों तो चाय-नाश्ते के बिना ना जाने दिया जाए. हमेशा सरल स्वभाव रखना. आज हम अपने फ़ील्ड में सेटल हो पाए और विनम्र हैं तो इसका श्रेय हमारे माता-पिता को जाता है.

मैंने हेडलाइन पढ़ी थी कि – 'Vijaybhai's soft spoken image worked against him.' मुझे एक सवाल पूछना है. क्या इंसान में संवेदनशीलता और शालीनता नहीं होनी चाहिए? क्या हम एक नेता में ये जरूरी गुण नहीं तलाशते? समाज के हर तबके से मिलनसार मतलब सॉफ्ट स्पोकन इमेज? जहां तक गुंडागर्दी और जुर्म की बात है तो वहां उन्होंने काफ़ी कड़े कदम उठाए हैं. सीएम डेस्कबोर्ड से शुरू करके, लैंड ग्रैबिंग एक्ट, लव जिहाद, गुजकोका, दारुबंदी इसके सबूत हैं. पूरा दिन गंभीर होकर, मुंह फुलाकर घूमना, क्या यही नेता की निशानी है?"

राधिका ने आगे लिखा है कि,

"हमारे घर में कई बार इस मामले पर बातचीत हुई. जब इतना सारा भ्रष्टाचार और नकारात्मकता राजनीति में है तो ऐसे में वो सरल स्वभाव के साथ टिक पाएंगे? क्या यह पर्याप्त होगा? लेकिन पापा हमेशा एक बात कहते हैं, राजनीति की छवि फिल्मों और पुराने लोगों ने गुंडे और मनमानी करने वालों जैसी बना दी है. हमें इस नजरिए को बदलना है. पापा कभी गुटबाजी या साजिश को समर्थन नहीं देते. यही उनकी ख़ासियत है."

इस पोस्ट के साथ राधिका ने अपने माता-पिता के साथ बचपन की तीन तस्वीरें भी शेयर की हैं.

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