गुजरात

झूला पुल घटना को लेकर पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी से संकेत मिलता है कि सरकार दोषियों को बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.

Shiv Kumar Mishra
31 Oct 2022 1:00 PM GMT
झूला पुल घटना को लेकर पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी से संकेत मिलता है कि सरकार दोषियों को बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.
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पूर्व आईपीएस ने इस मामले पर लिखी लंबी पोस्ट

30 अक्टूबर 2022 को शाम 6.30 बजे मोरबी में एक सस्पेंशन ब्रिज गिर गया, जिसमें 141 बच्चे, महिलाएं और अधिक पुरुष मारे गए। ये पीड़ित अपनी आखिरी पानी के भीतर सांस लेने के लिए कितने भ्रमित रहे होंगे; कितने वलखा मारे गए होंगे; यह सोचकर कांप उठता है! लेकिन भ्रष्टाचार नहीं बदलता! इस पुल की मरम्मत के बाद पांचवें दिन हुई गोजरी की यह घटना! मोरबी नगर पालिका समझौते के आधार पर दिनांक 5-मार्च-2022

ओरेवा-ओरेवा कंपनी को 15 साल के लिए सस्पेंशन ब्रिज सौंपा गया था। समझौते के अनुसार वर्ष 2022-23 के दौरान 12 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक आगंतुक से नाबालिगों के लिए 15 रुपये और 10 रुपये का शुल्क लिया जाना था, लेकिन ओरेवा कंपनी ने वयस्कों के लिए 17 रुपये और नाबालिगों के लिए 12 रुपये प्रति दिन शुल्क लिया। एक! नगर पालिका का नाम पुल या टिकट से ऐसे हटा दिया गया मानो इस पुल को ओरेवा कंपनी ने खरीद लिया हो! साथ ही, चूंकि यह पुल एक पुश्तैनी संपत्ति है, ओरेवा कंपनी के मालिक जयसुख पटेल ने 26 अक्टूबर 2022 को झूले पुल का उद्घाटन किया और पुल की ताकत की प्रशंसा करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की! ओरेवा कंपनी ने कितना खर्च किया है और उन्हें सामग्री कहां से मिली, इस पर उन्होंने खूब बातें की! लेकिन पांच दिन के अंदर ही ओरवा कंपनी के खराब प्रदर्शन का हुआ खुलासा! उद्घाटन समारोह में नगर पालिका का कोई सदस्य या अधिकारी मौजूद नहीं था!

इस हादसे को लेकर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मोरबी सिटी बी-डिवीजन थाने में शिकायत दर्ज कराई गई है. लेकिन ओरेवा कंपनी का नाम जो सस्पेंशन ब्रिज पर है और टिकट में एफआईआर से गायब है! यदि आप एक व्यापारी हैं तो पुलिस सरकार बहुत ही संवेदनशील ध्यान रखती है कि आपका नाम एफआईआर में न आए! इसे सरकार का दैवीय चमत्कार कहा जा सकता है कि पुलिस ने एफआईआर में हैंगिंग ब्रिज के मेंटेनेंस/मैनेजमेंट कंपनी का नाम नहीं लिखा!

तथ्य यह है कि पुल की मरम्मत/रखरखाव एक कंपनी को सौंपा गया था जिसे निलंबन पुलों में कोई अनुभव नहीं था, आपत्तिजनक है। भले ही उनकी घोर लापरवाही के कारण अनगिनत जानें चली गई हों, लेकिन पुलिस सरकार को कंपनी/ठेकेदार/पुल का उद्घाटन करने का नाम लिखने में शर्म आती है जैसे कि यह एफआईआर में फिटनेस प्रमाण पत्र के बिना विरासत में मिली संपत्ति है! सरकार ने दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए 5 सदस्यीय एसआईटी का गठन किया है; जिसमें आईएएस/आईपीएस/इंजीनियर हैं। लेकिन अब तक का इतिहास यही है कि SIT की रिपोर्ट छुपा रही है सरकार! यह कैसा शासन है? ये कैसा गुजरात मॉडल है? क्या लोग मरते समय 'भारत माता की जय' का नारा लगाने जा रहे हैं?

लेखक पूर्व आईजी Ramesh Savani आईपीएस है उनकी फ़ेसबुक से लिया गया है।


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