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104 वर्ष के वृद्ध एवं 100 वर्ष की वृद्धा ने कोरोना को मात दी। बीमारी तो घातक है ही लेकिन इसका भय उससे भी घातक है। जैसे सर्पदंश के अधिकांश मामलोँ में लोग भय के कारण मर जाते हैं। आज भी भारत मे मृत्युदर 1.4% से कम है लेकिन संक्रमण की संख्या इतनी अधिक है कि मृत्यु संख्या भी बढ़ गयी है। 98.6% लोग स्वस्थ हो रहे हैं यह भी उत्साहवर्द्धक है। विश्व के प्राप्त आंकड़ों में यह संभवतः सर्वाधिक है।
रोग को बढ़ाने में हमारा भय बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। मेरे एक परिचित भरती हैं। उनकी स्थिति इतनी खराब नहीं थी लेकिन पैनिक करके उन्होंने उसे और खराब कर लिया। अस्पताल में जब वो सो जाते हैं तब ऑक्सीजन स्तर 94% हो जाता है और जगते ही 80% के नीचे चला जाता है। ऐसे लोगों को ठीक करना डाक्टर के बस का भी नहीं है।
अस्पताल में भी 20% लोगों को ही ऑक्सीजन की ज़रूरत हो रही है सबको नहीं और ऑक्सीजन आपूर्ति में बहुत सुधार हो गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश में ramdesivir की कलाबाज़ारी रुक गयी है। अस्पताल की माँग पर ड्रग इंस्पेक्टर दवा मरीज़ तक सीधे पहुँचा रहे हैं।
इस बार इसकी चपेट में युवावर्ग भी अधिक संख्या में आ रहा है और साथ ही झुग्गी-झोपड़ियों से अधिक अपार्टमेंट्स में या पॉश इलाके में रहने वाले इसके शिकार हो रहे हैं। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का इसी से पता चलता है।
जो प्रकृति के जितने नज़दीक हैं उनमें इसका असर उतना ही कम है। शहरों में रहने वाले सुविधाभोगी लोगों में विटामिन D का स्तर खतरनाक रूप से कम पाया जाता है। विटामिन का शरीर के रोगप्रतिरोधीतंत्र तंत्र से सीधा सम्बंध प्रदर्शित हुआ है।
धूप सेवन, प्राणायाम, इम्युनिटी बढ़ाने के उपाय ही अधिक कारगर हैं। पहला लक्षण दिखते ही सावधान हो जाने वाले स्वस्थ हैं लेकिन उसकी उपेक्षा करने वाले संकट में पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
मेरा अनुमान है कि गाँवों में यह शायद उतनी तेजी से नहीं फैलेगा जितना शहरों फैला है। खुला और स्वछ वातावरण साथ ही ग्रामीणों की बेहतर प्रतिरोधक क्षमता इसके प्रसार को रोकने में सहायक होगी। लेकिन सावधानी हटने पर दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है इसलिए अगले 2-3 महीने बहुत सावधानी से बिताने होंगे।
पिछली लहर को हमने पछाड़ा था तो इस सुनामी को भी परास्त करेंगे। बस निराश और भयभीत न हों। कहते हैं न कि 'जो डर गया समझो मर गया'। ऐसे उदाहरण हैं जिसमें कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति का ऑक्सीजन लेवल 90 पहुंच गया था लेकिन और कोई लक्षण नहीं था। घर वालों ने कहा कि 90 तो बहुत अच्छा होता है। परिणाम यह हुआ कि तीन दिन बाद ऑक्सीजन स्तर 95 हो गया और अब वह पूर्ण स्वस्थ हैं। अर्थात् डर के आगे जीत है।
समय कठिन है लेकिन डर कर हम इसे और कठिन बना रहे हैं। जहाँ डरना चाहिए वहाँ दुर्भाग्य से हम बहुत बहादुर हो जाते हैं जैसे बिना मास्क बाहर निकलने में डरना चाहिए लेकिन वहाँ हम झगड़ा तक कर लेते हैं। मास्क भी कपड़े वाली, कई दिनों तक बिना धुली प्रयोग करते हैं। कपड़े की मास्क वायरस से कोई सुरक्षा नहीं देती। N95 या सर्जिकल मास्क ही पहने।
आपका दिन शुभ हो!
-अमिताभ त्रिपाठी