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इमरान के इस बयान की सजा भुगतेगा पूरा पाक, UAE लोगों को नहीं दे रहा वीजा, देश से भगाए जाने का भी खतरा

Arun Mishra
18 Nov 2020 4:51 AM GMT
इमरान के इस बयान की सजा भुगतेगा पूरा पाक, UAE लोगों को नहीं दे रहा वीजा, देश से भगाए जाने का भी खतरा
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ते दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने UAE के इजराइल के साथ द्विपक्षीय रिश्ते कायम करने की तीखी आलोचना की थी.

इस्लामाबाद : सऊदी अरब (Saudi Arabia) के बाद अब पाकिस्तान (Pakistan) और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के रिश्ते भी बेहद ख़राब स्थिति में पहुंच गए हैं. बीते दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने UAE के इजराइल के साथ द्विपक्षीय रिश्ते कायम करने की तीखी आलोचना की थी. बताया जा रहा है कि इससे UAE काफी नाराज़ है और उसने पाकिस्तानियों को वीजा देने में भी आनाकानी शुरू कर दी है. इसके साथ ही पाकिस्तानियों के सर पर UAE से भगाए जाने का खरता भी मंडरा रहा है.

HT की एक रिपोर्ट के मुताबिक, UAE में फिलीस्तीन समर्थक पाकिस्तानी एक्टिविस्टों को गिरफ्तार किया जा रहा है. इसके अलावा कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने UAE में रह रहे आम पाकिस्तानी नागरिकों के प्रति अतिरिक्त सख्ती बरतनी शुरू कर दी है और उन्हें छोटे-छोटे जुर्म के लिए भी गिरफ्तार कर जेल में डाला जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, UAE की अल स्वेहन जेल में करीब 5000 से ज्यादा पाकिस्तानी बंद हैं. मिली जानकारी के मुताबिक UAE अब पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा देने में भी आनाकानी कर रहा है, जिसके बाद अबू धाबी में मौजूद पाकिस्तानी राजदूत गुलाम दस्तगीर ने सरकार से मिलने की दरख्वास्त की थी जिसे ठुकरा दिया गया. बताया जा रहा है कि पाकिस्तानी डरे हुए हैं और UAE से डिपोर्ट किये जाने का डर भी सता रहा है.

इमरान का बयान और कंधार आतंकी हमला बना वजह

रिपोर्ट के मुताबिक UAE के इस व्यवहार के पीछे सिर्फ इमरान खान का बयान एक वजह नहीं है. ऐसी जानकारी मिली है कि साल 2017 में कंधार में हुए आतंकी हमले, जिसमें UAE के 5 डिप्लोमेट मारे गए थे के तार भी पाकिस्तान से जुड़े हैं. UAE की जांच एजेंसी ने पाया है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हक्कानी नेटवर्क आतंकी संगठन था. इसके अलावा पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI को भी इस हमले की पूरी जानकारी थी. हालांकि पाकिस्तान ने इस हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया है. जानकारों के मुताबिक सऊदी अरब और पाकिस्तान के खराब होते रिश्तों का असर अब इमरान खान के UAE के साथ रिश्तों पर भी पड़ रहा है. भारत के खिलाफ इमरान की नीति और आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के नरम रवैये से न तो सऊदी खुश है और अब UAE ने भी इसके प्रति खुलकर नाराजगी जतानी शुरू कर दी है.

ओबामा ने भी दिया पाकिस्तान को झटका

उधर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि उन्होंने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के ठिकाने पर छापा मारने के अभियान में पाकिस्तान को शामिल करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह 'खुला रहस्य' था कि पाकिस्तान की सेना, खासकर उसकी खुफिया सेवा में कुछ तत्वों के तालिबान और संभवत: अलकायदा से संबंध थे और वे कई बार अफगानिस्तान एवं भारत के खिलाफ सामरिक पूंजी के तौर पर इनका इस्तेमाल करते थे. ओबामा ने 'ए प्रोमिस्ड लैंड' नामक अपनी किताब में राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल में एबटाबाद में मारे गए छापे की जानकारी दी है. अमेरिकी कमांडो के इस छापे में दुनिया का सर्वाधिक वांछित आतंकवादी लादेन दो मई, 2011 को मारा गया था.

ओबामा ने बताया कि इस अत्यधिक खुफिया अभियान का तत्कालीन रक्षा मंत्री रोबर्ट गेट्स और पूर्व उपराष्ट्रपति एवं मौजूदा निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने विरोध किया था. अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ने बताया कि एबटाबाद में पाकिस्तानी सैन्य छावनी के बाहर एक पनाहगाह में लादेन के रहने की बात स्पष्ट हो जाने के बाद अलकायदा प्रमुख को मारने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया गया. उन्होंने कहा कि इस अभियान की गोपनीयता बनाए रखने की आवश्यकता ने चुनौती बढ़ा दी थी. ओबामा ने कहा, 'हम जानते थे कि यदि किसी को बिन लादेन के बारे में हमारे कदम की जरा सी भी भनक लग गई, तो मौका हमारे हाथ से चला जाएगा, इसी लिए पूरी संघीय सरकार में केवल कुछ ही लोगों को अभियान की योजना की जानकारी दी गई थी. हमारे सामने एक और रुकावट थी: हम भले ही कोई भी विकल्प चुनते, उसमें पाकिस्तान को शामिल नहीं किया जा सकता था.'

पाकिस्तान पर नहीं भरोसा

ओबामा ने कहा, 'हालांकि पाकिस्तान सरकार ने आतंकवाद विरोधी कई अभियानों में हमारे साथ सहयोग किया और अफगानिस्तान में हमारे बलों के लिए अहम आपूर्ति मार्ग मुहैया कराया, लेकिन यह खुला रहस्य था कि पाकिस्तान की सेना, खासकर उसकी खुफिया सेवाओं में कुछ तत्वों के तालिबान और संभवत: अलकायदा से भी संबंध थे. वे यह सुनिश्चित करने के लिए सामरिक पूंजी के तौर पर कभी-कभी उनका इस्तेमाल करते थे कि अफगान सरकार कमजोर बनी रहे और अफगानिस्तान पाकिस्तान के सबसे बड़े दुश्मन भारत के नजदीक न आने पाए.'

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