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हल्के रंग की ड्रेस पहने हुए 17 साल की चांसेले को देखकर लगता है कि वह स्कूल जा रही है. लेकिन वह स्कूल नहीं, बल्कि कहीं और जाती है. चांसेले फिलहाल अफ्रीकी देश चाड में रहती है. वह 15 साल की थी, जब से उसने एक सुनसान झोपड़ी में जाना शुरू किया. यहां वह पैसों के लिए अपने शरीर को बेचती है. वह बताती है, "हर हफ्ते तीन से चार लोग मेरे पास आते हैं."
सेले 2014 में सेंट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक (सीएआर) से भागकर उत्तर की तरफ चाड में चली आयी. सीएआर में चांसेले के पिता चरमपंथियों के हाथों मारे गये. वहां 2013 से मुस्लिम सेलेका विद्रोही और ईसाई लड़ाके आपस में लड़ रहे हैं. पिछले साल सीएआर में हिंसा काफी बढ़ गयी है जिसकी वजह से चाड में बड़ी संख्या में शरणार्थी पहुंचे. चाड दुनिया में तीसरा सबसे कम विकसित देश है, जो सूखा और बोको हराम के चरमपंथियों के साथ संघर्ष के चलते कई मुश्किलों में घिरा है.
चांसेले ने सोचा था कि चाड में उसकी जिंदगी कुछ आसान होगी लेकिन जहां वह सीएआर में बाजार में सामान बेचती थी, वहीं चाड में आकर उसे अपना जिस्म बेचना पड़ रहा है. एसके लिए उसे 250 सीएफए फ्रांक (लगभग 30 रुपये) जैसी छोटी सी रकम मिलती है और इतना ही नहीं, उसके ग्राहक बनने वाली पुरुष कभी कभी उसे पीटते भी हैं. उन्हें कंडोम इस्तेमाल करने के लिए भी नहीं कह सकती है. वह बताती है, "मैं जोखिम नहीं उठा सकती क्योंकि मैंने ऐसा किया तो वह किसी और लड़की के पास चला जायेगा."
चांसेले की आर्थिक स्थिति कितनी खराब है, इसका अंदाजा उसकी इन बातों से लगता है, "किसी दिन तो खाने के भी लाले पड़ जाते हैं. किसी दिन मुझे सिर्फ 50 या 100 फ्रैंक मिलते हैं जिससे मैं अपने पेट में कुछ डाल सकूं." चांसेले के माता पिता चाड में ही पैदा हुए थे. वह उन हजारों लोगों में शामिल हैं जो वापस अपने पूर्वजों की जमीन पर लौटे हैं, लेकिन उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं जिनसे उनकी राष्ट्रीयता साबित हो सके.
सदियों तक इस इलाके के व्यापारी और चरवाहे परिवार यूरोपीय औपनिवेशिक ताकतों द्वारा खींची गयी सीमा रेखाओं के आरपार मुक्त रूप से आते जाते रहे हैं. जब सीएआर में युद्ध शुरू हुआ और बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा और हत्याएं होने लगी तो वहां रहने वाले बहुत से लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गयी. चाड ने विमान भेज कर सीएआर से भाग रहे मुसलमानों को अपने यहां बुलाया.
आधिकारिक रूप से सीएआर से आये 70 हजार शरणार्थी दक्षिणी चाड में बनाए गये 20 गांवों में रहते हैं. लेकिन इन गावों से अकसर खाने और दवाओं की किल्लत की खबरें मिलती हैं. इन्हीं शरणार्थियों में चांसेले भी शामिल है जो कभी स्कूल नहीं गयी. वह बताती है कि कुछ महीने पहले बारिश में उसका राशन कार्ड भी बह गया और दूसरा कार्ड बनवाना लगभग नामुमकिन है. चांसेले का दो साल का एक बच्चा भी है जिसकी देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. इस बच्चे का पिता इलाके को छोड़ कर चला गया है. वह बताती है, "मैं यही रह गयी क्योंकि मेरे पास कोई विकल्प नहीं था."