अंतर्राष्ट्रीय

खाने की बर्बादी बनाम भूख से मुठभेड़

Shiv Kumar Mishra
16 Oct 2023 9:23 AM GMT
खाने की बर्बादी बनाम भूख से मुठभेड़
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Food Waste vs. Encountering Hunger


अरविंद जयतिलक

यह कितना विडंबनापूर्ण है कि हर वर्ष करोड़ों टन खाने की बर्बादी हो रही है वहीं दुनिया में दाने-दाने के लिए मोहताज लोगों की तादाद बढ़ रही है। हाल ही में सयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट आॅफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड 2022’ रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि दुनिया के 73.5 लोग भुखमरी के शिकार हैं। जबकि 2019 में यह संख्य 61.8 करोड़ थी। यानी गौर करें तो महज तीन साल में 12.2 करोड़ लोग बढ़ गए जिन्हें एक वक्त का खाना नसीब नहीं हुआ। 2022 में दुनिया की 11.3 फीसदी अर्थात् 90 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिला। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की 2022 की ही रिपोर्ट पर गौर करें तो दुनिया भर में अनुमानित रुप से 93.10 करोड़ टन खाना बर्बाद हुआ जो वैश्विक स्तर पर कुल खाने का 17 फीसदी है।

रिपोर्ट के मुताबिक इसका 61 फीसदी हिस्सा घरों से, 26 फीसदी खाद्य सेवाओं व 13 ी खुदरा जगहों से बर्बाद हुआ है। यानी इस तरह दुनिया में सालाना प्रति व्यक्ति 121 किलो खाना बर्बाद हुआ। बर्बाद होने वाले खाने को तौलें तो यह 40-40 टन वाले 2.3 करोड़ ट्रकों में समाएगा जो कि पूरी पृथ्वी का सात बार चक्कर लगाने के लिए पर्याप्त है। खाने की बर्बादी के मामले में पहला स्थान चीन का जहां हर साल 9.6 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। दूसरे स्थान पर भारत है जहां हर साल 6.87 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। यह प्रति व्यक्ति के हिसाब से 50 किलो ठहरता है। खाने की यह बर्बादी इस अर्थ में ज्यादा चिंतनीय है कि एक ओर जहां दुनिया भर के 73.5 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं और 300 करोड़ लोगों को सेतहमंद भोजन नहीं मिल पाता वहीं करोड़ों टन खाना बर्बाद हो रहा है। याद होगा गत वर्ष पहले एसोचैम और एमआरएसएस इंडिया की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि भारत में हर वर्ष 440 अरब डाॅलर के दूध, फल और सब्जियां बर्बाद होते हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के एक बड़े उत्पादक देश होने के बावजूद भी भारत में कुल उत्पादन का करीब 40 से 50 फीसदी भाग जिसका मूल्य लगभग 440 अरब डाॅलर के बराबर है, बर्बाद हो जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक देश में हर साल उतना भोजन बर्बाद होता है जितना ब्रिटेन उपभोग करता है। आंकड़ों पर गौर करें तो देश में 2015-16 में कुल अनाज उत्पादन 25.22 करोड़ टन था। यानी यह 1950-51 के पांच करोड़ टन से पांच गुना ज्यादा है। लेकिन इसके बावजूद यह अन्न लोगों की भूख नहीं मिटा पा रहा है। ऐसा नहीं है कि यह उत्पादित देश की आबादी के लिए कम है। लेकिन अन्न की बर्बादी के कारण करोड़ों लोगों को भूखे पेट रहना पड़ रहा है। भोजन की कमी से हुई बीमारियों से देश में सालाना हजारों बच्चों की जान जाती है। वैश्विक भूख सूचकांक-2023 के मुताबिक ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत दुनिया के 125 देशों में 111 वें स्थान पर है।

रिपोर्ट के कहा गया है कि चाइल्ड वेस्टिंग की दर सबसे अधिक 18.7 फीसदी है जो अतिकुपोषित को इंगित करता है। हालांकि भारत सरकार ने इस सूचकांक को खारिज करते हुए इसे त्रुटिपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण मंशा से जारी किया गया करार दिया है। यहां ध्यान देना होगा कि बर्बाद भोजन को पैदा करने में 25 प्रतिशत स्वच्छ जल का इस्तेमाल होता है और साथ ही कृषि के लिए जंगलों को भी नष्ट किया जाता है। इसके अलावा बर्बाद हो रहे भोजन को उगाने में 30 करोड़ बैरल तेल की भी खपत होती है। बर्बाद हो रहे भोजन से जलवायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। उसी का नतीजा है कि खाद्यान्नों में प्रोटीन और आयरन की मात्रा लगातार कम हो रही है। खाद्य वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाई आॅक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूं, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान में प्रोटीन की कमी होने लगी है। आंकड़ों के मुताबिक चावल में 7.6 प्रतिशत, जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूं में 7.8 प्रतिशत और आलू में 6.4 प्रतिशत प्रोटीन की कमी दर्ज की गयी है।

अगर कार्बन उत्सर्जन की यही स्थिति रही तो 2050 तक दुनिया भर में 15 करोड़ लोग इस नई वजह के चलते प्रोटीन की कमी का शिकार हो जाएंगे। यह दावा हार्वर्ड टीएच चान स्कूल आॅफ पब्लिक हेल्थ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में किया है। यह शोध एनवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में प्रकाशित हुआ। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारतीयों के प्रमुख खुराक से 5.3 प्रतिशत प्रोटीन गायब हो जाएगा। इस कारण 5.3 करोड़ भारतीय प्रोटीन की कमी से जूझेंगे। गौरतलब है कि प्रोटीन की कमी होने पर शरीर की कोशिकाएं उतकों से उर्जा प्रदान करने लगती हैं। चूंकि कोशिकाओं में प्रोटीन भी नहीं बनता है लिहाजा इससे उतक नष्ट होने लगते हैं। इसके परिणामस्वरुप व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और उसका शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। अगर भोज्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा में कमी आयी तो भारत के अलावा उप सहारा अफ्रीका के देशों के लिए भी यह स्थिति भयावह होगी। इसलिए और भी कि यहां लोग पहले से ही प्रोटीन की कमी और कुपोषण से जूझ रहे हैं। बढ़ते कार्बन डाई आक्साइड के प्रभाव से सिर्फ प्रोटीन ही नहीं आयरन कमी की समस्या भी बढ़ेगी।

दक्षिण एशिया एवं उत्तर अफ्रीका समेत दुनिया भर में पांच वर्ष से कम उम्र के 35.4 करोड़ बच्चों और 1.06 महिलाओं के इस खतरे से ग्रस्त होने की संभावनाएं हैं। इसके कारण उनके भोजन में 3.8 प्रतिशत आयरन कम हो जाएगा। फिर एनीमिया से पीड़ित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी। प्रोटीन की कमी से कई तरह की बीमारियों का खतरा उत्पन हो गया है। अभी गत वर्ष ही इफको की रिपोर्ट में कहा गया कि कुपोषण की वजह से देश के लोगों का शरीर कई तरह की बीमारियों का घर बनता जा रहा है। कुछ इसी तरह की चिंता ग्लोबर हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में भी जताया गया है।

हालांकि यूनाइटेड नेशन के फूड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं के कारण अब भारत में पिछले एक दशक में भूखमरी की समस्या में तेजी से कमी हुई है जिससे कुपोषण का संकट घटा है। यहां ध्यान देना होगा कि दुनिया भर में सालाना जितना अन्न की वैश्विक बर्बादी हो रही है उसकी कीमत तकरीबन 1000 अरब डाॅलर है। दुनिया भर में अन्न की बर्बादी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि कुल बर्बाद भोजन को 20 घनमीटर आयतन वाले किसी कंटेनर में एक के बाद एक करके रखें और ऊंचाई में बढ़ाते जाएं तो 1.6 अरब टन भोजन से चांद तक जाकर आया जा सकता है। आंकड़ों के मुताबिक विकसित देशों में अन्न की बर्बादी के कारण 680 अरब डाॅलर और विकासशील देशों में 310 अबर डाॅलर का नुकसान हो रहा है।

ध्यान देने वाली बात यह कि अमीर देश भोजन के सदुपयोग के मामले में सबसे ज्यादा संवेदनहीन और लापरवाह हैं। इन देशों में सालाना 22 करोड़ टन अन्न बर्बाद होता है। जबकि उप सहारा अफ्रीका में सालाना कुल 23 करोड़ टन अनाज पैदा किया जाता है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की ही बात करें तो यहां जितना अन्न खाया जाता है उससे कहीं अधिक बर्बाद होता है। आंकड़ों के मुताबिक केवल खुदरा कारोबारियों और उपभोक्ताओं के स्तर पर अमेरिका में हर साल 6 करोड़ टन अन्न बर्बाद होता है। अगर भारत की बात करें तो देश में 2014 में किराना व्यापार 500 अरब डाॅलर का था जो 2023 तक बढ़कर 950 अरब डाॅलर होने की संभावना है। ऐसे में आवश्यक है कि इस उद्योग में खाद्य पदार्थों को एकत्र करने, स्टोर करने और एक से दूसरी जगह भेजने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल हो। अगर ऐसा हुआ तो निःसंदेह खाने की बर्बादी रुकेगी और भूख से तड़पते लोगों की तादाद घटेगी।

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