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मैक्रों सरकार ने लिया एक और बड़ा फैसला, बढ़ सकती है मुसलमानों की नाराजगी!

Arun Mishra
3 Nov 2020 4:37 PM GMT
मैक्रों सरकार ने लिया एक और बड़ा फैसला, बढ़ सकती है मुसलमानों की नाराजगी!
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फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 2 अक्टूबर को दिए भाषण में इस्लामिक अलगाववाद पर नकेल कसने का ऐलान किया था

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 2 अक्टूबर को दिए भाषण में इस्लामिक अलगाववाद पर नकेल कसने का ऐलान किया था. मैक्रों ने अपनी योजना के तहत मस्जिदों की फंडिंग और अन्य धार्मिक संगठनों पर कड़ी निगरानी रखने जैसे कदम उठाने की बात कही थी. मैक्रों की इसी योजना को आगे बढ़ाते हुए फ्रांस के गृह मंत्री गेराल्ड डारमैनिन ने रविवार को एक नए बिल की जानकारी दी है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि फ्रांस ने कट्टर इस्लाम के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया है.

फ्रांस के गृह मंत्री ने एक अखबार ला वोएक्स नॉर्ड को दिए इंटरव्यू में 'अलगाववाद' को रोकने के लिए एक नए बिल का जिक्र किया. डारमेनिन ने कहा कि अगर कोई विपरीत लिंग के डॉक्टर से इलाज कराने से इनकार करता है तो उसे फ्रांस में पांच साल की जेल हो सकती है और 75,000 यूरो का जुर्माना भरना पड़ सकता है. डारमेनिन ने कहा कि ये नियम सरकारी अधिकारियों पर दबाव डालने वाले किसी भी शख्स पर लागू होंगे. इसी तरह, अगर कोई महिला टीचर से पढ़ने से इनकार करता है तो उसे भी सजा मिलेगी.

हालांकि, अभी तक इस बिल को लेकर सटीक जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन सोशल मीडिया पर इसका विरोध शुरू हो गया है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में फ्रेंच ऐंड यूरोपियन पॉलिटिक्स के प्रोफेसर फिलिप मार्लिरे ने कहा, मैक्रों का फ्रांस तेजी से तानाशाही शासन में बदलता जा रहा है. पत्रकार शिहामे असबेग ने अपोजिट सेक्स के डॉक्टर से इलाज कराने को लेकर भारी जुर्माने और जेल की सजा को लेकर तंज कसा. उन्होंने एक ट्वीट में कहा है कि आने वाले वक्त में लोग केवल इसलिए जेल में होंगे क्योंकि उन्होंने महिला या फिर पुरुष डॉक्टर से इलाज कराने के लिए मना कर दिया.

वहीं, रिम सारा नाम की एक शोधकर्ता ने लिखा, कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपने धर्म से इतर किसी महिला से ही इलाज कराना पसंद करती हैं. अपने डॉक्टर को चुनने की आजादी तो मेडिकल के एथिक्स में भी दी गई है.

फ्रांस की सरकार दिसंबर महीने में अलगाववाद को रोकने के लिए एक बिल पेश करेगी जो चर्च और सरकार को अलग रखने वाले 1905 के कानून को और मजबूत करेगा. मैक्रों ने अपने भाषण में कहा था कि इस्लाम पूरी दुनिया में संकट में है. इस बयान को लेकर इस्लामिक दुनिया के कई देशों में आक्रोश देखने को मिला.

फ्रांस के गृह मंत्री डारमेनिन इससे पहले भी अपने एक बयान को लेकर विवादों में आ गए थे. डारमेनिन ने मंगलवार को बीएफएम टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वो हमेशा से बाजार में धार्मिक समुदाय विशेष के लिए हलाल मांस की अलग से दुकानें देखकर हैरान होते हैं. फ्रांस के मंत्री ने कहा था कि अलग से इन उत्पादों की बिक्री से अल्पसंख्यक समुदाय का आइसोलेशन बढ़ता है और कई बार ये उन्हें कट्टरपंथ की तरफ भी ले जाता है.

मंत्री ने कहा था, मैं हलाल, कोशर मीट की दुकानों की जरूरत को अच्छी तरह से समझता हूं. मैं ग्राहकों की आलोचना नहीं करता हूं लेकिन विक्रेताओं की गलती है. मुझे पता है कि हलाल मीट सुपरमार्केट में बेचा जाता है लेकिन अफसोस इस बात का है कि इसके लिए अलग से दुकानें हैं...मुस्लिमों के लिए अलग, कोशर मीट के लिए अलग और फिर अन्य दूसरी दुकानें...अलग से बाजार क्यों हैं?

डारमेनिन ने अल्पसंख्यकों के लिए खाना और कपड़े तैयार करने वाली कंपनियों पर भी निशाना साधा और कहा कि ऐसी कंपनियां अल्पसंख्यकों को देश में और अलग-थलग कर रही हैं. उन्होंने कहा था, मुझे लगता है कि फ्रेंच पूंजीवाद और वैश्विक पूंजीवाद की एक जिम्मेदारी बनती है. जब आप किसी धार्मिक समुदाय के लिए अलग से कपड़े बना रहे हैं तो आपकी छोटी सी जिम्मेदारी है कि आप अलगाववाद को रोकें. उन्होंने कारोबारी नेताओं से अपील की कि लोगों के बीच शांति कायम करने में वो भी अपना योगदान दे सकते हैं और अलगाववाद की लड़ाई में देश के साथ खड़े हो सकते हैं.

नेशनल एसेंबली के अध्यक्ष और मैक्रों की पार्टी के सदस्य रिचर्ज फेरांड ने गृह मंत्री की इस टिप्पणी की आलोचना की थी. उन्होंने कहा, मैं हैरान नहीं हूं. मैं जब शॉपिंग के लिए जाता हूं तो ब्रिटॉन सेक्शन में जाता हूं क्योंकि मैं ब्रिटॉन हूं. उन्होंने गृह मंत्री पर दोहरा मानदंड अपनाने का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि मेरे जिले में एक बड़ी कंपनी है जो सऊदी अरब को पांच लाख टन हलाल चिकन की सप्लाई करती है. तब हमारा तर्क होता है कि हम बाजार की मांग के हिसाब से फैसला कर रहे हैं तो फिर हलाल खाने की दुकानें होने में भी कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.

Arun Mishra

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Sub-Editor of Special Coverage News

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