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जब पीड़ित को ताकत मिल जाती है शोषक बन जाता है! इजराइल, फिलिस्तीन की धरती पर बना।जो कभी आजाद मुल्क था

Shiv Kumar Mishra
9 Oct 2023 9:35 AM GMT
जब पीड़ित को ताकत मिल जाती है शोषक बन जाता है! इजराइल, फिलिस्तीन की धरती पर बना।जो कभी आजाद मुल्क था
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आज का इजराइल, नाजी जर्मनी से क्या कम है?? नेतन्याहू भी उसी कौमी सुपीरियरटी की थ्योरी पर चल रहे हैं.

मनीष सिंह

यहूदी प्रतिभाशाली कौम है। जहां भी हो, मेहनत करती है। एक दूसरे की मदद करती है, स्ट्रांग नेटवर्क बनाती है। इस प्रतिभा और नेटवर्क की बदौलत, जर्मनी के बड़े बैंक, व्यापार, बड़ी कम्पनियों के मालिक यहूदी थे। समृद्ध माइनॉरिटी से जलन स्वाभाविक है।

ईसा को सूली चढ़वाने वाले यहूदियों से क्रिस्चियन्स का धार्मिक वैमनस्य भी है। एंटी सेमेटिज्म, हर क्रिश्चियन के मन मे, थोड़ा बहुत वैसे ही दबा होता है, जैसे हर हिन्दू के दिल मे मुसलमान के प्रति, एक भाव दबा होता है।

हिटलर ने इसे हवा देने, भड़काने, बढ़ाने में लाभ देखा। वियेन्ना का मेयर , यहूदियों के खिलाफ जहर उगल कर जीतता। जनता को विकास, इकॉनमी, रोजगार, इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ, थोड़ा परपीड़ा का सुख प्रदान देना, चुनाव जीतने की रेसिपी है।

बात नोट की गई, कि सनद रहे, और वक्त पर काम आए।

वक्त आया, हिटलर के पहले 6 साल अकूत जर्मन समृद्धि के रहे। साथ मे "न्यूरेम्बर्ग लॉ", और "नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लासेज" देकर हिटलर ने जर्मनों को "अत्याचार रस" दिया। और युद्ध मे झोंक दिया।

पूरा यूरोप जीत लिया, तो मौत का मेगा खेल खेला। पुल पर यहूदियों खड़ा करके, पति पत्नी, बाप बेटा को बांध दो। एक को गोली मारो, वो नदी में गिरेगा, दूसरा साथ मे डूब मरेगा। सिंगल बुलेट, डबल शिकार- मास्टरस्ट्रोक

सामूहिक स्नानागार में नग्न कर नहाने भेजो। शॉवर से पानी नही, जहरीली गैस निकलेगी, सब मारे गए,तो भट्टी में झोंक दो। राख भी न बचेगी- मास्टरस्ट्रोक कई घिनौने मास्टरस्ट्रोक है। गिनना उद्देश्य नही।बस, वो दौर याद दिलाना है, जब यहूदी दुनिया की सबसे सताई हुई कौम थी।

वक्त का पहिया घूमा। हिटलर की अधजली लाश को दो गज जमीन न मिली। यहूदियों को होमलैंड मिला। रेगिस्तान, जिसे उन्होंने करीने से सँवारा। पानी की एक एक बूंद बचाकर खेती की, नई तकनीकें खोजी, नए अविष्कार किये। अपनी प्रतिभा दिखाई।

इजराइल, फिलिस्तीन की धरती पर बना। जो कभी आजाद मुल्क था। मगर अब ऐसा मुल्क था, जो अपनी ही जमीन पर शरणार्थी था। तब से आज तक, वो अपनी ही जमीन पर दोयम दर्जे की कौम है। सबसे ज्यादा सताई गयी कौम है। विडंबना ये, कि उसे सताने वाली वो कौम है, जो 50 साल पहले खुद सताई हुई थी।

फिलिस्तीनियों का लड़ना लाज़िम है। वे बम, गोली, रॉकेट से नही, तो नाखून, दांत,और मुक्कों से लड़ेंगे। क्योकि ताकत और हिंसा किसी कौम को नही तोड़ती। दस में से पांच मर जाते हैं। पांच मौत का डर खोकर, खेल बदल देते हैं। वह कौम चाहे यहूदी हो, मुसलमान हो, हिन्दू हो, कश्मीरी हो, अफगानी हो, या वियतनामी।

अगर सत्ता में यहूदी हैं। इस अंतहीन कॉन्फ्लिक्ट को खत्म करने का जिम्मा उनका है। वे इलाके के मुस्लिम्स को डिग्निटी के साथ जीने दें। उन्हें बराबरी दें, आत्मसात करें। क्योकि रिकोंसिलेशन का जिम्मा विजेता का होता है। वह फेयर डील दे, अपने शोषण का दर्द याद रखे। ताकत पाने पर शोषण से बचे। इजराइल और अरब, चाहे जितनी हिंसा कर लें, आज अथवा पचास साल बाद, समानता और सहअस्तित्व को स्वीकार करके ही विषय समाप्त होगा।

इजराइल, सक्षम है। मुट्ठी भर हमास से लड़ने के लिए,उन्हें हमारे हैशटैग की कतई जरूरत नही। वैसे भी जो नल्ले, अपने देश मे नाजी फलसफों पर जीते हैं, होलोकॉस्ट करने के सपने देखते हैं, उस नीच जमात का साथ पाकर इजरायल क्या ही आल्हादित होगा?? फिलिस्तीन के गरीबों को जबरिया जोश दिलाने वाले भी बाज आएं। इस्लाम की सुपिरियरटी गाने से, ब्रदरहुड दिखाने से, अंतहीन युद्ध से भी कुछ न होगा।

इजराइल बन चुका, वो रहेगा।

मेरे लिए इतिहास के नजरिये से यह देखना इंटरेस्टिंग है कि कैसे ओप्रेस्ड, मौका मिलते ही, ओप्रेसर बन जाता है। हमारे यहां अंबेडकरवादियों को देखिये। जहां सौ इकट्ठा हो जाएं, सिर्फ गाली और गंदगी मिलेगी। जब, और जहां सत्ता में रहे, रिवर्स डिस्क्रिमिनेशन दिखेगा। संघियों को देखिये, एक तरह से जनता से मायूस, ये लोग सत्तर साल पोलिटीकली ओप्रेस्ड रहे हैं। आज उसका निर्लज्ज बदला ले रहे हैं, नेहरू से, उसके खानदान से, जनता से तिरंगे, और सम्विधान से।

आज का इजराइल, नाजी जर्मनी से क्या कम है?? नेतन्याहू भी उसी कौमी सुपीरियरटी की थ्योरी पर चल रहे हैं। सत्ता मिलने पर हिटलर न बनना मामूली लोगो के लिए कठिन है। सत्ता मिले, और आदमी नेहरू बना रहे, यह गांधी के भारत मे ही सम्भव हो सकता है। हम यहां अपनी मूल खासियत खो रहे हैं। तो अरब इजराइल छोड़िये, अभी गांधी के भारत के पक्ष में खड़ा होईये।

पहले अपने घर को चिरागों से बचाइये। अगर हिंदुस्तान में टैंक पर पत्थर फेंकते नौनिहाल नही देखना चाहते। देन फर्स्ट..

स्टैंड विद इण्डिया।

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