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खशोगी की की हत्या और अमेरिकी अरब देशों के संबंध
प्रभात डबराल
सऊदी मूल के अमेरिकी पत्रकार खशोगी की निर्मम हत्या के बाद ट्रम्प जो चीत्कार कर रहे हैं उसके खोखलेपन को समझने के लिए इतिहास की कुछ घटनाओं को याद कर लेना चाहिए. ये वो घटनायें हैं जो विश्व पटेल पर हो रही इस्लाम की छीछालेदर के मूल कारणों पर भी कुछ रोशनी डाल सकती हैं.
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सऊदी अरब और दूसरे अरब देश अस्तित्व में नहीं थे.अरब की धरती पर उस समय कुछ कबीले थे जो आमतौर पर दुनियां के मुल्कों को गुलाम मुहैय्या करते थे. टर्की के आटोमन एम्पायर का न सिर्फ समूची अरब भूमि पर कब्ज़ा था, वहां की ख़िलाफ़त (मुखालफत नहीं) समूचे इस्लाम को नियंत्रित करती थी. प्रथम विश्व युद्ध में आटोमन एम्पायर ने जर्मनी का साथ दिया था इसलिए जंग जीतने के बाद ब्रिटैन और दूसरे पश्चिमी देशों ने टर्की की खिलाफत को नेस्तनाबूद करने की ठान ली.
यही वो अवसर था जब गांधी जी ने भारत और अन्य मुल्कों के मुसलमानों की मांग का समर्थन करते हुए ब्रिटैन से अपील की कि वो खिलाफत (मुखालफत नहीं) को तोड़ने की कोशिश न करे. खिलाफत यानी खलीफा का निज़ाम. ध्यान रखिये की उस समय न सऊदी अरब था न कोई और अरब मुल्क- मका मदीना भी टर्की की सल्तनत और खिलाफत के अधीन थे. टर्की इस्लाम का केंद्र बिंदु था.
ब्रिटैन और उसे पश्चिमी मित्रों ने न गांधी की सुनी न दुनियां के मुसलमानों की और अरब के कबीलों को आज़ाद करते हुए सऊदी अरब नाम के एक नए मुल्क का निर्माण किया और मक्का मदीना की मुक़द्दस ज़मीन उसे सौंप दी. उसके बाद सऊदी अरब ने मुसलमानों के एक तबके को साथ लेकर दुनियां में इस्लाम की जो भद्द पीटी वो इतिहास में दर्ज़ है.
आज भी सऊदी अरब खुद को मुसलमानों का मसीहा साबित करने के लिए ऐसे मुसलमानों और उन मुल्कों पर भी हमले करता है जो लिबरल रास्ता अख्तियार करने की कोशिश करतें हैं. यमन उसका उदहारण है. अगला टारगेट क़तर हो सकता है. इस काम में अमरीका और उसके पिछलग्गू यूरोप के देश सऊदी अरब का खुलकर साथ देते हैं. इस पृष्ठभूमि में खशोगी की निर्मम हत्या को लेकर ट्रम्प सऊदी अरब के खिलाफ कोई कार्रवाई करे ये संभव नहीं है. सऊदी अरब तो अमेरिका का लठैत है.