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इंडिगो संकट की जड़ में सरकारी मनमानी ही है

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IndiGo : महिला ने काउंटर पर चढ़कर काटा बवाल!| रोती-चीखती पब्ल‍िक? सरकार की मनमानी ने सबको फंसा दिया

किसानों के फायदे के लिए कानून उनकी मांग और सलाह के बिना बना था - लगभग वैसा ही मामला है। यह सही है कि नियम काफी पहले घोषित हो गए थे, सबके लिए थे और सबको लागू करना था, समय दिया गया। बाकी ने लागू कर दिया या उन्हें इससे दिक्कत नहीं हुई। इंडिगो ने लागू नहीं किया या करना ही नहीं चाहता था। इसके लिए माफी मांगी है। सरकार इसकी जांच करवा रही है। पर वह अलग मामला है।

इन नियमों को लागू नहीं करने का इंडिगो का कारण यह हो सकता है कि इंडिगो रोज़ाना लगभग 2,700 उड़ानें संचालित करता है। इसमें अंतरदेशीय, अंतरराष्ट्रीय, कार्गो और चार्टर सब शामिल हैं। दूसरी ओर, एयर इंडिया सप्ताह में लगभग 4,277 घरेलू उड़ानें संचालित करता है। औसतन 610–620 उड़ानें रोज। कुछ जगह इसे 1000 कहा गया है। इसलिए नए नियमों से इंडिगो को ज्यादा परेशानी है। नए नियमों का समर्थन विरोध दोनों है पर वह अलग मुद्दा है। तथ्य यह है कि मोदी शासन में अच्छी भली विमान सेवाएं बंद हुई हैं। सरकारी एयर इंडिया बिक गई, विस्तारा का इसमें विलय हुआ। इस दौरान इंडिगो बहुत बड़ी कंपनी हो गई है। करीब 65 प्रतिशत बाजार पर इसका कब्जा है। यह एकाधिकार बनाने या बनाने देने की सरकारी नीति का मामला है।


नए नियम के तहत, पायलट को आराम देना अनिवार्य किया गया है। तथ्य यह है कि वे भी नौकरी ही करते हैं। श्रम कानूनों में समानता होनी चाहिए या सुविधाओं भत्तों से भरपाई होनी चाहिए। इसकी तुलना श्रम कानूनों या दूसरे क्षेत्र के श्रमिकों से भले नहीं की जानी चाहिए लेकिन श्रमिक तो चाहेंगे और सबके वोट पर निर्भर सरकार ऐसा कैसे कर सकती है का भी मामला है। रात के समय की ड्यूटी और उससे संबंधित नियम भी बदले हैं। इसमें लैंडिंग और रात की लगातार ड्यूटी की संख्या पर पाबंदी लगाई गई थी। इससे फ्लाइट्स और शेड्यूलिंग पर असर हुआ। दूसरे क्षेत्र में श्रमिकों को ऐसी सुविधा नहीं है और सिर्फ पायलट को है तो क्या इसलिए कि विमान से सरकार भी यात्रा करती है वरना रेलवे में रात की ड्यूटी करने वालों के लिए ऐसे ही नियम होने चाहिए।

विमान क्रू के लिए नए बनाए गए नियम अंतररष्ट्रीय मानकों के अनुसार तो हैं लेकिन कहा जा सकता है कि उससे भी बेहतर हैं। क्रू के लिए नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों से बेहतर और यात्रियों का हाल जो हुआ सो हुआ। हालांकि ये बदलाव सुरक्षा के लिए हैं ताकि क्रू की थकान कम हो और फ्लाइट ऑपरेशन सुरक्षित रहे। सबको पता है कि इसे 10 फरवरी तक टाल दिया गया है? अभी सुरक्षा की जरूरत नहीं है और अगर अभी काम चल सकता है तो आगे क्यों नहीं? वैसे भी, ऑफ के दिन आदमी घरेलू कामों में व्यस्त रहता है या फिर पार्टी करता है आराम कौन नौकरी पेशा कर पाता है? पायलट ने शराब पी रखी है कि नहीं इसकी तो जांच होती है लेकिन नींन्द पूरी हुई है कि नहीं इसकी जांच पता नहीं होती है कि नहीं और अगर यह सुरक्षा के लिए जरूरी है तो स्वास्थ्य के लिए भी है। और दूसरे क्षेत्र में स्वास्थ्य कारणों से इसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए।


दिलचस्प यह भी है कि बहुत हद तक यह बदलाव डीजीसीए (नागर विमानन महानिदेशालय) की अपनी पहल यानी सरकार / नियामक-स्तर पर किया है न कि किसी एयरलाइंस, यात्री यूनियन या पायलट यूनियन की मांग पर। डीजीसीए ने अपने नियम-पुनरावलोकन के तहत यह फैसला किया कि पायलट और क्रू का साप्ताहिक अवकाश का समय 48 घंटे हो और रात की उड़ान, ड्यूटी और लैंडिंग पर सीमा लगाई जाए। मानव स्वास्थ्य के लिए यह हर क्षेत्र के कर्मचारी के साथ होना चाहिए और सरकार सिर्फ (या सबसे पहले) उड्डयन क्षेत्र की चिन्ता क्यों करे? हालांकि, डीजीसीए ने इन बदलावों को अदालत में भी स्पष्ट किया था। इसीलिए मैं इसे सरकारी मनमानी कह रहा हूं। दूसरा कारण यह भी है कि 2002 तक जब मैंने नौकरी की है, साप्ताहिक अवकाश का समय दिन में होता था। छह दिन के बाद एक दिन, रात की ड्यूटी के बाद दो दिन और रात की ड्यूटी शुरू होने से पहले ऑफ हो यह भी सुनिश्चित किया जाए। यह नियम था लेकिन पालन नहीं होता था और वह अलग मामला है।

अभी मुद्दा यह है कि छुट्टी दिन में होती थी, घंटे में नहीं। पालयट की ड्यूटी के कारण ऐसा हो या घंटे में ही नापा जाता हो तो भी 36 घंटे यानी डेढ़ दिन को बढ़ा कर पौने दो दिन नहीं पूरे दो दिन कर दिया गया है और यह प्रतिशत में बहुत ज्यादा होगा। इसका असर कर्मचारियों की संख्या पर होगा तो कंपनी के लिए कर्मचारी महंगे हो जाएंगे और इसकी वसूली यात्रियो से किराए में ही की जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो हवाई चप्पल वालों की हवाई यात्रा का क्या होगा? वैसे भी सरकार के लिए “नियम बनाना” भर पर्याप्त नहीं है। उसे व्यावहारिक रूप से लागू करना उतना ही ज़रूरी है। इसमें सरकार बुरी तरह नाकाम रही है लेकिन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ ले रही है और यही प्रचार किया जा रहा है। यात्रियों को परेशानी का ख्याल सरकार को भी रखना था और पहले से पता होना चाहिए था — लेकिन जो हुआ सबको मालूम है। फिर भी इंडिगो को सीईओ ने वीडियो जारी कर स्थिति बताई तो डीजीसीए ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है।


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