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भारत-भूटान संबंध एक दूसरे के लिए क्यों हैं जरूरी

Satyapal Singh Kaushik
23 Jun 2022 2:45 AM GMT
भारत-भूटान संबंध एक दूसरे के लिए क्यों हैं जरूरी
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सत्यपाल सिंह कौशिक

दक्षिणएशिया का छोटा देश भूटान एक पर्वतीय व स्थलरूढ देश है।भारत का पड़ोसी देश होने की वजह से भारत और भूटान के संबंध प्राचीनकाल से ही रहे है।

दोनों देशों के बीच में भौगोलिक और सामाजिक-सांस्कृतिक निकटता है। 1910 में ब्रिटिश द्वारा हस्ताक्षरित भूटान के साथ पुनाखा की संधि के बाद के समय में भारत-भूटान संबंध की नींव रखी गई। नेपाल व भूटान दोनो देश ही भारत के मुख्य पडोसी देश है। भारत व भूटान के बीच में खुली सीमा है। द्विपक्षीय भारतीय-भूटान समूह सीमा प्रबंधन और सुरक्षा की स्थापना दोनों देशों के बीच सीमा की सुरक्षा करने के लिए स्थापित की गई है।

भारत की आजादी के बाद से ही भारत व भूटान हर समय मे साथ खडे रहने वाले दोस्त की तरह रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे हिमालयी देश के प्रवेश का समर्थन भी भारत द्वारा ही किया गया था। जिसके बाद से इस देश को भी संयुक्त राष्ट्र से विशेष सहायता मिलती है। दोनों के बीच अधिकतर समय तक द्विपक्षीय संबंध मजबूत ही रहे है।

भारत और भूटान के बीच द्विपक्षीय संबंधों का आधार 1949 की भारत-भूटान संधि द्वारा बनाया गया है, जो दूसरों के बीच, "स्थायी शांति और दोस्ती, मुक्त व्यापार और" प्रदान करता है। यह संबंध और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि चार भारतीय राज्य, अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम और पश्चिम बंगाल - भूटान के साथ 699 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। भारत कई मायनों में भूटान के लिए महत्वपूर्ण है। भारत माल के स्रोत और बाजार दोनों के रूप में भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है ।

भारत-भूटान संबंध संभवत: दक्षिण एशिया में एकमात्र द्विपक्षीय संबंध है जो दोनों पक्षों के लिए प्रेम व सहयोग का भाव रखते हैं। भूटान ने अपनी आर्थिक सहायता के लिए भारत का आभार व्यक्त किया है, जबकि भारत ने भूटान की विकासात्मक आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाई है। जुड़ाव के कारण भूटान सकल राष्ट्रीय खुशी के आधार पर एक विशिष्ट विकास प्रक्षेपवक्र का निर्माण करने में सक्षम रहा है। पिछले कुछ वर्षों में द्विपक्षीय संबंध व्यापक सहयोग में परिपक्व हुए हैं, जिसमें जल विद्युत, सूचना प्रौद्योगिकी, खुफिया जानकारी साझा करना, आपदा जोखिम प्रबंधन, शिक्षा और संस्कृति जैसे विभिन्न प्रकार के मुद्दे शामिल हैं।

भारत-भूटान संबंध कई मायनों में अद्वितीय हैं। भारत के पड़ोस में अन्य द्विपक्षीय संबंधों की तुलना में भूटान के साथ संबंध अपेक्षाकृत परेशानी मुक्त और सौहार्दपूर्ण हैं। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध औपचारिक रूप से 1968 में भूटान की राजधानी थिम्पू में भारत के एक निवासी प्रतिनिधि की नियुक्ति के साथ स्थापित किए गए थे। इंडिया हाउस (भूटान में भारत का दूतावास) का उद्घाटन 14 मई, 1968 को हुआ था और 1971 में रेजिडेंट प्रतिनिधियों का आदान-प्रदान किया गया था।

भारत की 'नेवरहुड फर्स्ट पॉलिसी' और दोनों देशों के लिए फायदेमंद साझेदारी, खासतौर पर पनबिजली में सहयोग ने इस 'विशेष संबंध' को बनाए रखा है। दो पड़ोसियों के बीच आर्थिक और भौगोलिक आकार में अंतर के कारण भारत-भूटान संबंधों को और मजबूती मिली है।

भारत और भूटान के बीच सहयोग का सबसे प्रमुख क्षेत्र पनबिजली है। यह दोनों देशों के आर्थिक संबंधों का केंद्रबिंदु है। भूटान के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका सबसे बड़ा योगदान है और भारत विभिन्न पनबिजली संयंत्र बनाने में भूटान की सक्रिय मदद करता रहा है। भूटान में पानी की प्रचुरता है और उसके पास हर साल 30,000 मेगावाट पनबिजली बनाने की क्षमता है। भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भूटान की मदद करता रहा है। भारत और भूटान के बीच पनबिजली सहयोग का पहला समझौता 1961 में हुआ था, जिसके तहत जलढाका नदी के पानी से बिजली बनाने की बात थी। 1987 में शुरू हुई चुखा पनबिजली परियोजना भारत और भूटान के जल संबंधी रिश्तों के लिए बहुत बड़ा क्षण थी। भूटान ने 1991 में इस संयंत्र का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया। दोनों पक्षों ने 2008 में पनबिजली के क्षेत्र में सहयोग के 2006 के समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसका मकसद भूटान से भारत को निर्यात होने वाली बिजली की मात्रा 5,000 मेगावाट से बढ़ाकर 2020 तक 10,000 मेगावाट करना था।

पनबिजली भारत और भूटान के बीच चिंता का प्रमुख कारण भी है। भूटान की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है इसका बढ़ता पनबिजली कर्ज। रॉयल मॉनिटरी अथॉरिटी ऑफ भूटान की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि देश पर भारत का कुल 118.77 अरब रुपये का कर्ज है और इसमें से 94.11 प्रतिशत पनबिजली परियोजनाओं पर बकाया सार्वजनिक ऋण है। पनबिजली परियोजना से निर्यात का शुल्क भी भूटान के लिए चिंता का विषय है और वह इसमें इजाफा करना चाहता है ताकि उसे अपना कर्ज और भारत पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिल सके तथा उसकी आय बढ़ सके। दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी इस क्षेत्र में कोई सहमति नहीं बन सकी है।

भूटान की भौगोलिक स्थिति के कारण ये दुनिया के बाकि हिस्सों से कटा हुआ था। लेकिन हाल ही मे भूटान ने दुनिया में अपनी जगह बना ली है। हाल के दिनों के दौरान भूटान ने एक खुली-द्वार नीति विकसित की है। दुनिया के कई देशों के साथ राजनीतिक संबंधों को भी इस देश के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। भूटान के 52 देशों और यूरोपीय संघ के साथ राजनयिक संबंध है।

साल 1971 के बाद से ही भूटान संयुक्त राष्ट्र में सदस्य भी है। हालांकि भूटान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के साथ औपचारिक संबंध नहीं रखता है। लेकिन भूटान सबसे निकटता सिर्फ भारत के साथ ही रखता है। भारत के साथ भूटान मजबूत आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य संबंध रखता है। भूटान सार्क का संस्थापक सदस्य है। यह बिम्सटेक, विश्व बैंक और आईएमएफ का सदस्य भी बन चुका है।

भारत व भूटान मजबूत पडोसी देश है। भारत हरसंभव अपने पडोसी देश की मदद करता है। लेकिन अब भूटान जैसा छोटा देश भी दुनिया मे अपनी खुद की पहचान विकसित कर रहा है। भूटान भारत के अधीन रहने वाला देश नहीं है। भूटान धीरे-धीरे भारत पर निर्भरता कम कर रहा है। भारत-भूटान मैत्री संबंधों का चीन द्वारा विरोध किया जाता है।

संधि के अनुच्छेद 2 के मुताबिक भारत भूटान के प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा और बाद में उसके बाहरी संबंधों में सलाह जरूर से दे सकता है। इसका ही चीन द्वार विरोध करके भारत को छोटा पडोसी प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन डोकलाम विवाद के समय में भूटान का प्रमुख सहयोगी एकमात्र भारत ही रहा था जिसने पडोसी देश की रक्षा के लिए चीन का विरोध किया।


Satyapal Singh Kaushik

Satyapal Singh Kaushik

न्यूज लेखन, कंटेंट लेखन, स्क्रिप्ट और आर्टिकल लेखन में लंबा अनुभव है। दैनिक जागरण, अवधनामा, तरुणमित्र जैसे देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वर्तमान में Special Coverage News में बतौर कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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