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भारत-नेपाल संबंध एक दूसरे के लिए क्यों है महत्वपूर्ण

Satyapal Singh Kaushik
29 May 2022 10:55 AM IST
भारत-नेपाल संबंध एक दूसरे के लिए क्यों है महत्वपूर्ण
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सत्यपाल सिंह कौशिक

भारत और नेपाल के मध्य सम्बन्ध आदि काल से हैं। दोनों पड़ोसी राष्ट्र हैं, इसके साथ ही दोनों राष्ट्रों की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी एवं ऐतिहासिक स्थिति में बहुत अधिक समानता है। स्वतंत्र भारत और नेपाल ने अपने विशेष सम्बन्धों को 1950 के भारत-नेपाल शान्ति एवं मैत्री सन्धि के द्वारा नयी ऊर्जा दी है।

भारत-नेपाल के मध्य शान्ति एवं मैत्री की सन्धि (1950) से, भारत और नेपाल के बीच विशिष्ट सम्बन्धों की शुरुआत को आधार प्राप्त हुआ। इस सन्धि के प्रावधानों के अन्तर्गत नेपाली नागरिकों ने भारतीय नागरिकों के समान भारत में सुविधाओं और अवसरों का अभूतपूर्व लाभ उठाया है। वर्तमान में लगभग 60 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते और काम करते हैं।

भारत और नेपाल के बीच नियमित रूप से उच्च स्तरीय बातचीत का दौर चलता रहता है तथा यात्राएँ भी नियमित रूप से होती रहती हैं। नेपाली प्रधानमन्त्री श्रीमान सुशील कोइराला 26 मई, 2014 को प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने भारत आये थे। अगस्त 2014 में प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता के लिए नेपाल की यात्रा की तथा नवम्बर में दक्षेस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल की यात्रा की, जिसमें दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये । भारत और नेपाल के पास, भारत-नेपाल संयुक्त आयोग सहित कई द्विपक्षीय संस्थागत संवाद तन्त्र हैं। जिसकी अध्यक्षता भारत के विदेश मन्त्री और नेपाल के विदेश मन्त्री करते हैं। जब 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भूकम्प आया, तब भारत सरकार ने नेपाल में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया दल और राहत सामग्री सहित विशेष विमान को नेपाल के बचाव के लिये भेजा।

*नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत से संबंधों में आई है गिरावट*

चीन नेपाल को अपने बढ़ते दक्षिण एशियाई फुटप्रिंट में एक महत्त्वपूर्ण तत्व की तरह देखता है और नेपाल उसके 'बेल्ट एंड रोड पहल' (BRI) का एक प्रमुख भागीदार भी है।

वर्ष 2016 में नेपाल ने चीन के साथ एक पारगमन परिवहन समझौते पर वार्ता की थी और वर्ष 2017 में चीन ने नेपाल को 32 मिलियन डॉलर का सैन्य अनुदान प्रदान किया था।

वर्ष 2019 में संपन्न हुए एक प्रोटोकॉल के तहत चीन नेपाल को चार समुद्री बंदरगाहों और तीन भूमि बंदरगाहों तक पहुँच प्रदान कर रहा है। चीन नेपाल के पोखरा और लुंबिनी में हवाईअड्डा विस्तार परियोजनाओं से भी संलग्न है।

120 मिलियन डॉलर की वार्षिक विकास सहायता के साथ चीन ने नेपाल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सबसे बड़े स्रोत के रूप में भारत को पीछे छोड़ दिया है।

कुछ साल पहले नेपाल के प्रधानमंत्री ने पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना (अमेरिका के 'मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन' के साथ) की पुष्टि पर ज़ोर दिया जिस पर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुआ और वृहत सोशल मीडिया अभियान चलाए गए जिसे चीन ने हवा दी।

लेकिन चीन के विदेश मंत्री ने अपने भारतीय समकक्ष को आश्वासन दिया है कि चीन भारत के साथ नेपाल के संबंध में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगा, वास्तव में नेपाल में चीन की संलग्नता अत्यंत गहरी रही है।

शांति और मित्रता संधि में निहित समस्याएँ: वर्ष 1950 में भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि पर हस्ताक्षर नेपाल द्वारा इस उद्देश्य से किये गए थे कि ब्रिटिश भारत के साथ उसके विशेष संबंध स्वतंत्र भारत के साथ भी जारी रहें और उन्हें भारत के साथ खुली सीमा तथा भारत में कार्य कर सकने के अधिकार का लाभ मिलता रहे।

लेकिन वर्तमान में इसे एक असमान संबंध और एक भारतीय अधिरोपण के रूप में देखा जाता है।

इसे संशोधित और अद्यतन करने का विचार 1990 के दशक के मध्य से ही संयुक्त वक्तव्यों में प्रकट होता रहा है, लेकिन ऐसा छिटपुट और उत्साहहीन तरीके से ही हुआ।

विमुद्रीकरण की अड़चन: नवंबर 2016 में भारत ने विमुद्रीकरण की घोषणा कर दी और उच्च मूल्य के करेंसी नोट (₹1,000 और ₹500) के रूप में 15.44 ट्रिलियन रुपए वापस ले लिये। इनमें से 15.3 ट्रिलियन रुपए की नए नोटों के रूप में अर्थव्यवस्था में वापसी भी हो गई है।

नेपाल राष्ट्र बैंक (नेपाल का केंद्रीय बैंक) के पास 7 करोड़ भारतीय रुपए हैं और अनुमान है कि सार्वजनिक धारिता 500 करोड़ रुपए की है।

नेपाल राष्ट्र बैंक के पास विमुद्रीकृत बिलों को स्वीकार करने से भारत के इनकार और एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप (EPG) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की अज्ञात परिणति ने नेपाल में भारत की छवि को बेहतर बनाने में कोई मदद नहीं की है।

लेकिन इस प्रक्रिया में कई नेपाली नागरिक जो कानूनी रूप से 25,000 रुपए भारतीय मुद्रा रखने के हकदार थे (यह देखते हुए कि नेपाली रुपया भारतीय रुपए के साथ सहयुक्त है, वंचित छोड़ दिये गए।

क्षेत्र-संबंधी विवाद: भारत-नेपाल संबंधों में एक और बाधा कालापानी सीमा विवाद से आई है। इन सीमाओं को वर्ष 1816 में अंग्रेज़ों द्वारा निर्धारित किया गया था और भारत को वे क्षेत्र विरासत में प्राप्त हुए जिन पर 1947 तक अंग्रेज़ क्षेत्रीय नियंत्रण रखते थे।

जबकि भारत-नेपाल सीमा का 98% सीमांकित किया गया था, दो क्षेत्रों- सुस्ता और कालापानी में यह कार्य अपूर्ण ही बना रहा।

वर्ष 2019 में नेपाल ने एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी करते हुए उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा एवं लिपुलेख पर और बिहार के पश्चिमी चंपारण ज़िले के सुस्ता क्षेत्र पर अपना दावा जताया।

आज आवश्यकता इस बात की है कि क्षेत्रीय राष्ट्रवाद के आक्रामक प्रदर्शन से बचा जाए और शांतिपूर्ण बातचीत के लिये आधार तैयार किया जाए जहाँ दोनों पक्ष संवेदनशीलता का प्रदर्शन करते हुए संभव समाधानों की तलाश करें। 'नेवरवुड फर्स्ट' की नीति के गंभीर अनुपालन के लिये भारत को एक संवेदनशील और उदार भागीदार बनने की ज़रूरत हैl

भारत को लोगों के परस्पर-संपर्क, नौकरशाही संलग्नता के साथ-साथ राजनीतिक अंतःक्रिया के मामले में नेपाल के साथ अधिक सक्रिय रूप से संबद्ध होना चाहिये।

भारत को नेपाल के आंतरिक मामलों से दूर रहने की नीति बनाए रखनी चाहिये, जबकि मित्रता की भावना की पुष्टि करते हुए अधिक समावेशी रुख प्रदर्शित करना चाहिए।

बिजली व्यापार समझौता ऐसा होना चाहिये कि भारत नेपाल के अंदर भरोसे का निर्माण कर सके। भारत में अधिकाधिक नवीकरणीय (सौर) ऊर्जा परियोजनाओं के कार्यान्वयन के बावजूद जलविद्युत ही एकमात्र स्रोत है जो भारत में चरम मांग की पूर्ति कर सकता है।

भारत के लिये नेपाल से बिजली खरीदने का अर्थ होगा इस चरम मांग का प्रबंधन कर सकना और अरबों डॉलर के निवेश की बचत करना।

भारत और नेपाल के बीच हस्ताक्षरित 'द्विपक्षीय निवेश संवर्द्धन और संरक्षण समझौते' ( BIPPA) पर नेपाल की ओर से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

Satyapal Singh Kaushik

Satyapal Singh Kaushik

न्यूज लेखन, कंटेंट लेखन, स्क्रिप्ट और आर्टिकल लेखन में लंबा अनुभव है। दैनिक जागरण, अवधनामा, तरुणमित्र जैसे देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वर्तमान में Special Coverage News में बतौर कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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