रांची

देवो के देव महादेव के अनन्य भक्त बाबा बैजू यादव के बैजनाथ धाम का इतिहास

Shiv Kumar Mishra
4 May 2021 7:11 AM GMT
देवो के देव महादेव के अनन्य भक्त बाबा बैजू यादव के बैजनाथ धाम का इतिहास
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पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है.जैसे जैसे रावण देरी कर रहा था वैसे वैसे शिवलिंग का भार बढ़ते जा रहा था.

देवभूमि देवघर,झारखंड भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ (बैजू अहीर) की कहानी बड़ी निराली है, पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था, वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था. 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा- तब रावण ने 'कामना लिंग' को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया. रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के भी लंका में रखा हुआ था. इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें, महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी.

उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा, रावण ने शर्त मान ली, इधर भगवान शिव की कैलाश छोड़ने की बात सुनते ही सभी देवता चिंतित हो गए, इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची. भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी, ऐसे में रावण एक बैजू नाम के अहीर को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया. कहते हैं उस बैजू ग्वाले(अहीर) के रूप में भगवान विष्णु थे. इस वजह से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम से विख्यात है. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है.जैसे जैसे रावण देरी कर रहा था वैसे वैसे शिवलिंग का भार बढ़ते जा रहा था.

इधर तंग आ कर बैजू अहीर ने शिवलिंग धरती पर रखकर स्थापित कर दिया. जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया. तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित हो शिवलिंग पर चार लात मारकर फिर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। वाहा छुपकर बैजू यह सब देख रहा था, उसे लगा बाबा जी को भक्ति करना का यही तरीका है तब से बैजू का दिनचर्या बन गया वह रोज शिवलिंग पर चार लाठी मारता फिर अंगूठे से शिवलिंग को दबा कर महादेव की भक्ति में लीन हो जाता था। एक दिन बैजू को बहुत जोर से भूख लगी,जब वह घर जा कर जैसे ही अन्न मुंह में डाला बैजू को याद आया आज तो भोले बाबा की भक्ति नहीं की बैजू अपना भोजन छोड़ लाठी ले कर दौरा दौरा जाता इस बार जैसे ही शिवलिंग पर प्रहार कर रहा होता साक्षात महादेव प्रकट हो जाते,महादेव बोलते बैजू मै तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हूं।

बैजू महादेव को देख कर उनके चरणों में गिर जाता और बोलता महादेव मैंने रावण को देखा था ऐसा करते तो मुझे लगता ऐसी ही आपकी भक्ति की जाती। महादेव बैजू को गले लगाते और बोलते बैजू तुम ने दिल से मेरी भक्ति की है आज से दुनिया तुम्हे मेरा सबसे बड़ा भक्त के नाम से जानेगी, मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम लिया जाएगा और यह स्थान बाबा बैजनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध होगी। जो भी भक्त सच्चे दिल से यहां आ कर पूजा करेगा उसकी हर मनोकामनाएं पूरी होगी।

उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की. शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए. तभी से महादेव 'कामना लिंग' के रूप में देवघर में विराजते हैं। इस मंदिर में महाशिवरात्रि और सावन में सर्वप्रथम जलाभिषेक करने की परम्परा यदुवंशियों की ही रही है,प्रथम जलाभिषेक यदुवंशी ही करते है उसके बाद कोई और भक्त कर सकता है। बोलो देवो के देव महादेव की जय बाबा बैजनाथ अहीर की

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