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ये सिर्फ झारखंड की हार नहीं है, बीजेपी का देश के सबसे बड़े धनी प्रदेश से सफाया है
साल 2019 का अंतिम दो महीना बीजेपी और पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए अच्छा नहीं रहा। इन दो महीनों में ही बीजेपी ने देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले महाराष्ट्र और देश के सबसे धनी प्रदेश झारखंड की सत्ता से बेदखल हुई है।
हालाकि 2019 में ही बीजेपी दुबारा केंद्र की सत्ता में वापस लौटी और मोदी दूसरी वार पीएम बने। दुबारा शपथ ग्रहण के समय में ही जदयू और शिव सेना जैसे सहयोगी को मंत्रिमंडल में उसकी उचित भागीदारी नहीं देकर यह जता दिया था कि दोनों की जोड़ी अहंकारी ज्यादा हो गई है। रही सही कसर उधव ठाकरे के साथ हुए टकराव ने पूरी कर दी। जब आप मायावती और मेहबूबा के साथ ढाई ढाई साल का समझौता कर सकते है तो फिर ऊधव से बात करने में क्या हर्ज।
यानी अहन की टकराहट की यह बानगी थी और झारखंड चरम। झारखंड में सहयोगियों की कौन कहे अपनों को भी जिस तरह जलील किया गया ऐसा उदाहरण बीजेपी जैसी संस्कारी पार्टी में कम देखने को मिलता है। परिणाम सामने है। मोदी को द्वारा सत्ता में लाने में महाराष्ट्र और झारखंड की भी अहम भूमिका थी। वजह साफ है। आज के जमाने में कोई भी चुनाव में अर्थ की अहम भूमिका होती है जिसे पूरा करने में दोनों प्रदेश मजबूत भूमिका अदा करते थे। अब इससे बेदखल होने के बाद बीजेपी की कठिनाई थोड़ी बढ़ेगी।
इतना ही नहीं इन दोनों प्रदेशों में भले ही सहयोगी दलो के रूप में कांग्रेस सत्ता में हो लेकिन कांग्रेस की अहमियत बढ़ी है। इसका असर भी आने वाले दिनों में दिखेगा। यानी बीजेपी केवल भारत के मानचित्र में 71 प्रतिसत से घटकर 34 प्रतिशत पर ही सत्ता में नहीं आई है आर्थिक रूप से भी कमजोर हुई है। क्योंकि पिछले 5 वर्षों में देश में सबसे ज्यादा किसी पार्टी को अकेले चंदा मिला है तो वह बीजेपी है।
यानी झारखंड का चुनाव परिणाम केवल एक छोटे राज्य का ही मामला नहीं है। इसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा। फिलहाल देखिए आगे आगे होता है क्या। हां एक बात और गुजरात की तरह झारखंड भी शायद ऐसा राज्य है जहां अल्पसंख्यकों की भूमिका बहुत ज्यादा नहीं है। और वहा वनांचल में बीजेपी का औधे मुंह गिरना मोदी और अमित शाह के लिए किसी सुनामी से कम नहीं।