नौकरी

ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली पारंपरिक शिक्षण प्रणाली का विकल्प नहीं हो सकती

सुजीत गुप्ता
26 Jan 2022 9:22 AM GMT
ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली पारंपरिक शिक्षण प्रणाली का विकल्प नहीं हो सकती
x
ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली, |ऑनलाइन शिक्षा, पारंपरिक शिक्षण प्रणाली का विकल्प नहीं हो सकती

ऑनलाइन शिक्षण प्रणाली पारंपरिक शिक्षण प्रणाली (ऑफलाइन शिक्षा) का विकल्प नहीं हो सकती करके सीखो के सिद्धांत का अनुसरण कर प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत तक अनेकों विद्वानों, विशेषज्ञों, मर्मज्ञों की जननी, हमारी सनातनी पारंपरिक शिक्षण पद्धति अभी भी सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ और सुव्यवस्थित है..। यह पद्धति न केवल विषयी ज्ञान प्रदान करती है, अपितु व्यवहारिक ज्ञान, निपुणता की कला, निर्भीकता का गुण, आत्मसंयम, पारस्परिक सहयोग,सहृदयता, सहअस्तित्व, सोचने समझने की तार्किक शक्ति , धैर्य और श्रेष्ठजनों के प्रति आदर का संस्कार भी पैदा करती है..!!

कक्षाकक्ष की शिक्षण प्रविधि में शिक्षक और शिक्षार्थी के मध्य एक मजबूत और प्रभावी अंतःक्रिया स्थापित होती है, संवाद की निरंतरता से ज्ञान अपने उत्कृष्ट स्तर को प्राप्त करता है.। यह शैक्षिक संबंध समाज की उन्नति के लिए हमेशा कारगर रहा है।।

ऑनलाइन शिक्षण प्रविधि केवल सैद्धांतिक ज्ञान देने को ही अपना अभीष्ट मानती है और शायद यह केवल ऐसा करने में ही सक्षम है...लेकिन इतिहास गवाह है कि केवल सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर सर्वकल्याण, राष्ट्रनिर्माण और भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने की संकल्पना साकार नहीं हो सकती। सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहारिकता की कसौटी पर कसना आधुनिक समय की मांग है..!!

मुझे अच्छी तरह से याद है कि प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश के बाद मेरे गुरु ने मेरी उंगली पकड़ पकड़ कर मुझे क ख ग.। लिखना ही नहीं, सही तरीके से सुस्पष्ट और सुन्दर अक्षर बनाना, मिलाना सिखाया था, अंग्रेजी के शब्द abcd..। हलांकि कक्षा छः में लिखना सिखाया गया लेकिन चार लाइन बनी कांपियों में सही तरीके से और सुन्दर अक्षर में लिखना ..प्रत्येक छात्र में ऐसी कला विकसित करना श्रद्धेय गुरुजनों का अभीष्ट हुआ करता था !! इसका परिणाम यह होता था कि लेखन कला में हम निपुणता को प्राप्त कर सकते थे, अब ऐसा कत्तई नहीं होता है और ना ही छात्रों में सीखने की ललक देखी जा सकती है, फिर भी परंपरागत शिक्षण प्रणाली में जहां सीखने,सिखाने की स्वस्थ परम्परा विद्यमान है, वहां ज्ञान प्राप्त करने का सर्वोच्च स्तर स्थापित है...

भारत कि सनातनी परंपरा में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जिसमे गुरुकुल परंपरा सबसे पुरानी व्यवस्था है गुरुकुलम् वैदिक युग से ही अस्तित्व में है इसी शिक्षा पद्धति के कारण भारत को विश्व गुरु कहा जाता था लेकिन अब इस परंपरा का अस्तित्व धीरे धीरे समाप्त किया जा रहा है जो आगे चलकर भारत के विश्व गुरु बनने कि दिशा में कठिनाई उत्तपन्न करता हुआ दिख रहा है ।

एक तरफ जहां गुरुकुल में बिना किसी भेदभाव के सभी को धर्मशास्त्र कि पढ़ाई से लेकर अस्त्र – शस्त्र कि शिक्षा दी जाती थी उपनिषदों में लिखा गया है मातृदेवो भवः!पितृदेवो भवः! आचार्य देवो भवः!अतिथि देवो भवः! कि भावना सर्वव्याप्त थी वहीं आज हम इस से दूर होते जा रहे है, ऐसे में हम विश्वगुरु कि संकल्पना को साकार कर पाएंगे इसमे संशय है । मेरे इस विचार से शायद सभी लोग सहमत नया हों..

24 मार्च को कोविड-19 रोकथाम के लिए जब पूरे भारत में लॉकडाउन लागू किया गया। तो, उसके तुरंत बाद राज्यों की सरकारों ने स्कूली शिक्षा को ऑनलाइन करने का प्रावधान शुरू कर दिया। इसमें एनजीओ और निजी क्षेत्र की तकनीकी शिक्षा कंपनियों को भी भागीदार बनाया गया । इन सब ने मिककर शिक्षा प्रदान करने के लिए संवाद के सभी उपलब्ध माध्यमों का इस्तेमाल शुरू किया, जिसमें दूरदर्शन , डीटीएच चैनल, रेडियो प्रसारण, व्हाट्सऐप और एसएमएस ग्रुप सहित अन्य सोशल मीडिया व प्रिंट मीडिया का भी सहारा लिया गया । कुछ एक संगठनों ने तो नए ऐकडेमिक वर्ष के लिए किताबें भीं वितरित कर दीं। स्कूली शिक्षा की तुलना में उच्च शिक्षा का क्षेत्र इस नई चुनौती से निपटने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था । अचानक उत्तपन्न हुई इस नई व्यवस्था के सामने एक यक्षप्रश्न यह था और आज भी है कि अगर एक भी बच्चा ऑनलाइन शिक्षा से वंचित रह जाता है, तो पढ़ाई का ये माध्यम अन्यायपूर्ण होगा। केंद्र और राज्य सरकारों को ये प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए कि सभी शिक्षण संस्थानों को ब्रॉडबैंड सेवा और ऑनलाइन शिक्षा के लिए उचित यंत्र मुहैया कराएं ।

अनलाइन शिक्षण माध्यमों को अपनाने को लेकर कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि आमने सामने की पढ़ाई से अचानक ऑनलाइन माध्यम में स्थानांतरित होने से शिक्षा प्रदान करने का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। इस अनलाइन शिक्षा को आपातकालीन रीमोट टीचिंग कहा जा रहा है। ऑनलाइन एजुकेशन और इमरजेंसी ऑनलाइन रिमोट एजुकेशन में बहुत फ़र्क़ है। ऑनलाइन शिक्षा अच्छी तरह से अनुसंधान के बाद अभ्यास में लाई जा रही है। बहुत से देशों में शिक्षा का ये माध्यम कई दशकों से प्रयोग में लाया जा रहा है,ताकि पाठ्यक्रम को ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा सके। इसके मुक़ाबले भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में इस ऑनलाइन शिक्षा की उपलब्धता काफ़ी कम है। अब अगर यूनिवर्सिटी और कॉलेज आने वाले समय में प्रभावी ढंग से ऑनलाइन क्लास शुरू करना चाहते हैं, तो उन्हें इस रिमोट ऑनलाइन एजुकेशन और नियमित ऑनलाइन पढ़ाई के अंतर को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी करनी होगी। अगर देश में कोरोना पॉजिटिव होने की दर बढ़ती रही,तो उच्च शिक्षण संस्थानों को भी स्कूलों की ही तरहनियमित ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करनी होगी।

लॉकडाउन लगने के बस दो दिन बाद ही, यूजीसी ने सरकार के ICT यानी सूचना और प्रौद्योगिकी तकनीक पर आधारित संसाधनों के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में पहल की एक लिस्ट जारी की थी। यूजीसी का कहना था कि इसके माध्यम से छात्र, लॉकडाउन के दौरान मुफ़्त में पढ़ाई जारी रख सकते हैं। इसमें स्वयं (SWAYAM) और नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी जैसे विकल्पों का ज़िक्र किया गया था। हाल ही में छात्रों को सेकेंड डिग्री की शुरुआत की अनुमति भी दे दी गई है। जिसे वो अपने नियमित डिग्री कोर्स के साथ साथ ऑनलाइन या ओपन और दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, ये शानदार प्रयत्न हैं, जिनसे छात्रों को कोविड-19 की महामारी के बाद भी बहुत लाभ होगा। लेकिन ऑनलाइन उच्च शिक्षा की बात करें तो अभी भी ये बहुत देर से और कुछ ही छात्रों के लाभ के लिए उठाए गए क़दम सिद्ध हुए हैं.

ऑनलाइन शिक्षण की प्रमुख चुनौती यह है कि पढ़ाने वाले अधिकतर फैकल्टी के सदस्यों को इसके लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया है, इसीलिए वो ऑनलाइन कक्षाएं चलाने के लिए तैयार नहीं हैं। पूरी तरह से ऑनलाइन कोर्स की योजना बनाने और इसकी तैयारी के लिए कई महीने का समय चाहिए, इन्हें कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ हफ़्तों में ही तैयार नहीं किया जा सकता था। ऑनलाइन शिक्षा को अपनाने की पहल करने वाले संस्थानों और फैकल्टी के सदस्यों को इसे अपनाने में काफ़ी सहायता की आवश्यकता होगी ।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) द्वारा इस विषय में आयोजित वेबिनार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में नई शिक्षा नीति की ओएसडी (OSD) डॉक्टर शकीला शम्सू ने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया था कि आमतौर पर फैकल्टी के सदस्य, अपने कोर्स के दूसरे या तीसरे सत्र में जाकर ऑनलाइन शिक्षा देने को लेकर सहज हो पाते हैं। ऐसे में उन्हें इसकी शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें तकनीक के महारथी टीचिंग सहायकों के माध्यम से मदद दी जानी चाहिए। अभी तक भारत ने इस विकल्प को नहीं अपनाया है। जबकि विदेशों के विश्वविद्यालयों में टीचिंग असिस्टेंट (TAs) का उपयोग व्यापक स्तर पर हो रहा है। ये शिक्षण सहयोगी, छात्रों के लिए चैट रूम और सहकर्मियों से सीखने के सत्र भी आयोजित करते हैं। जो शिक्षा प्राप्त करने में बहुत लाभप्रद सिद्ध हो रहे हैं।

आईआईटी मुंबई ने ऑनलाइन शिक्षा के स्वयं से बढ़ावा देने वाले कई कोर्स शुरू किए हैं,जिनसे कॉलेज के शिक्षक लाभ उठा सकते हैं। ऐसे और अधिक संसाधन तैयार करने आवश्यक हैं,जिनका ऑनलाइन शिक्षा के विस्तार के लिए अधिक से अधिक प्रयोग किया जाना चाहिए।ऑनलाइन शिक्षा के तमाम प्लेटफॉर्मों की सफलता इस बात की ओर इशारा करती है कि ऑनलाइन कोर्स बहुत कम ख़र्चीले होते हैं। और इन प्लेटफॉर्मों पर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के बहुत से छात्र पढ़ाई करते हैं। भारत के लिए अच्छा ये होगा कि वो इस महामारी से मिले अवसर का लाभ उठाकर ऑनलाइन शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाए, ताकि देश के शिक्षण संस्थान इस आपदा द्वारा दिए गए लंबी अवधि के अवसर को पहचान का उसका लाभ उठाएं ।

ऑनलाइन शिक्षा की बुनियाद इस बात पर आधारित है कि सभी छात्रों के पास इंटरनेट सेवा हो,साथ ही साथ सभी के पास ऑनलाइन पढ़ाई के लिए उपकरण यानी लैपटॉप या कंप्यूटर मौजूद हों, जिसकी मदद से वो ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं। दुर्भाग्य से स्कूल और उच्च शिक्षा के स्तर पर अभी ऐसा सम्भव नहीं हो पाया है। स्कूलों में जहां स्थानीय समुदायों के ही छात्र आमतौर पर पढ़ाई करते हैं। वहीं, उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र दूर दराज़ से भी आते हैं। ये अलग अलग राज्यों के छात्र भी हो सकते हैं और ग्रामीण इलाक़ों के रहने वाले भी हो सकते हैं। ऐसे में,ऑनलाइन शिक्षा को लेकर अगर इसी आकलन पर कि सभी छात्रों के पास इसके संसाधन होंगे, तो इसका बुरा प्रभाव लगभग सभी उच्च शिक्षण संस्थानों पर पड़ेगा। क्योंकि ज़्यादातर छात्रग्रामीण परिवेशों से आते हैं जहां नेटवर्क / इंटरनेट कि उपलबद्धता का सर्वथा आभाव है।

हमारे देश में उच्च शैक्षिक संस्थाओं के मूल्यांकन के लिए बनी एक संस्था मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) है, जो संस्थाओं के मूल्यांकन में एक बिंदू यह भी देखती है कि अध्यापक द्वारा शिक्षा प्रदान करने में इनफार्मेशन तकनीक के साधनों का कितना प्रयोग किया जा रहा है। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि संस्थागत स्तर पर स्मार्ट क्लास, ई–बोर्ड इत्यादि के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। अध्यापकों को ई-कंटेंट तैयार करने का भी कोई अनुभव या प्रशिक्षण नहीं है।

ई-कंटेंट का तात्पर्य लोकप्रिय पाठ्यपुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों की छाया प्रति करवा कर विद्यार्थियों में वितरित करना नहीं है..। ऐसे में कॉपीराइट के बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि मौलिक दृश्य और श्रव्य ई-कंटेंट विकसित करने में अध्यापकों को उचित प्रशिक्षण और प्रोत्साहन दिया जाए..। उन्हें तकनीकी रूप से नई शिक्षण विधियां और डिजिटल माध्यमों का उपयोग करना सिखाया जाए, जोकक्षाकक्ष शिक्षण में भी बहुत उपयोगी होगा। अध्यापक अपने विषय में विश्व के अन्य विश्व विद्यालयों में चल रहे पाठ्यक्रमों से भी विद्यार्थियों को अवगत करा पायेंगे और हमारे शिक्षक/विद्यार्थी राष्ट्रीय और विश्व पटल पर चल रहे शिक्षण और नवीनतम शोध के संपर्क में आ सकेंगे..।

पारंपरिक शिक्षण पद्धति और ऑन लाइन शिक्षण पद्धति पर यदि सूक्ष्म दृष्टि डाली जाय तो यह बात स्पष्ट रूप से परिणाम के रूप में बाहर आती है कि बच्चों का सर्वांगीण विकास तभी सम्भव हो पायेगा, जब पारंपरिक शिक्षण पद्धति को आधुनिक शैक्षिक संसाधनों से परिपूर्ण करने का सद्प्रयास किया जायेगा । व्यवहारिक और वास्तविक दृष्टि से ऑन लाइन शिक्षण का दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ने लगा है, जो उनकी अनियमित दिनचर्या के रूप में दिखाई देने लगा है.। कई विकारों का जन्म हो रहा है, जैसे – चिड़चिड़ापन, पारिवारिक सदस्यों से दूरी, स्वार्थपरता, स्मरण शक्ति का क्षरण, अनियंत्रित अनुपयोगी फास्ट-फूड को प्राथमिकता, सोचने -समझने की जगह रटने की लत,एकान्त की चाह, लगातार मोबाईल, लैपटॉप, कंप्यूटर से चिपके रहने की आदत का विकास के कारण समयपूर्व वयस्कता का अहसास, किताबों को पढ़ने से दूरी, शॉर्टकट तरीके को व्यवहार में उतारने की कोशिश, इत्यादि भारतीय संस्कृति और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं ।

निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि कक्षाकक्ष शिक्षण प्रणाली को और अधिक समृद्ध बनाने की आवश्यकता है तभी हम भारत को विश्वगुरु बनाने की संकल्पना को साकार कर सकते हैं ।

Next Story