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जानिए- संभोग के लिए समय-स्थान देखना क्यों जरूरी है?

News Desk Editor
22 May 2022 11:56 AM GMT
जानिए- संभोग के लिए समय-स्थान देखना क्यों जरूरी है?
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संभोग का भी समय, स्थान और तरीका होता है। जब इसका पालन नहीं किया जाता है तो नतीजा सिर्फ और सिर्फ बुरा होता है।

संभोग जरूरी है। सृष्टि इससे ही आगे बढ़ती है। मनुष्य जीवन का भी अहम हिस्सा होता है संभोग। लेकिन, संभोग का भी समय, स्थान और तरीका होता है। जब इसका पालन नहीं किया जाता है तो नतीजा सिर्फ और सिर्फ बुरा होता है। इसे अच्छे से समझने के लिए आपको पूरी कथा सुनाते हैं।

शुक देव से राजा परीक्षित जानना चाहते थे कि स्वर्ग जाने और नरक जाने की स्थिति क्या है। पुण्य क्या है, पाप क्या है। कब कोई व्यक्ति स्वर्ग जाता है और स्वर्ग जाने से रह जाता है। शुकदेव जवाब देते हैं कि अंतिम समय में अगर कोई भगवान का नाम ले, उन्हें याद करे, तो वह निश्चय ही नरक नहीं जाता। वह स्वर्ग ही जाता है।

जब राजा परीक्षित शुक देव से पूछते हैं कि यह बात कैसे मान ली जाए? क्या कभी ऐसा हुआ है? तब शुकदेव एक कहानी सुनाते हैं। कन्नौज नगरी में एक ब्राह्मण रहते थे। पुण्यात्मा थे। उनके घर पुत्र हुआ। नाम रखा गया अजामिन। वह भी भला था। मगर, एक घटना ने उसकी जिन्दगी बदल दी।

नवदंपती को संभोगरत देखकर अजामिन गलत ख्यालों में डूब गया

अजामिन एक दिन खेत की ओर गया। वहां उसने नवदंपती को संभोग करते देखा। नवदंपती ने संभोग के लिए गलत जगह चुनी थी जहां एक बच्चा भी पहुंच सकता था। समय भी गलत था जब एक बच्चे ने उन्हें संभोग करते हुए देख लिया। बच्चे के मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। बुरे से बुरे ख्याल मन में घर कर जाने लगे। संभोग के दृश्य ने अजामिन के मन में कौतूहल पैदा कर दिया था।

एक के बाद एक बुराइयां अजामिन के मन में घर करने लगीं। वह शराब भी पीने लगा। इसके लिए पैसे न थे। ऐसे कामों के लिए वह अपने पिता से पैसे नहीं मांग सकता था। लिहाजा चोरी करने लगा। चोरी के बाद डकैती, हत्या जैसे अपराध भी वह करने लगा। दुख से पिता की मृत्यु हो गयी। उसके बाद वह और निरंकुश हो गया। एक साथ कई स्त्रियों के नजदीक वह रहता। भोग-विलास में उसका जीवन गुजरता। आलीशान मकान में उसके दिन कटने लगे।

उज्जैन में ही एक ऋषि सौ साल की तपस्या पूरी कर उठे। उन्होंने लोगों से पूछा कि आसपास कोई ब्राह्मण का घर हो, तो बताएं। उन्हें एक रात बितानी है। लोगों ने कहा कि ब्राह्मण तो हैं लेकिन वह ब्राह्मण कहलाने लायक नहीं है। उसके सारे लक्षण तामसी हैं और स्वभाव राक्षस जैसा है। ऋषि बोले- हमें उसके स्वभाव से क्या लेना-देना। हम तो बस एक रात उसके यहां बिताना चाहते हैं। सबने अजामिन का पता ऋषि को दे दिया।

ऋषि अजामिन के घर पहुंचे। उन्होंने शरण मांगी। अजामिन ने एक शानदार कमरा पूरी व्यवस्था के साथ उनके लिए इंतज़ाम कर दिया। स्वागत से ऋषि बहुत खुश हुए। अगले दिन सुबह जब वे जाने लगे तो अजामिन से कहा कि वे उनके स्वागत-सत्कार से बहुत खुश हैं। इसलिए कोई वर चाहें तो मांग लें।

ऋषि ने अजामिन को 10वें पुत्र का नाम नारायण रखने को कहा

अजामिन को किसी चीज की कमी नहीं थी। उसने कहा कि उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए। आप कृपा कर जा सकते हैं। जाने से पहले ऋषि बोले कि तुम्हारी पत्नी के गर्भ में दसवां शिशु है। जन्म होने पर उसका नाम नारायण रखना। अजामिन ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह अपनी संतान का नाम नारायण रखेगा।

नारायण बचपन से ही अच्छे स्वभाव का था। सबकी आंखों का तारा बन गया। अजामिन की जुबान पर हमेशा अपने छोटे बेटे नारायण का ही नाम रहता। सुबह-शाम उठते-जागते नारायण-नारायण जपता रहता। जीवन में पाप करने के कारण जब मौत की घड़ी नजदीक आयी तो उन्हें ले जाने के लिए यमराज के दूत पहुंचे। उनके चंगुल से बचने की कोशिश करते हुए अजामिन के मुंह से चीख निकल पड़ी- नारायण, नारायण। बचाओ, बचाओ।

नारायण-नारायण जपते रहने के कारण अजामिन नरक जाने से रह गया

नारायण ने तुरंत अपने अनुचरों को इस संदेश के साथ भेजा कि कोई सहायता के लिए उन्हें पुकार रहा है तो तुरंत उसकी मदद की जाए। अनुचरों के कहने पर यमराज के दूतों ने अजामिन को छोड़ दिया। तभी यमराज ने नारायण से कहा कि हम पुण्य करने वालों को बिल्कुल नहीं छेड़ते, लेकिन जिन्होंने पाप किया है उनका बचाव करने आप क्यों चले आते हैं? नारायण बोले- इस धरती पर चाहे जो कोई भी दुख में, सुख में उनका नाम लेगा और खासकर मृत्यु की घड़ी में उन्हें याद करेगा तो उसे स्वर्ग में ही जगह मिलेगी। इस तरह अजामिन को स्वर्ग में जगह मिलती है क्योंकि छोटे संतान का नाम नारायण रखने के बाद उसने शेष जीवन सिर्फ नारायण का ही नाम लिया था।

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