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प्रेम का रिश्ता सभी रिश्तों में सबसे ज्यादा गहरा होता है क्योंकि इसमें दो लोग तीनों स्तरों पर जुड़ते हैं, जरुर पढ़ें

Shiv Kumar Mishra
11 Jun 2021 4:47 AM GMT
प्रेम का रिश्ता सभी रिश्तों में सबसे ज्यादा गहरा होता है क्योंकि इसमें दो लोग तीनों स्तरों पर जुड़ते हैं, जरुर पढ़ें
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कोई प्यार आखिरी नहीं होता। चाहे जितनी बार भी दिल टूटा हो, आदमी को फिर से प्यार हो सकता है। एक स्त्री/पुरुष ने जिस दिल को तोड़ा हो उसे दूसरी स्त्री/पुरुष सहजता से जोड़ सकती है। 50

रंगनाथ सिंह के फेसबुक पेज से साभार

हमारा समाज पहले स्थान को लेकर पागल है। हर किसी को हर चीज में पहला होना है। नतीजा यह होता है कि 100 में 99 लोगों के अन्दर पहला न होने की ग्रन्थि पैठी होती है। कोई एक चीज में पहला है तो किसी अन्य चीज में 99 के चक्कर में पड़ जाता है। इस तरह हम सभी किसी न किसी चीज को लेकर 99 की कुंठा में जी रहे हैं।

पहला होने में दरअसल सबसे ऊपर होने का भाव है। ऊपर होने में अतिशय सुख पाने की भावना ऊँच-नीच वाले समाज की वर्गीय सोच है। ऐसी सोच वाला आदमी हर परिघटना को खड़ी सीढ़ी की तरह देखने का आदी हो जाता है। वही सीढ़ी खड़ी की जगह धरती पर पड़ी हो तो उसके लिए यह बताना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा डण्डा ऊपर से पहला है।

यह सीढ़ीदार सोच जब निजी रिश्तों में घुस जाती है तो आदमी का और बुरा हाल होता है। हमारे ज्यादातर रिश्ते जन्मजात होते हैं। प्रेम का रिश्ता हम खुद बनाते हैं। प्रेम का रिश्ता सभी रिश्तों में सबसे ज्यादा गहरा होता है क्योंकि इसमें दो लोग मानसिक, वैचारिक और कायिक तीनों स्तरों पर जुड़ते हैं। सरल शब्दों में कहें तो जो भावना, सोच और देह तीनों स्तर पर आपस में जुड़े हों उन्हें प्रेमी कहते हैं।

जरूरी नहीं कि हम हर बार हर व्यक्ति से तीनों स्तर पर जुड़े हों। किशोरावस्था में होने वाले प्रेम ज्यादातर दैहिक आवेग से प्रेरित होते हैं। बाल अवस्था से वयस्क अवस्था के बीच के इस पुल से होकर हम सब गुजरे हैं। हम सब जानते हैं कि उस उम्र में शारीरिक आकर्षण ही सबसे प्रबल होता है। किशोरावस्था में दो लोग दैहिक सम्बन्ध बनाने से परहेज भी करते हैं तो उसके पीछे उनकी स्वेच्छा नहीं सामाजिक वर्जना का अंकुश जिम्मेदार होता है। इसीलिए ज्यादातर लोगों का पहला प्यार अप्रत्याशित औचक अनायास घटित होता है। कई बार यह वहाँ घटित होता है जिसे सामाजिक रूप से वर्जित क्षेत्र माना जाता है। जैसे किसी सगे-सम्बन्धी के बीच पनपा प्यार। आम तौर पर आदमी ऐसे पहले आकर्षण को जीवन के प्रवाह में बिसरा देता है। छाती से चिपकाकर नहीं रखता।

कुछ लोग खुशनसीब होते हैं कि वो जिसे अपना पहला प्यार समझते हैं उसी के साथ बाकी उम्र गुजारते हैं। ऐसे कुछ लोगों से खुलकर बात करने का मौका मिलने पर पूछा कि क्या सचमुच यही वह लड़की थी जो आपको पहली बार अच्छी लगी? जिसकी तरफ आपका दिल पहली बार खिंचा? कुछ लोगों ने माना कि नहीं ऐसा नहीं था। यानी हम जिसे पहला प्यार कहते हैं वह दरअसल प्यार की अभिव्यक्ति का पहला स्वीकार होता है। सरल भाषा में कहें तो आपका जिसपर दिल आया हो वह आपका निवेदन ठुकरा दे तो ज्यादातर लोग उस आकर्षण की स्मृति को अपने यादों के बैंक में 'पहला प्यार' का लेबल लगाकर नहीं रखते। उसके लिए इनफैचुएशन, अट्रैक्शन इत्यादि नाम धरते हैं।

जिस समाज में प्रेम को सामाजिक मान्यता नहीं मिलती वहाँ पहले प्यार को लेकर कुछ ज्यादा ही फलसफा गढ़ा जाता है। ऐसे समाज में प्यार केवल प्यार नहीं बल्कि एक सामाजिक जद्दोजहद होता है। कई बार भावनाओं से ज्यादा वजन जद्दोजहद का हो जाता है। घर से भाग जाने वाले कुछ प्रेमियों को कुछ महीने बाद लगने लगता है कि इस आदमी के संग नहीं रहा जा सकता। अपने आसपास देखने पर आप देखेंगे कि बहुत से लोगों के सम्बन्ध पहले प्यार की हाथी जैसे भारी अवधारणा के तले दबकर कुचले जा रहे हैं। लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि स्त्री और पुरुष के सम्बन्ध भी बनते और बिगड़ते हैं।

कई बार एक स्तर पर जुड़ने के बाद दूसरे या तीसरे स्तर पर जुड़ाव का अभाव खटकने लगता है। अगर व्यक्ति तीनों स्तरों पर न जुड़े तो वह सम्बन्ध विषमवत रहता है। उसे अक्सर जोड़-जुगड़ा से ठोकठाक कर फिट किया जाता है। आदमी के पास पुराना सम्बन्ध तोड़ने और नया सम्बन्ध जोड़ने की आजादी और अवसर हो तो हर आदमी और औरत अपने जीवन में कई सम्बन्ध बनाता है। यह दुखदायी किन्तु सामान्य लोकाचार है।

अमेरिका या यूरोप में तलाक दर ज्यादा होने की एक वजह यह भी है कि वहाँ का समाज का ज्यादा खुला है। वहाँ लोग घुटकर या मजबूर होकर सम्बन्ध निभाने में यकीन नहीं रखते। जिस तरह जीवन में बहुत से आकर्षण एकतरफा साबित होते हैं उसी तरह कई बार सम्बन्ध बनने के बाद भी समय के साथ-साथ किसी एक तरफ आकर्षण कम या खत्म हो जाता है। यह सामान्य का सच न स्वीकार करने से हमारे प्रेम सम्बन्धों में तमाम पेचीदगियाँ आ जाती हैं।

हमारे समाज में प्रेम सम्बन्ध को लेकर इतनी मिथ्या धारणाएँ भरी होती हैं कि प्रेम प्रस्ताव के लिए नकार दिए जाने पर कुछ लोग पूरा जीवन दाँव पर लगा देते हैं। दिल टूटने पर अक्सर लोगों को लगने लगता है अब उन्हें फिर प्यार नहीं होगा! कुछ तो इसे अपनी जिद बना लेते हैं। लेकिन एक न एक दिन ऐसा आता है कि वो महसूस करते हैं उन्हें फिर से प्यार हो गया है। जी हाँ। जिस दिल को कोई तोड़ देता है उसी दिल को कोई जोड़ देता है। दिल की टुटन में घुटना टूटने से ज्यादा दर्द होता है। लेकिन जिस तरह घुटना जुड़ जाता है उसी तरह दिल भी जुड़ जाता है। अगर आप स्वस्थ हैं और आपके शरीर में हार्मोन बन रहे हैं तो इसका होना कोई नहीं रोक सकता। चार्ली चैप्लिन का तीन बार टूटा दिल ऊना ने जोड़ दिया। उसके बाद उनका जीवन सदा सुखी रहा। यहाँ यह भी मानना होगा कि कुछ अभागे होते हैं जिन्हें उनका दिल जोड़ने वाला कभी नहीं मिलता।

हम सबको स्वीकार करना होगा कि 'पहला प्यार' ओवररेटेड है। कोई प्यार आखिरी नहीं होता। चाहे जितनी बार भी दिल टूटा हो, आदमी को फिर से प्यार हो सकता है। एक स्त्री/पुरुष ने जिस दिल को तोड़ा हो उसे दूसरी स्त्री/पुरुष सहजता से जोड़ सकती है।

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