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मटन से भी मंहगी है यह जंगली सब्जी, जानें क्यों दीवाने हैं लोग?
पीलीभीत. अगर आपसे कहा जाए कि एक ऐसी जंगली सब्जी है, जिसकी कीमत 1000 रुपए किलो के भी पार है और लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं, तो आपको हैरानी होगी. हालांकि ये सच है. दरअसल मॉनसून की पहली बारिश के साथ ही यूपी में पीलीभीत और लखीमपुर के तराई जंगलों में कटरुआ नाम की सब्जी (Katrua Vegetable) की पैदावार शुरू हो जाती है. इसकी शुरुआती कीमत आसमान छूती है. कटरुआ के शौकीन इस सब्जी के लिए पूरे साल भर बारिश का इंतजार करते हैं.
कटरुआ की सब्जी को शाकाहारियों का नॉन वेज भी कहा जाता है. इतना ही नहीं यह सब्जी प्रोटीन से भरपूर होती है. यही कारण है कि हर साल कटरुआ की कीमत पिछले साल से अधिक होती है.फिर भी लोग इसे शौक से खरीदकर और खाते भी हैं.
कटरुआ की सब्जी पर है प्रतिबंध
वैसे सब्जी चाहे जितनी भी प्रोटीन युक्त और स्वादिष्ट हो, लेकिन जंगल जाकर कटरुआ निकालने पर प्रतिबंध है. फिर भी आसपास के ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डाल कर विभागीय सांठ-गांठ से इसे खोद कर लाते हैं. अगर पीलीभीत की बात की जाए तो यहां स्टेशन चौराहा, गैस चौराहा समेत तमाम जगह बकायदा कटरुआ की मंडी लगाती है. सैकड़ों लोग इसे खरीदने आते हैं.
जानिए कैसे निकाला जाता कटरुआ?
आमतौर पर कटरुआ पीलीभीत और लखीमपुर के जंगलों में पाया जाता है. कटरुआ तराई जंगलों में साल और सागौन के पेड़ों की जड़ों में पैदा होता है. इसके बाद इसे बीनने के लिए लोग जंगल जाते हैं. जमीन खोद कर कटरुआ निकाला जाता है. इसके बाद व्यापारी उसे खरीद कर पीलीभीत, लखीमपुर और बरेली की मंडियों में बिक्री के लिए ले जाते हैं. कटरुआ पर प्रतिबंध भी है, लेकिन विभागीय सांठ-गांठ से लगातार इसे जंगल से निकाला जाता है. हैरानी की बात ये है कि यह खुलेआम बिकता है. इसी के चलते इस सीजन कटरुआ की कीमत 1000 रुपए से शुरू हुई है और अगर स्थानीय मंडी में मटन की कीमत को देखा जाए तो वह लगभग 600 रुपए के आसपास है. ऐसे में कटरुआ ने कीमत के मामले में मटन को भी पछाड़ रखा है.
हिरण की भी पसंद है कटरुआ
जंगल के जानकारों की मानें तो पीलीभीत टाइगर में पाई जाने वाली हिरण की प्रजातियों को भी कटरुआ खूब भाता है. मॉनसून के सीजन में हिरणों को कटरुआ खोद कर खाते हुए देखे जाते हैं.
दूरदराज तक है कटरुआ की डिमांड
वैसे तो पीलीभीत, लखीमपुर और बरेली में कटरुआ मंडी लगाकर बिकता है.पीलीभीत रोजगार के क्षेत्र में पिछड़ा माना जाता है. यही कारण है कि यहां के लोग कामकाज के सिलसिले में दूरदराज के इलाकों में जा कर बसे हैं, लेकिन वे लोग आज भी कटरुआ का स्वाद नहीं भुला पाए हैं.इस वजह से लोग आज भी मॉनसून के सीजन में अपने-अपने साधनों से कटरुआ मंगा कर खाते हैं.
एसे बनती है कटरुआ की सब्जी
कटरुआ को शाकाहारियों का नॉन वेज कहा जाता है. दरअसल कटरुआ पेड़ की जड़ों में मिट्टी के अंदर पाया जाता है, इसीलिए इसे पकाने से पहले चिकन-मटन की ही तरह धोया जाता है. बाद में इसे अधिक गरम मसाले में डाल कर पकाया जाता है.