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जाप करने वाली माला में क्यों होती है 108 मनके? ये चीज़ जान कर उड़ जाएगी आपकी नीद

Shiv Kumar Mishra
10 Jan 2022 6:17 AM GMT
जाप करने वाली माला में क्यों होती है 108 मनके? ये चीज़ जान कर उड़ जाएगी आपकी नीद
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आपने देखा होगा कि हम जिस माला को जप में उपयोग करते है उसमें 108 मनके होते है। जब एक माला का जाप करने के लिए कहा जाता है तो उसका मतलब होता है कि हमें अमुक मंत्र का 108 बार जाप करना है। आखिर कभी अपने सोचा है कि यह एक माला में 108 मनके क्यों होते है। इसके पीछे का क्या विधान या फिर रहस्य है। आज हम एक माल में 108 मनके होने के सम्बंध में बताएंगे।

वहीं हम भी यह मानते हैं कि इस वैदिक विधान का कोई न कोई विशेष महत्व है। इसके बारे में हम जाने या न जाने। इसी लिए हम अपने सनातन धर्म में बाताए सभी बातो ंपर विश्वास करते हैं और हमें करना भी चाहिए। आज वैज्ञानिक भी सनातन धर्म के कई रहस्यो को सुलझा चुके हैं। ऐसे में उनके प्रमाणित हो जाने पर तो हमें मानना ही चाहिए कि हमारे सनातन धर्म में बताई गई बातें कोरी कपोल कल्पना नही है। इसके वैज्ञानिक तर्क हैं।

जाने क्या है बड़ा मनका

आपने अगर कभी माला पहना होगा या फिर कभी माला लेकर किसी मंत्र का जाप किया होगा तो 108 छोटे मनकों में एक बड़ा मनका होता है। इस मनको को सुमेरू पर्वत कहते हैं। इस मनके को जप में शामिल नहीं किया जाता है। इस बडे मनके से जप शुरू किया जाता है और इस मनके पर आकर समाप्त कर दिया जाता है। इसे बडे मनके को पार नही किया जाता है।

108 मनकों की माला के 3 महत्वपूर्ण कारण

1-मान्यता है कि हमारे ब्रह्मांड में 27 नक्षत्रों है। हर नक्षत्र के 4 चरण बताए गये हैं। ऐसे में अगर 27 नक्षत्र और उनके 4 चरणें से गुणा कर दिया जाय तो यह संख्या 108 हो जाती है। इसलिए माला में 108 मनके रखे जाते हैं। इसे बहुत शुभ भी माना गया है।

2-वहीं दूसरे कारण के सम्बंध में तर्क दिया जाता हैं कि हमारा ब्रह्मांड 12 भागों में बंटा हुआ है। ज्योतिष में राशियों की संख्या भी 12 है। साथ ही सभी राशियों के स्वामी ग्रह होते हैं। और ग्रहों की संख्या 9 हैं। कहा गया है कि अगर 12 राशि और 9 ग्राहें का गुणा कर दिया जाय तो यह संख्या 108 हो जाती है।

3-108 मनकों की माला होने के सम्बंध्र एक अंतिम कारण यह भी है कि हमारे धर्म-शास्त्रों में हर व्यक्ति को दिनभर में कम से कम 10,800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। लेकिन यह हो नहीं पाता है। ऐसे में सनातन व्यवस्था के तहत 10,800 में से पीछे के दो शून्य हटाकर इस संख्या को 108 कर दिया गई। साथ ही कहा गया कि 108 बार का जाप करने पर 10,800 जाप का पुण्य प्राप्त होता है।

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