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कहानी: एक वीरान गाँव तलक्कड

कहानी: एक वीरान गाँव तलक्कड
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सीमा सहाय (लेखिका)

दक्षिण भारत का एक गाँव है जिसे तलकाडु या तलक्कड भी कहते हैं, उसके बारे में बताती हूँ। इस कहानी का आरंभ सन् 1612 ई. से माना जाता है।लेकिन सबसे पहले कुछ और जान लेते हैं।कावेरी दक्षिण भारत की बहुत बड़ी और विशालकाय नदी है।इसे दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। इस नदी के कई उपनदियां या धाराएं निकलती हैं, जिससे यहां पर कई द्वीप हैं।इन्हीं द्वीपों में एक द्वीप था-रंगपट्टनम।यहां के राजा थे श्री रँगराय जिन्हें तिरुमल राय के नाम से भी जाना जाता है।



रँगपट्टनम में भगवान श्री रँगपट्टनम और उनकी पत्नी देवी रँगनायकी की एक विशाल मंदिर था। श्री रँगपट्टनम और उनकी पत्नी का श्रृंगार प्रतिदिन पूजा के समय किया जाता था।ये गहने पूजा के बाद रानी अलामेल्लमा को सौंप दिया जाता था। तब मैसूर राज्य के राजा थे वडियार।उन्होंने रँगपट्टनम पर आक्रमण कर दिया और जीत हासिल किया।

श्री रँगराय और उनकी पत्नी अलामेल्लमा वहां से भागकर तलक्कड गांव पहुंचे जिसे तलकाडु भी कहते थे। यहां पर वे दोनों बहुत ही साधारण जीवन जीने लगे। क्योंकि रंगपट्टनम पर वडियार का शासन हो गया था, इसलिए मंदिर भी मैसूर राजा के ही अधिकार में आ गया था। अलामेल्लमा को गहनों से बहुत लगाव था।वह सारे गहने अपने साथ लेकर आईं थीं।

जब मैसूर राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने गहने वापस मंगवाया। अलामेल्लमा ने गहने देने से इंकार कर दिया। अब राजा वडियार ने अपने सैनिकों को भेजकर गहने छीन कर लाने का आदेश दिया। जैसे ही अलामेल्लमा को इस बात का अंदाजा लगा कि वडियार के सैनिक उससे जेवर छीनने आ रहे हैं वह गहनों के समेत कावेरी में कूद गई।

और कूदते कूदते वह मैसूर राजा को निर्वंश होने का श्राप भी दे गईं। उसके बाद मैसूर राज्य लंबे समय तक रानी के अभिशाप से श्रापित रहा। तलकाडु ( तलक्कड )जहाँ से अलामेल्लमा कावेरी में छलांग लगाई थी,उस समय वहां की धार अत्यंत तीव्र थी। पर ऐसा माना जाता है कि अलामेल्लमा के कूदने के बाद ही अचानक कावेरी नदी सूख कर रेगिस्तान में बदल गई।

उस समय वहां लगभग तीस मंदिरें थीं, वे सारे भी रेत में दब गए। एक लंबे समय तक तलकाडु गाँव रेत में दबा रहा। एक इतिहास कार ने लिखा है कि तलकाडु में एक साल में लगभग 15फीट रेत बन गई।और इतनी रेत का रहस्य क्या है,यह आज तक कोई नहीं जान पाया।अब भी ऐसा कहा जाता है कि ये सारी मंदिरें हर साल रेत में दबने लगती हैं, इन्हें हर साल खोदकर निकाल ना पड़ता है। इनका रहस्य क्या है, यह आज तक कोई भी नहीं जान सका है।

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