भोपाल

अपना एमपी गज्जब है..29, ये किस सिस्टम का मॉडल है?

अपना एमपी गज्जब है..29, ये किस सिस्टम का मॉडल है?
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एमपी के सीएस को अंततः 6 महीने का एक्सटेंशन मिल ही गया!सबने राहत की सांस ली!लेकिन आखिरी दिन तक चले सस्पेंस सस्पेंस के खेल ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है - आखिर यह फैसला किस सिस्टम का मॉडल है!

वर्तमान सीएस को 30 नवंबर को रिटायर होना था।चुनावी साल है इसलिए मुख्यमंत्री चाहते थे कि उनकी जोड़ी बनी रहे!चूंकि दोनों का साथ काफी पुराना हो गया है इसलिए यह स्वाभाविक भी था।

इसी वजह से उन्होंने सीएस को एक साल का एक्सटेंशन देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। बताते हैं कि इसकी कोशिश बहुत पहले से शुरू हो गई थी।लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री की चिट्ठी 9 नवंबर 2022 को भेजी गई।

चिट्ठी दिल्ली तो पहुंच गई!लेकिन दिन गुजरते गए! कोई हलचल नहीं हुई।न कोई उत्तर आया न कोई फैसला!

इसी कशमकश में महीने की आखिरी तारीख भी आ गई।इसी के साथ शुरू हुआ जोरदार अटकलों का दौर!आमतौर पर होता यह है कि या तो पहले ही सेवावृद्धि का ऐलान हो जाता है या फिर नए नाम की घोषणा कर दी जाती है।

लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ!प्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका था जब सीएस को लेकर ऐसा असमंजस बना!

इस वजह से जितने मुंह उतनी बातें शुरू हो गईं।कहा गया कि पीएम सीएम को सबक सिखाना चाहते हैं।इसलिए उनकी सलाह पर उनके सीएस को एक्सटेंशन नही देंगे। यूपी के सीएम के इसी तरह के प्रस्ताव को वह खारिज कर चुके हैं।

हालांकि दिल्ली में एक्सटेंशन का मौसम चल रहा था। ईडी और सीबीआई के चीफ को एक्सटेंशन दिया गया है।साहब के इशारों पर नाच रहे कुछ और अफसरों को भी एक्सटेंशन का प्रसाद मिला है।एक अफसर को तो 16 महीने दिए गए हैं!

ऐसे में एमपी के सीएम की सिफारिश को आखिरी दिन तक लटकाए रखने पर सवाल उठना और कानाफूसी होना स्वाभाविक थी।खूब हुई भी!

बाद में मीडिया ने अपने ढंग से केंद्र के फैसले की व्याख्या की।लेकिन यह सब भूल गए कि खुद सीएस को यह लग गया था कि कुछ गडबड है।इसीलिए उन्होंने 30 नवम्बर के अपने सारे कार्यक्रम तक रद्द कर दिए थे।वह मंत्रालय में अपने दफ्तर में भी तभी पहुंचे जब दोपहर में उनकी 6 महीने के एक्सटेंशन का आदेश दिल्ली से जारी हो गया।

ऐसा पहली बार नही हुआ है।पहले भी मुख्यसचिव का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा है।साथ ही अचानक हटाया भी जाता रहा है!

जो पहली बार हुआ है वह यह कि मुख्यमंत्री के पत्र पर केंद्र सरकार आखिरी दिन तक कुंडली मारे बैठी रही और उनकी बात पूरी तरह मानी भी नहीं।सूत्रों की माने तो पीएमओ से 29 नवंबर की रात को फाइल पर चिड़िया बैठाई गई।इसलिए 30 की दोपहर को आदेश निकल पाया।यहां भी इंपॉर्टेंट बात यह रही की सीएम साल भर का एक्सटेंशन चाहते थे।लेकिन दिया गया 6 महीने का।चुनावी साल है।ऐसे में 6 महीने बाद या तो नया सीएस आएगा या फिर वर्तमान को ही फिर 6 महीने दिए जाएंगे।अगर नया सीएस आया तो सीएम को पूरी जमावट नए सिरे से करनी होगी जो कि एक बड़ी समस्या होगी।कुल मिलाकर बात वही रहेगी।

हालांकि आज की राजनीति में कुछ भी संभव है!लेकिन एक बड़ा सवाल यह है एक अनुभवी सीएम और पार्टी के वरिष्ठ नेता के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों किया गया।

भोपाल से दिल्ली तक बीजेपी की ही सरकार है।घोषित तौर पर कांग्रेस की तरह की खेमेबंदी भी आज की भाजपा में नहीं है।एमपी के सीएम भी कोई नौसिखिया नहीं हैं!उन्होंने एमपी में सबसे लम्बे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड बनाया है।इस बात की उम्मीद भी कम ही है कि आने वाले दिनों में कोई उनका रिकॉर्ड तोड़ पाएगा।पार्टी में तो वे वरिष्ठ हैं ही।चुनावी राजनीति में तो पीएम से भी वरिष्ठ हैं।यह अलग बात है कि उन्होंने पूरी विनम्रता से वर्तमान केंद्रीय नेतृत्व का हर आदेश माना है।यहां तक कि नेतृत्व को भगवान से भी ऊपर बताते रहे हैं।

ऐसे में उनके अनुरोध को 21 दिन तक लटकाए रखना किस सिस्टम का मॉडल माना जाए?देश में विकास के लिए जिस मॉडल का उदाहरण दिया जाता है,ऐसा तो शायद वहां भी नही हुआ होगा।यह अलग बात हैं वहां जो हुआ उसे इससे और आगे का मॉडल कहा जा सकता है।मजे की बात यह है कि एक जमाने में केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली में अपने मंत्रियों और विधायकों के साथ धरना देने वाले सीएम साहब अब कोई प्रतिकार नहीं करते हैं।

फिलहाल वे अपनी चुनावी तैयारी में लग गए हैं!सी एस अपना काम कर ही रहे हैं।लेकिन यह सब मान रहे हैं कि दिल्ली ने अपनी इंपोर्टेंस दिखाने के लिए एमपी में एक नई नजीर पेश कर दी है।पार्टी के भीतर इस तरह के दांव पेंच का उदाहरण पहले शायद ही देखने को मिला हो।

अब जो भी हो इतना तो तय है... कि अपना एमपी गज्ज़ब है!है कि नहीं!

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

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