भोपाल

अथ श्री कुबेरेश्वर धाम कथा पार्ट टू: अव्यवस्थाओं को आस्था की आड़ में कब तक छिपायेंगे..

Shiv Kumar Mishra
19 Feb 2023 11:50 AM IST
अथ श्री कुबेरेश्वर धाम कथा पार्ट टू: अव्यवस्थाओं को आस्था की आड़ में कब तक छिपायेंगे..
x

भोपाल से इंदौर जाने वाली सडक के एक तरफ गुड भेला गांव तो सडक की दूसरी ओर चितावलिया हेमा गांव है जहां बना है कुबेरेश्वर धाम। उस दिन दोनों तरफ भीड ही भीड। रास्ते पर गाडियां और आने जाने वालों की लंबी लंबी कतारें। इस जनसैलाब के आगे बेबस से इक्के दुक्के पुलिस के जवान जो ना किसी को रोक पा रहे और ना टोक पा रहे। मैंने पूछा नितिन क्या करें गांव में अंदर कैसे जायेगे। नितिन ने कहा कि सर जब इतनी दूर आ ही गये हैं तो यहां भी घुस ही जायेगे। बस फिर क्या था सडक पार की और जा घुसे भीड में। यहां तो अलग ही नजारा था। सडक से ही बाजार पसरा था। दोनों तरफ दुकानों की बेतरतीब सी कतारें। जो लोग सडक पर चल नहीं पा रहे थे वो इन दुकानों के अंदर बाहर आसरा पाये थे। दुकानें भी खाने पीने नाश्ते रूद्राक्ष और प्रसाद की ज्यादा। आगे बढते ही बांये हाथ पर सरकारी सोसायटी का दफतर था मगर ये दफतर अब सराय में बदल गया था। यहां पर अंदर बाहर हर ओर परिवारों का डेरा था। लोग अपने बेग और सामान के चादरें बिछाकर यहां तहां सर्वत्र बिखरे थे। कैमरा देखा और गुबार फट पडा। बाबा ने बुला तो लिया मगर व्यवस्था जरा भी नहीं की। यहां खाने पीने शौचालय की परेशानी है हम रात से आये हैं खाने पीने के अनाप शनाप दाम तो हैं ही सुलभ शौचालय वाला भी मनमर्जी से पैसा वसूल रहा है। ये वो लोग थे जो कुबेरेश्वर धाम में एक दिन पहले से ही आकर डेरा डाले थे सोचा था पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर रूकने ठहरने की अच्छी जगह और अभिमंत्रित रूद्राक्ष मिलेगा। मगर ना जगह मिली ना रूद्राक्ष। रूद्राक्ष जो एक दिन पहले बांटना शुरू किया था वहां इतने लोग आ गये कि छोटी मोटी भगदड़ के बाद ये देना बंद कर दिया।


इस सोसायटी से किसी तरह निकले तो देखा गांव के स्कूल पंचायत भवन के साथ करीब के खेतों पर भी श्रद्धालुओं का कब्जा सा है। जिसको जहां जगह मिली है बैठा है लेटा है और खाली पानी की बोतल लेकर कुढ रहा है। पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है भाईसाहब। इन बोतलों का पानी लो और पियो। इस भीड भाड में आमने सामने से तो लोग तो टकरा ही रहे थे नीचे पैरों में प्लास्टिक की खाली बोतलें भी कम शोर नहीं मचा रहीं थीं। सडक से करीब पांच सो मीटर चलने पर ही है कथावाचक प्रदीप मिश्रा का कुबेरेश्वर धाम। कई एकड में फैले इसके कैंपस के गेट नंबर एक पर ही बदहवासी का आलम। पुलिस कंट्रोल रूम का बैनर ओर एक लडका हाथ में माइक रखे उसके हाथों में सैकडों पर्चियां जिनमें खोने वाले का नाम। उसकी जिम्मेदारी वो नाम पुकारे मगर कितनों का सामने हजारों की भीड खडी हमारा टीवी का माइक देख कर उसे पकड कर ही बोल पडी बिहार के दरभंगा से आयीं अम्मा जो बेटे से वो बिछड गयीं थी। रामेश्वर बेटा आ जाओ गेट पर खडी हूं। देखा देखी में कुछ और लोग यहीं करने लगे। अचानक आई इस भीड से मोबाइल नेटवर्क ठप हो गया था सैकडों लोग अपनों से बिछड गये थे। इनमें बुजुर्ग और बच्चे जयादा थे। ये सब कब अपनों से मिल पायेंगे इस चिंता को छोड हम अंदर जा पहुंचे।


कैंपस में कथा गूंज रहीं थी और कैंपस की दीवालों के किनारे किनारे हजारों महिलाओं की भीड उस छोटी सी जगह में ही पूजा पाठ करते और कथा की धुन पर नाचती दिखी। यहीं एक चबूतरे पर रूद्राक्ष से बना शिवलिंग था जिसके पास सबसे ज्यादा भीड थी। श्रद्धा से लोग उसे प्रणाम कर रहे थे तो चबूतरे पर खडा आदमी उनको कह रहा था यहां भीड ना लगाइये यहां नहीं मिलेगा रू्रद्राक्ष। महाराष्ट्र से आये कांताराव हमसे ही बोले कुछ करवाइये सर यहां पर रूद्राक्ष नहीं मिल रहा। हम यवतमाल से आये हैं रूद्राक्ष लेने। हमने पूछा मिल जायेगा तो क्या हो जायेगा। अरे सर अच्छा रहता है। बाबा भोलेनाथ का प्रसाद है वो तो रामबाण है रूद्राक्ष। उसका पानी पीने से सब कष्ट दूर हो जाते हैं किसने कहा पंडित जी बताते हैं।


कुबेरेश्वर में उमडी लाखों की भीड में सबसे ज्यादा लोग महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश बिहार छत्तीसगढ़ से आये हैं। ये सब वो हैं जो पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा टीवी मोबाइल पर सुनते हैं और जिंदगी की समस्याओं के समाधान के लिये बताये आसान नुस्खा के वशीभूत होकर यहां चले आये हैं हालांकि मिश्रा जी का दावा है कि लोग उनकी कथा सुनने ज्यादा आते है रूद्राक्ष तो हर जगह मिलता है। कथा पंडालों के पास ही रूकने के पंडाल बने हैं जहां पर लोग किसी तरह ठहरे हुये हैं। माइक देखते ही परेशानियां बताने की कोशिश करते है। मगर दूसरे आकर रोकते हैं और कहते हैं इतनी परेशानियां तो चलती है। जिनको इन पंडाल में जगह नहीं मिली वो खेतों में चार डंडियों में अपने साथ लाये चादर दरी और साड़ियों से छांह कर झुग्गी जैसी बनाकर रह रहे हैं। यहां खुले में ठंड नहीं लगती पूछने पर परिवार में दो छोटे बच्चों के साथ बैठे किशोर कामटे बोलते हैं लगती तो है मगर आ गये हैं तो कहीं ना कहीं तो रुकना ही होगा। रूद्राक्ष मिलेगा तो चले जायेंगे। रूद्राक्ष की चाह में हजारों किलोमीटर दूर से आये इन लोगों की संख्या का अनुमान ना तो प्रदीप मिश्रा और ना प्रशासन लगा पाये। शौचालयों की सीमित व्यवस्था ने इस भीड़ के आगे दम तोड दिया था। खुले में शौच के कारण पंडालों के आसपास गंदगी और बदबू का डेरा था।


भारी भीड में हुयी इन अव्यवस्थाओं में बीमार अशक्त बुजुर्गों की जान पर बन आयी है। जिला अस्पताल सिहोर में कुबेरेश्वर धाम से आये बीमारों की सूची में सत्तर लोगों के नाम लिखे हैं जो विभिन्न वार्डो में भर्ती है। इनमें तीन मरने वाले भी है जिनमें दो बुजुर्ग महिला और बच्चा है। सवाल ये है कि कथावाचक के बुलावे पर लाखों की ये भीड क्यों कष्ट उठाते हुये इतनी दूर चली आती है ये आस्था है अंधविश्वास है या फिर अपनी जिंदगी से जुडी समस्याओं से निजात पाने के आसान रूद्राक्षी उपाय समझ नहीं आता। उधर हमारे लौटते में पंडाल से आवाज आ रही थी अरे भाई कई बार शादियों में भी तो ज्यादा लोग आ जाते हैं तो इसमें परेशानी कैसी। लोग जो यहां परेशान हो रहे हैं लगता है वो पूरी आस्था के साथ नहीं आये। हमने भी सोचा कि जब अव्यवस्थाओं को ही आस्था की आड में छिपाने लगो तो फिर क्या रह गया।


भाईसाब आप पत्रकार हो लोगों को बताइये बुलाने के बाद ऐसी अव्यवस्था होगी तो आयोजकों पर केस होना चाहिये। यहां हर साल ऐसा ही होता है। सड़क से लेकर गाँव तक सब परेशान होते हैं। एक बुजुर्ग शख्स ने मेरा माइक पकड कर कहा।

ब्रजेश राजपूत,एबीपी न्यूज भोपाल

Next Story