भोपाल

मध्यप्रदेश में ड्रामा: महाराजा ज्योतिरादित्य क्यों है खामोश?

Shiv Kumar Mishra
7 March 2020 7:50 AM GMT
मध्यप्रदेश में ड्रामा: महाराजा ज्योतिरादित्य क्यों है खामोश?
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भोपाल: मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार बचेगी या जाएगी? यह लाख टके का सवाल अभी बरकरार है। इस सियासी संकट के बीच दो किरदार सबसे असरदार दिख रहे हैं। एक जो खुलकर सामने आ रहा है और दूसरा जिसने अब तक जुबान नहीं खोली। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की। दिग्विजय तो लगातार सक्रिय हैं लेकिन सिंधिया 'पिक्चर' से बाहर हैं। सिंधिया की इस 'चुप्पी' के आखिर मायने क्या हैं, इसको समझने के लिए चलिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं।


तारीख- 13 फरवरी 2020। जगह मध्य प्रदेश का टीकमगढ़। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक सभा को संबोधित कर रहे हैं। अचानक कुछ टीचरों ने हंगामा शुरू कर दिया। नाराज शिक्षकों को शांत करने की भाव-भंगिमा के साथ सिंधिया ने कहा, 'आपकी मांग मैंने चुनाव के पहले भी सुनी थी, मैंने आपकी आवाज उठाई थी। ये विश्वास मैं आपको दिलाना चाहता हूं कि आपकी मांग जो हमारी सरकार की मेनिफेस्टो में अंकित है, वह मेनिफेस्टो हमारे लिए हमारा ग्रंथ बनता है। सब्र रखना और अगर उस मेनिफेस्टो का एक-एक अंक न पूरा हुआ तो आपके साथ सड़क पर अकेले मत समझना आपके साथ सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा।


इस एक बयान ने एमपी में सियासी तूफान खड़ा कर दिया। लोकसभा चुनाव हारने के बाद सियासी वनवास भुगत रहे सिंधिया की यह हुंकार चर्चा का विषय बन गई। मुख्यमंत्री कमलनाथ से सिंधिया की तल्खी कोई दबी-छिपी बात नहीं थी। दो दिन बाद कमलनाथ भी सामने आए। सिंधिया की सड़क पर उतरने की धमकी पर उनसे पूछा गया तो तल्ख अंदाज में बोले- 'तो उतर जाएं।'

जुबान नहीं खोल रहे सिंधिया

सिंधिया सड़क पर तो नहीं उतरे लेकिन फिलहाल कमलनाथ सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस नेताओं को कई राज्यों की सड़क नापनी पड़ रही है। भोपाल से गुरुग्राम और गुरुग्राम से बेंगलुरु। सियासी ड्रामा पल-पल बदल रहा है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से सिंधिया ने दूरी बनाए रखी है। वह दिल्ली हिंसा पर तो ट्विटर के जरिए फौरी टिप्पणी करते हैं लेकिन राज्य में चल रही सियासी उठापटक पर अब तक एक शब्द नहीं बोला है। जब कमलनाथ सरकार की सांसें अटकी हुई थीं तो सिंधिया 'आत्मीय अभिनंदन' में व्यस्त थे। 4 मार्च को उन्होंने क्षत्रिय समाज की ओर से किए गए स्वागत की तस्वीर पोस्ट की।



संकट के पीछे सिंधिया की उपेक्षा?

सिंधिया खुद तो नहीं बोल रहे हैं लेकिन बुलवा जरूर रहे हैं। राज्य के श्रम मंत्री और सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले महेंद्र सिंह सिसोदिया का बयान इसकी एक बानगी है। शुक्रवार को उन्होंने कहा, 'कमलनाथ सरकार को संकट तब होगा जब सरकार हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधियाजी की उपेक्षा या अनादर करेगी। तब निश्चित तौर से सरकार पर जो काले बादल छाएंगे वो क्या कर जाएंगे मैं यह नहीं कह सकता।'

इस एक बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कमलनाथ सरकार के भविष्य और अस्तित्व पर छाई धुंध हटना इतना आसान नहीं है। ज्योतिरादित्य चुप रहकर भी संदेश दे रहे हैं। अभी उनके पास कोई अहम जिम्मेदारी नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव से चंद महीने पहले कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया। सिंधिया को चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी मिली। चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने 'युवा जोश' पर 'सीनियरमोस्ट' को तवज्जो दी। एक बार फिर सिंधिया को मुंह की खानी पड़ी और कमलनाथ को कुर्सी मिल गई। इसमें दिग्विजय ने भी खुलकर कमलनाथ का साथ दिया।

सिंधिया के लिए वजूद की जंग

सियासी विश्लेषक बताते हैं कि इसी दिन से सिंधिया और कमलनाथ की खाई और चौड़ी हो गई। दिग्विजय सिंह पहले से ही सिंधिया के खिलाफ थे। अब आया 2019 का लोकसभा चुनाव। इस बार सिंधिया के राजनीतिक करियर की सबसे कठिन घड़ी थी। लेकिन वह अपनी पुश्तैनी गुना-शिवपुरी संसदीय सीट नहीं बचा सके। कभी उन्हीं के करीबी रहे बीजेपी कैंडिडेट केपी यादव ने सिंधिया को सवा लाख वोटों से मात दे दी। इस हार के बाद सिंधिया के लिए वजूद की चुनौती खड़ी हो गई।

वजूद की इस जंग में सिंधिया के सामने दो संभावनाएं साफ दिख रही हैं। एक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी और दूसरा राज्यसभा सीट। मध्य प्रदेश में फिलहाल कमलनाथ ही अध्यक्ष की कुर्सी संभाले हुए हैं। दिग्विजय खुले तौर पर सिंधिया को जिम्मेदारी देने के खिलाफ हैं। सितंबर 2019 में जब सिंधिया से दिग्गी के विरोध को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र है। दरअसल दिग्गी ने कहा था कि पोस्ट खाली नहीं है और कमलनाथ अध्यक्ष हैं।

राज्यसभा की तीसरी सीट में छिपा राज?

अब रही बात राज्यसभा चुनाव की तो उसमें भी सिंधिया के लिए राह आसान नहीं है। एमपी में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए 13 मार्च से नामांकन शुरू हो रहे हैं। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और बीजेपी के प्रभात झा व सत्यनारायण जटिया का कार्यकाल 9 अप्रैल को खत्म हो रहा है। 26 मार्च को वोटिंग के बाद शाम को ही रिजल्ट आ जाएगा। पेच यहीं फंसा है।

2 विधायकों के निधन के बाद सदन में सदस्यों की वर्तमान संख्या 228 है। एक सीट पर जीत के लिए न्यूनतम 58 विधायकों की जरूरत है। कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय सिंह पहले ही रेस में हैं। सूत्रों के मुताबिक ज्योतिरादित्य एक सीट पर अपनी भी दावेदारी चाहते हैं। 107 विधायकों की बदौलत बीजेपी के हिस्से में एक सीट जाना तय है। 114 सदस्यों वाली कांग्रेस की एक सीट तो पक्की है लेकिन विधायकों के पाला बदल की सूरत में तीसरी सीट का गणित बिगड़ सकता है। तो क्या ज्योतिरादित्य की चुप्पी और एमपी के ड्रामे का राज इस तीसरी सीट में छिपा है?

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