भोपाल

मंदसौर किसान आंदोलन की चौथी बरसी: आखिर निहत्थे किसानों पर गोली चालन करवाकर, सरकारें देश को क्या संदेश देना चहाती हैं?

Shiv Kumar Mishra
3 Jun 2021 4:41 PM GMT
मंदसौर किसान आंदोलन की चौथी बरसी: आखिर निहत्थे किसानों पर गोली चालन करवाकर, सरकारें देश को क्या संदेश देना चहाती हैं?
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सरकार सुन लो, देश गुलामी से बचाना है तो तीन किसान विरोधी कानून रद्द करो।

[7:50 PM, 6/3/2021] Special Coverage News: https://youtu.be/feCaeJbmaso

[9:57 PM, 6/3/2021] Aradhana Ji: मंदसौर किसान आंदोलन की चैथी बरसी पर लेख।

किसान आन्दोलन एक भाषा है, जिसे सरकार को पढ़ना वा सीखना चाहिए।

सरकार सुन लो, देश गुलामी से बचाना है तो तीन किसान विरोधी कानून रद्द करो।

आखिर निहत्थे किसानों पर गोली चालन करवाकर, सरकारें देश को क्या संदेश देना चहाती हैं?

एड. आराधना भार्गव

06 जून 2017 को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने, दूध, सब्जी तथा सभी कृषि उत्पाद का समर्थन मूल्य पर खरीदी की मांग को लेकर एक जुट हुए किसानों पर, मंदसौर में गोली चालन किया। जिसमें 6 किसान साथी शहीद हुए, कई साथी गोली चालन से घायल हुए। गोली चालन का आदेश देने वाले अधिकारी निर्दोष है, यह रिर्पोट गोली चालन के बाद बनाए गए आयोग ने विधान सभा में प्रस्तुत कर दी। नेतृत्व करने वाले किसानों पर सैंकड़ों फर्जी मुकदमें बनाकर उन्हें जेल के अन्दर डाल दिया गया। शहीद हुए किसानों के परिवार को अनुकम्पा नियुक्ति का झुनझुना पकड़ा दिया गया तथा बाद में उन्हें अफीम के तश्कर की उपाधि से सम्मानित किया। 12 जनवरी 1998 को बैतूल जिले के मुलताई तहसील परिसर में नष्ट हुए फसल का मुआवजा, बिजली बिल, सोसाईटी तथा बैंक का कर्जा माफ करने, अनाज के अभाव में भूख से तड़पते बच्चों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली राशन से अनाज उपलब्ध कराने, भूखे जानवरों को चारा उपलब्ध कराने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे निहत्थे किसानों पर, दिग्विजय सिंग (कांग्रेस) की सरकार द्वारा किसानों पर गोली चालन का आदेश दिया गया। तत्कालीन पुलिस अधिक्षक जेपी सिंग तथा जिलाधीश रजनीश बैस के नेतृत्व में निहत्थे किसानों को गोली से भूंज डाला, जिसमें 24 किसान शहीद हुए, 150 किसान घायल हुए, जिसमें से कुछ आज जिन्दा रहते हुए भी मृतप्रायः जिन्दगी जीने के लिए मजबूर है। 250 किसानों पर एक घटना के 67 मुकदमें लादे गये। 90 साल के बूढ़े अमरू काका जैसे कई बुजुर्ग किसान 17 सालों तक न्यायालय के चक्कर काटते रहे, बिना न्यायालय के फैसला सुने इस दुनिया से अलविदा हो गये। घटना के 17 वर्ष पश्चात्, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में झूठी गवाही पेश करने वाले गवाहों के ब्यान पर, चार किसान नेता डाॅ. सुनीलम्, स्व. प्रहलाद अग्रवाल, शेषु किराड तथा रामु पवार को आजीवन कारावास की सजा से नवाजा गया। मध्यप्रदेश के किसानों की रवि की फसल समर्थन मूल्य पर नही खरीदी जा रही थी, कारण पूछने पर पता चला कि बारदानों (बोरे) की कमी है, किसानों ने बरेली में बारदाने की मांग को लेकर आन्दोलन किया, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने गोली चालन का आदेश दिया, 2 किसान शहीद हुए, नेतृत्व कर रहे, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी) पर किसानों की हत्या का प्रकरण दर्ज किया गया, वे कई दिन तक जेल के अन्दर रहे, बाद में प्रकरण वापस लिया गया। 12 जनवरी 1998 को किसानों पर गोली चलाने के पश्चात् नेतृत्व कर रहे किसानों पर एक घटना के 67 मुकदमें लादे गये, जिन्हें वापस करने का ढ़ोग दिग्विजय सरकार ने किया, किन्तु प्रकरण सरकार द्वारा आज दिनांक तक भी वापस नही कराये गए। उसी तरह 06 जून 2017 को मंदसौर गोली चालन का आदेश शिवराज सिंग चैहान (भाजपा) की सरकार द्वारा किया गया। नेतृत्व कर रहे किसानों पर फर्जी मुकदमें लादे गये, जिन्हें वापस करने का ढ़ोग आज भी चल रहा है। किसान आन्दोलन का अंकुर 25 दिसम्बर 1997 को मुलताई के किसानों ने डाला और वह अंकुर बड़े पेड़ के रूप में हमें दिल्ली की सीमा पर सिंघु, गाजीपुर, टिकरी तथा शाहजापुर बर्डर पर दिखाई दे रहा है। 26 नवम्बर 2020 से लाखों की संख्या में दिल्ली की सीमा को घेरकर किसान साथी बैठे हुए है। आन्दोलन के 6 माह पूर्ण होने पर पूरे देश ने काले झण्डे फहराकर काला दिवस मनाया। आन्दोलन के दौरान लगभग 475 किसान साथी शहीद हुए। किसान आन्दोलन में अब तक के शहीद सभी शहीदों को किसान संघर्ष समिति सादर नमन करती है।

किसान आन्दोलन ने, देशवासियों को यह सोचने पर मजबूर किया, कि आखिर अन्नदाता पर कोई भी सरकार गोलीचालन कितनी सरलता से कर देती है, तथा नेतृत्व करने वालों को आजीवन कारावास की सजा से नवाजा जाता है। गोली चालन करने वाले अधिकारियों को प्रमोशन देकर विदेश यात्रा करने के लिए भेज देती है। सरकारों के कुटिल इरादे इस समय पूरा देश देख रहा है। दावपेंच करके सत्ता हासिल करना तो सरकारों ने अंग्रेजों से सीख लिया, और उनके पद्चिन्हों पर चलकर सरकारों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को नक्सली, आतंकवादी, खालिस्तानी जैसे शब्दों से नवाजा जा रहा है, तथा किसी ना किसी तरीके से आन्दोलनकारियों पर झूठे आरोप लगाकर फूट डालों और राज करो की नीति को अपनाने का काम सरकार कर रही है।

किसान आन्दोलन तथा कोरोना महामारी ने सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह् खड़ा कर दिया है। सरकार द्वारा लगातार प्राईवेट बीमा कम्पनी को बढ़ावा देकर देश की गरीब जनता को लूटने का लाईसेंस दे दिया गया। बीमा कम्पनीयों ने यह सिद्ध कर दिया कि लोगों की जिन्दगी से उनका कोई सरोकार नही है। आज बीमा कम्पनीयों के पास हजारों करोड़ की सम्पत्तियाँ हैं, जो जनता के धन से बटोरी गई है, बीमा प्रशिक्षण में केवल लाभांश की नीति ही है। बीमा कम्पनीयों के षड़यंत्र को कौन सा किसान या ग्रामीण समझ सकता है? इसके विपरीत रसूखदारों, उद्योगपतियों द्वारा ही कितने झूठे क्लेम पास किये जाते हैं। मेरा कहने का आशय है रसूखदार लोग ही कम्पनीयों के एग्रीमेंट का लाभ उठा सकते हैं। ठेका खेती के कानून में कम्पनीयों द्वारा किसान के साथ किये गए अनुबंध का भी यही हस्र होगा। फसल बीमा के नाम पर किसानों की लूट जारी है हजारों किसान अत्महत्या कर चुके है इससे बीमा कम्पनी और सरकारों को कोई फर्क नही पड़ा। सवाल यह है कि किसान के आत्महत्या के लिए जिम्मेदार कौन है ?

सरकार का निर्लज्ज चेहरा तो तब देखने को मिला कि देश के प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री ये कहते फिर रहे है कि आॅक्सीजन के अभाव में किसी की मौत नही हुई, देश में पर्याप्त आॅक्सीजन हैं। अब तो यहाँ तक कहने लगे है कि कोरोना की दूसरी लहर समाप्त हो गई है। मन की बात में प्रधानमंत्री ने कुपोषित, अतिकुपोषित तथा सिकल सेलिया से पीढ़ित बच्चों को कोविड़ महामारी से सरकार कैसे बचाएगी का कोई उल्लेख भी करना उचित नही समझा, वैक्सीन ही कोविड महामारी से देश को बचा सकती है, और वैक्सीन देश में उपलब्ध नही है।

रोजगार के अभाव में युवा भारत फांसी के फंदे पर लटका दिखाई दे रहा है। सार्वजनिक सम्पत्ति के लगभग सभी उपक्रम कम्पनीयों के हवाले किये जा रहे हैै। किसानों को खाद् बीज, पानी बिजली के मामले में कम्पनीयों का गुलाम बना दिया है। किसान के पास जिन्दा रहने के लिए सिर्फ उसकी खेती ही उसके पास है, जिसे किसान से छीनकर अडानी और अम्बानी को देने के लिए तीन किसान विरोधी कानून गैर संवैधानिक तरीके से देश पर लाद दिये गये है, जिसका विरोध पूरा देश पुरजोर ताकत के साथ कर रहा है। किसान आन्दोलन, सरकार को चेतावनी दे रहा है कि जिस तरीके से किसानों पर गोलीचालन करके तुमने किसान आन्दोलन को दबाने की पुरजोर कोशिश की, तथा नेतृत्व करने वालों को आजीवन कारावास की सजा सुनाकर उन्हें डराने की कोशिश की थी यह तुम्हारा भ्रम है। किसान सरकार की हर साजिश को समझ चुका है, और इसलिए पूरी ताकत के साथ रसद पानी लेकर विषम परिस्थितियों में भी तीन कृषि विरोधी कानून रद्द कराने के बाद ही अपने खेत और गांव की ओर लोटेगा।

किसान आन्दोलन एक भाषा है जिसे सरकार को पढ़ना वा सीखना चाहिए। दिल्ली की सीमा पर बैठा किसान कह रहा है कि सरकार सुन लो तुम्हें दावपेंच खेलकर सत्ता चलाना तो आता है, पर देश चलाना नही आता, देश कैसे चल सकता है राम राज्य किसे कहते है, नारी का सम्मान किस तरह किया जाये यह सब तुम्हें अगर सीखना है तो हमारे धरना स्थल पर आ जाओं, सीखो, समझो, हमसे माफी मांगों तथा तीन देश विरोधी कानून रद्द करो। किसान आन्दोलन यह भी संदेश दे रहा है कि अब देश में, निहत्थी जनता पर गोली चालन करना बन्द करो, तथा गोली चालन पर कानून प्रतिबन्ध लगाओं यही शहीद किसानों को सच्ची श्रृद्धान्जली देने का अवसर है। गोली चालन में शहीद हुए किसान सरकार से पूछना चहाते हैं जलियावाला बाग में गोली चालन करने वाले लोग ने साष्टांग प्रणाम करके भारत के नागरिकों से माँफी मांग ली, किन्तु हमारी चुनी हुई सरकारें जिन्होंने निहत्थे किसानों पर गोली चलाई देश से माँफी मांगने तथा उन्हें श्रृद्धान्जली देने तथा उनके लिए शहीद स्मारक बनाने का कब मन बनायेंगे। दिल्ली की सीमा पर धरने पर बैठे किसानों ने यह भी ठान लिया है कि किसानों पर गोलीचालन करने वाली सरकार अब देश में नही चलेगी। उन्होंने संदेश दिया है कि सुन लो सरकार अब देश का किसान शोषण के खिलाफ आवाज उठाना सीख गया है उसे गोली चालन करके डराने की साहस मत करना।

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