भोपाल

Habibganj railway station: अटल पर भारी कमलापति...

अरुण दीक्षित
14 Nov 2021 12:17 PM GMT
Habibganj railway station: अटल पर भारी कमलापति...
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आदिवासियों को रिझाने में लगी मध्यप्रदेश सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी को दरकिनार करते हुये भोपाल के नए बने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम भोपाल की आखिरी गोंड शासक रानी कमलापति के नाम पर रखने का फैसला किया है।खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को इसका ऐलान करेंगे।

सबसे अहम बात यह है कि नए चुनावी गणित में भाजपा के संस्थापक एवम पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी बाजपेयी रानी कमला पति से हार गए हैं।भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर चाहती थीं कि भोपाल के नए रेलवे स्टेशन का नाम मध्यप्रदेश के सपूत अटलविहारी बाजपेयी के नाम पर रखा जाए।उन्होने इस सम्बंध में ट्वीट भी किया था।लेकिन रानी कमलापति अटलविहारी पर भारी पड़ीं।इससे यह भी साफ हो गया कि सत्ता के लिए कुछ भी करने वाली भाजपा के लिए अपने बुजुर्ग भी महत्वपूर्ण नही रह गए हैं।

उल्लेखनीय है कि भोपाल के हबीबगंज रेलवेस्टेशन का निजीकरण किया गया है।भोपाल की एक निजी कम्पनी ने पीपीपी मोड में इसे तैयार किया है।दावा यह है कि यह देश का दूसरा विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन है।पहला गुजरात का गांधीनगर रेलवे स्टेशन है।इस स्टेशन पर कई सौ करोड़ रूपये खर्च किये जाने का दावा किया गया है।

जहां तक इतिहास की बात है- अंग्रेजों ने 1905 में भोपाल के दूसरे स्टेशन के तौर पर यह स्टेशन बनाया था।तब इसका नाम था-शाहपुर!

बाद में भारतीय रेलवे ने 1979 में इसका विस्तार किया।तब नवाब भोपाल के वंशजों ने अपनी जमीन रेलवे को दान दी।इस बजह से इस स्टेशन का नाम शाहपुर से बदलकर हबीबगंज कर दिया गया।

एक कहानी यह भी है कि जिस जगह पर यह स्टेशन बना है वहां पहले एक गांव था!उस गांव का नाम था हबीबगंज!यह भी कहा जाता है कि यह इलाका बहुत ही खूबसूरत था।नवाब परिवार को बहुत प्रिय था!इसलिए इसका नाम हबीबगंज रखा गया था।हबीब शब्द का अर्थ है-अल्लाह को प्यारा।उसे बातचीत में एक दूसरे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

अब रानी कमलापति की बात! बताया जाता है कि भोपाल में पहले गोंड आदिवासी राजाओं का शासन था।रानी कमलापति उनकी आखिरी शासक थीं।उनके महल के खंडहर आज भी मौजूद हैं।उस जगह को कमला पार्क कहा जाता है।यह पार्क भोपाल के बड़े तालाब और छोटे तालाब के बीच में बना है।राज्य की भाजपा सरकार ने छोटे तालाब में रानी कमलापति की बड़ी सी मूर्ति भी लगाई है।

रानी कमलापति अटल विहारी बाजपेयी पर भारी क्यों पड़ीं? इसकी मुख्य बजह है-आदिवासी वोट बैंक!प्रदेश में आदिवासी समाज की आबादी करीब सवा करोड़ है।कुल 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं।साथ ही 6 लोक सभा क्षेत्र भी आदिवासी सांसद चुनते हैं।

आदिवासियों को रिझाने के लिये संघ और भाजपा लंबे समय से अभियान चला रहे हैं।इसी के तहत आगामी 15 नवम्बर को विरसा मुंडा की जयंती पर भोपाल में विशाल जनजातीय गौरव समारोह आयोजित किया जा रहा है।शिवराज सरकार का दावा है कि इस दिन करीब ढाई लाख आदिवासी भोपाल लाये जाएंगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह में शिरकत करेंगे।उस दिन केंद्र और राज्य की सरकारें मिल कर आदिवासियों के लिए बड़े ऐलान करेंगी।

उसी दिन मोदी नए हबीबगंज रेलवे स्टेशन का उदघाटन करके उसे नया नाम देंगे।

सूत्रों का कहना है कि भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने रणनीति के तहत अटल विहारी बाजपेयी का नाम उछाला है। दरअसल शिवराज सरकार ने पहले ही केंद्र को यह प्रस्ताव भेज दिया था कि नए हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखा जाए।केंद्र सरकार ने प्रस्ताव मानकर उसे स्वीकृति दे दी है।अब कोई फेरबदल सम्भव नही है।

लेकिन भाजपा के पुरानी पीढ़ी के नेता प्रज्ञा की बात का समर्थन करते हैं।नए नेतृत्व द्वारा नकार दिए गए ये नेता चाहते हैं कि विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन पार्टी के पहले विश्वस्तरीय नेता के नाम पर हो।लेकिन वे आवाज उठा नही पा रहे हैं।

एक बुजुर्ग नेता ने बातचीत में अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए सिर्फ इतना कहा-जो जिंदा हैं उनको जिंदा ही दफन कर दिया गया है ऐसे में जो जा चुके उनके बारे में कौन सोचेगा।यह नए दौर की नए संस्कारों वाली भाजपा है।

फिलहाल यह तय है कि 48 घण्टे बाद हबीबगंज रेलवे स्टेशन इतिहास में दफन हो जाएगा।वहीं से निकलकर रानी कमलापति उसकी जगह ले लेगी।बदलाव प्रकृति का नियम है! कल तक हबीबुल्लाह "हबीब" थे!अब कमलापति होंगी!यह अलग बात है कि आदिवासी समाज के लोग आज भी सड़क पर कार के पीछे बांध कर घसीटे जाने को अभिशप्त हैं।

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

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